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सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने कहा- एनजीटी के पास कानून को रद करने का अधिकार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पास किसी कानून की वैधता का परीक्षण करने या उसे रद करने का अधिकार नहीं है। जैव विविधता अधिनियम की धारा 40 को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने यह टिप्पणी की।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 08:56 PM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 08:56 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने कहा- एनजीटी के पास कानून को रद करने का अधिकार नहीं
जैव विविधता अधिनियम की धारा 40 को चुनौती देने वाली याचिका पर हुई सुनवाई।

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पास किसी कानून की वैधता का परीक्षण करने या उसे रद करने का अधिकार नहीं है। जैव विविधता अधिनियम की धारा 40 को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने यह टिप्पणी की।

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पीठ ने कहा- राष्ट्रीय हरित अधिकरण चेन्नई के पास लंबित मामले की सुनवाई पर अंतरिम रोक

पीठ ने कहा कि तब तक के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण, चेन्नई के पास लंबित मामले की सुनवाई पर अंतरिम रोक रहेगी। यह अपील पर्यावरण सहायता समूह ने दायर की थी। इसमें उसने जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 40 को चुनौती दी थी।

पर्यावरण समूह ने सुप्रीम कोर्ट में जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 40 को चुनौती दी थी

पहले यह याचिका कर्नाटक उच्च न्यायालय में दायर की गई थी, जिसे बाद में एनजीटी के पास स्थानांतरित कर दिया गया। पर्यावरण समूह ने यह कहते हुए एनजीटी के पास याचिका स्थानांतरित करने को चुनौती दी कि उसे कानून की वैधता पर विचार करने का अधिकार नहीं है।

सभी राज्य प्रवासी बच्चों की संख्या और उनकी स्थिति से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएं

उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों को मंगलवार को निर्देश दिया कि वे प्रवासी बच्चों की संख्या और उनकी स्थिति से उसे अवगत कराएं। न्यायालय ने यह निर्देश उस याचिका पर दिया, जिसमें कोरोना महामारी के बीच प्रवासी बच्चों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का आदेश देने का अनुरोध किया गया है। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना एवं वी रामसुब्रमण्यन ने मामले में पक्षकार बनाए गए सभी राज्यों को जवाब देने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता जायना कोठारी पेश हुईं।

कोरोना महामारी के बीच प्रवासी बच्चों के मौलिक अधिकारों का संरक्षण

शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों को आठ मार्च को मामले में पक्षकार बनाया था। इसने चाइल्ड राइट्स ट्रस्ट तथा बेंगलुरु के एक निवासी की ओर से दाखिल याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें कोरोना महामारी के बीच प्रवासी बच्चों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।


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