आठ मेडिकल कॉलेजों में 800 दाखिलों को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी
जस्टिस एस अब्दुल नजीर व इंदु मल्होत्रा की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार व प्रबंधन तय समय सीमा के भीतर सारी कमियों को दूर करेगा।
By Manish NegiEdited By: Published: Mon, 18 Jun 2018 10:43 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jun 2018 10:43 PM (IST)
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने हैरान करने वाले फैसले में बिहार, उत्तर प्रदेश व झारखंड के आठ सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 800 दाखिलों को मंजूरी दे दी है। खास बात है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने अपने निरीक्षण में इन कॉलेजों को अनुपयुक्त माना था। सोमवार को दिए फैसले में कोर्ट ने कहा कि इस फैसले को आगे के लिए नजीर न माना जाए। मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर को रखी गई है।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर व इंदु मल्होत्रा की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार व प्रबंधन तय समय सीमा के भीतर सारी कमियों को दूर करेगा। राज्यों के मुख्य सचिवों व प्रधान सचिवों (शिक्षा) को यह जिम्मेदारी दी गई है। एमसीआइ तीन माह बाद इन कॉलेजों का दौरा करके देखेगी कि कमियों को दूर किया गया या नहीं। 2018-19 के सत्र के लिए यह मंजूरी दी गई है। इससे पहले तीनों राज्यों के प्रधान सचिवों से इस बाबत अंडरटेकिंग ली गई कि जो भी कमियां हैं, उन्हें दुरुस्त किया जाएगा।
खास बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले की सुनवाई में यहां तक कहा था कि ऐसी स्थितियों में इन कॉलेजों में चिकित्सकीय शिक्षा की अनुमति कैसे दी जा सकती है। न तो जरूरी साजोसामान यहां पाया गया और न ही फैकल्टी में पर्याप्त शिक्षक थे। कोर्ट ने यहां तक कहा था कि इन कॉलेजों में इंसान को ठीक करने की पढ़ाई होनी है न कि जानवरों को। जिन आठ कालेजों में 2018-19 के सत्र के लिए प्रवेश पर रोक लगाई गई थी, उनमें बिहार के तीन संस्थान हैं। इनमें अनुराग नारायण मगध मेडिकल कॉलेज गया, वर्धमान इंस्टीट्यूट नालंदा व गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज बेतिया शामिल हैं।
झारखंड के जमशेदपुर में स्थित महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज भी इसी श्रेणी में शामिल है। जबकि उप्र में बांदा का गवर्नमेंट एलोपैथिक कॉलेज, सहारनपुर का गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, आजमगढ़ व जालौन के संस्थान शामिल हैं। गौरतलब है कि अपने पिछले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा था कि जिन संस्थानों में सुविधाएं नहीं हैं, वहां मेडिकल के दाखिले करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर व इंदु मल्होत्रा की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार व प्रबंधन तय समय सीमा के भीतर सारी कमियों को दूर करेगा। राज्यों के मुख्य सचिवों व प्रधान सचिवों (शिक्षा) को यह जिम्मेदारी दी गई है। एमसीआइ तीन माह बाद इन कॉलेजों का दौरा करके देखेगी कि कमियों को दूर किया गया या नहीं। 2018-19 के सत्र के लिए यह मंजूरी दी गई है। इससे पहले तीनों राज्यों के प्रधान सचिवों से इस बाबत अंडरटेकिंग ली गई कि जो भी कमियां हैं, उन्हें दुरुस्त किया जाएगा।
खास बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले की सुनवाई में यहां तक कहा था कि ऐसी स्थितियों में इन कॉलेजों में चिकित्सकीय शिक्षा की अनुमति कैसे दी जा सकती है। न तो जरूरी साजोसामान यहां पाया गया और न ही फैकल्टी में पर्याप्त शिक्षक थे। कोर्ट ने यहां तक कहा था कि इन कॉलेजों में इंसान को ठीक करने की पढ़ाई होनी है न कि जानवरों को। जिन आठ कालेजों में 2018-19 के सत्र के लिए प्रवेश पर रोक लगाई गई थी, उनमें बिहार के तीन संस्थान हैं। इनमें अनुराग नारायण मगध मेडिकल कॉलेज गया, वर्धमान इंस्टीट्यूट नालंदा व गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज बेतिया शामिल हैं।
झारखंड के जमशेदपुर में स्थित महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज भी इसी श्रेणी में शामिल है। जबकि उप्र में बांदा का गवर्नमेंट एलोपैथिक कॉलेज, सहारनपुर का गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, आजमगढ़ व जालौन के संस्थान शामिल हैं। गौरतलब है कि अपने पिछले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा था कि जिन संस्थानों में सुविधाएं नहीं हैं, वहां मेडिकल के दाखिले करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
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