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कठुआ मामले में दुष्कर्म पीड़िता की पहचान बताने पर सुप्रीम कोर्ट खफा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कठुआ मामले में पीड़ित आठ साल की बच्ची की पहचान जाहिर किए जाने का संज्ञान लेते हुए पर यह टिप्पणी की।

By Manish NegiEdited By: Published: Tue, 24 Apr 2018 08:21 PM (IST)Updated: Tue, 24 Apr 2018 08:21 PM (IST)
कठुआ मामले में दुष्कर्म पीड़िता की पहचान बताने पर सुप्रीम कोर्ट खफा
कठुआ मामले में दुष्कर्म पीड़िता की पहचान बताने पर सुप्रीम कोर्ट खफा

नई दिल्ली, प्रेट्र। जम्मू और कश्मीर के कठुआ मामले में मारी गई दुष्कर्म पीड़िता आठ साल की बच्ची की पहचान उजागर करने पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही कहा कि मृत लोगों की भी इज्जत होती है। उनका नाम लेकर उन्हें बदनाम नहीं किया जा सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कठुआ मामले में पीड़ित आठ साल की बच्ची की पहचान जाहिर किए जाने का संज्ञान लेते हुए पर यह टिप्पणी की। जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि जिन मामलों में दुष्कर्म पीड़िता जीवित भी रहती है, फिर चाहे वह नाबालिग ही क्यों न हो, उनकी पहचान सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए। उनको भी निजता का अधिकार है। वह जीवन भर इस कलंक के साथं नहीं जी सकती हैं। खंडपीठ ने मीडिया रिपोर्टिंग के लिहाज से कहा कि मृतकों की इज्जत का भी खयाल करें। यह (रिपोर्टिग) बिना किसी का नाम बताए और उसे शर्मिदा किए बगैर भी हो सकता है।

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने अदालत में यौन अपराध की शिकार पीड़िता की पहचान छिपाने वाली आइपीसी की धारा 228-ए का उल्लेख करते हुए कठुआ का मामला उठाया। इसके बाद खंडपीठ ने आइपीसी की धारा 228-ए के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की अनुमति दी। साथ ही यह सवाल भी उठाया कि किसी दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग की पहचान सिर्फ इसलिए कैसे उजागर की जा सकती है कि उनके मां-बाप ने इसकी अनुमति दे दी है। कोर्ट ने पूछा-ऐसा क्यों होने देना चाहिए? अगर कोई व्यक्ति अपरिपक्व दिमाग का है तो भी नाबालिग पीड़िता को पूरा अधिकार है कि उसकी पहचान छिपाई जाए। उसे निजता का अधिकार है। एक नाबालिग कभी बालिग भी होगी। उस पर यह कलंक जीवन भर के लिए क्यों लगना चाहिए।

कठुआ मामले में अदालत को बतौर एमीकस क्यूरी सलाह दे रही वरिष्ठ वकील जयसिंह ने कहा कि इसलिए अब सर्वोच्च अदालत के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह आइपीसी की धारा 228-ए को स्पष्ट करना होगा। उन्होंने कहा कि मीडिया को ऐसे मामलों की रिर्पोटिंग करने से पूरी तरह से नहीं रोका जा सकता है। इसलिए अब सुप्रीम कोर्ट को प्रेस की आजादी और पीड़िता के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करने की जरूरत है। साथ ही अदालत ने पूछा कि जिन मामलों में पीड़िता की मौत हो जाती है, उसमें भी पीड़िता का नाम जाहिर करने की क्या जरूरत है?

जयसिंह ने सीधे तौर पर कठुआ मामले का नाम मिले बगैर हाल के मामले पर कहा कि पीड़िता की मौत हो चुकी है और इसके बाद ही उसके लिए न्याय की गुहार ना सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में चल रही है। इस पर दिल्ली के 16 दिसबंर, 2012 के सामूहिक दुष्कर्म के बाद महिलाओं की सुरक्षा को लेकर दायर की गई जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील ने निर्देश लेने के लिए वक्त मांगा। इस पर अदालत ने मामले की सुनवाई आगामी आठ मई के लिए सूचीबद्ध कर दी है। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते दिल्ली हाईकोर्ट ने कठुआ मामले में पीड़िता की पहचान जाहिर करने पर 12 मीडिया हाउसों पर दस लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।


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