सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को है न्याय पर डटे रहने की आदत
जस्टिम रंजन गोगोई ने एक बार कहा था कि स्वतंत्र न्यायाधीश और मुखर पत्रकार ही लोकतंत्र के लिए सुरक्षा का पहला कवच होते हैं।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। अक्टूबर, 2018 में जस्टिम रंजन गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का पदभार संभाला तो उनकी छवि बेहद कठोर व पूरी तरह से न्याय की किताब के मुताबिक चलने वाले न्यायाधीश की थी। अब जबकि उनके सेवानिवृत्त होने में कुछ ही दिन शेष बचे हैं तो यह कहा जा सकता है कि उन्होंने पूरी तरह से अपनी छवि के मुताबिक ही काम किया।
एनआरसी पर सुनवाई करके गोगोई ने अपनी मंशा जाहिर कर दी थी
शुरुआती दिनों में ही नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिजन (एनआरसी) जैसे मामलों की सुनवाई करके उन्होंने अपनी मंशा जता दी थी।
अयोध्या विवाद मामले पर फैसले से सीजेआई की छवि और मजबूत हुई
उनकी अगुवाई में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों की टीम ने 70 वर्षो से चले आ रहे अयोध्या राम जन्म भूमि विवाद मामले पर दो टूक फैसला सुनाया है उससे उनकी छवि और मजबूत हुई है। यह भी याद रखना चाहिए कि जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन वरिष्ठ चार न्यायाधीशों की टीम में भी थे जिन्होंने पिछले वर्ष की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के काम काज में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया था। यही वजह है कि जब वह चीफ जस्टिस बने तो कुछ लोगों ने संशय भी किया।
न्याय पर सिर्फ टिके रहना ही नहीं बल्कि न्याय दिलाना भी उनकी सोच का हिस्सा है
कहने की जरुरत नहीं कि इन संशयों को अब पूरी तरह से खारिज किया जा सकता है। क्योंकि न्याय पर सिर्फ टिके रहना ही नहीं बल्कि निर्धारित समय के भीतर न्याय दिलाना भी उनकी सोच का एक हिस्सा है। यह बात इसलिए भी कही जा सकती है कि चाहे एनसीआर का मामला हो या अयोध्या मसले का हो, अड़चनें कम नहीं थी।
गोगोई पर पूर्व कर्मचारी ने यौन शोषण का लगाया था आरोप
गोगोई के लिए सबसे कठिन समय तब आया जब उनके खिलाफ एक पूर्व कर्मचारी ने यौन शोषण का आरोप लगाया गया।
स्वतंत्र न्यायाधीश और मुखर पत्रकार ही लोकतंत्र के लिए सुरक्षा का पहला कवच होते हैं
वैसे वह सिर्फ अपने फैसलों से ही नहीं बल्कि सार्वजनिक जीवन में दिए जाने वाले भाषणों से भी सुर्खियां बटोरते रहे हैं। जैसे एक बार उन्होंने कहा था कि स्वतंत्र न्यायाधीश और मुखर पत्रकार ही लोकतंत्र के लिए सुरक्षा का पहला कवच होते हैं।