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महिला एडीजे के बचाव के लिए सुप्रीम कोर्ट आया सामने, जानिए पूरा मामला

तीन सदस्यीय बेंच में जस्टिस एएम खानविलकर भी शामिल थे, लेकिन आखिरी समय में उन्होंने खुद को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया।

By Pratibha KumariEdited By: Published: Tue, 16 Jan 2018 10:21 AM (IST)Updated: Tue, 16 Jan 2018 10:34 AM (IST)
महिला एडीजे के बचाव के लिए सुप्रीम कोर्ट आया सामने, जानिए पूरा मामला
महिला एडीजे के बचाव के लिए सुप्रीम कोर्ट आया सामने, जानिए पूरा मामला

नई दिल्ली, पीटीआई। तीस हजारी अदालत की महिला एडीजे (अतिरिक्त सेशन जज) के बचाव में सुप्रीम कोर्ट सामने आ गया। चीफ जस्टिस की बेंच ने दिल्ली हाई कोर्ट की तरफ से शुरू की गई अवमानना की कार्रवाई पर रोक लगाते हुए जज को कहा कि वह हाई कोर्ट में जाकर बिना शर्त माफीनामा दाखिल करें। जजों का कहना था कि वह जज के भविष्य को देख रहे हैं।

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कामिनी एल के फैसलों पर जताई गई थी आपत्ति

तीन सदस्यीय बेंच में जस्टिस एएम खानविलकर भी शामिल थे, लेकिन आखिरी समय में उन्होंने खुद को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्र के साथ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने मामले की सुनवाई की। बेंच ने अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि वह भी मामले में जिरह न करें। वह महिला जज कामिनी एल का बचाव करना चाहती है। मामले के अनुसार तीस हजारी अदालत में तैनात कामिनी एल के चार सिविल मामलों में दिए फैसलों पर दिल्ली हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने आपत्ति जाहिर की थी।

दिल्‍ली हाई कोर्ट ने तीखे शब्‍दों का किया था इस्‍तेमाल

फैसले को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने बेहद तीखे शब्दों का इस्तेमाल कामिनी के खिलाफ किया था। महिला जज ने डबल बेंच में इसे चुनौती दी। जो अपील दायर की, उसमें लिखा कि जज को नहीं बल्कि जजमेंट पर गौर किया जाना चाहिए था। डबल बेंच ने कामिनी की टिप्पणी पर कड़ा संज्ञान लेते हुए अनमानना की कार्यवाही शुरू करने का फैसला किया। महिला जज ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। चीफ जस्टिस ने महिला जज से व्यक्तिगत तौर पर बात करके भी अनुभव साझा किए।

अवैध निर्माणों पर दिल्ली सरकार को फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माणों पर दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि अधिकारियों ने इमानदारी से काम नहीं किया। उन्हें अवैध निर्माणों को रोकने का काम स्वत: संज्ञान लेते हुए करना चाहिए था। जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने मामला की सुनवाई 15 फरवरी को तय की है। अदालत ने कहा कि 2006 में उसने जिस निगरानी समिति का गठन किया था, वह इस तरह के निर्माणों पर कार्रवाई के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है।

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