नवजात की हत्या के आरोप में मां को मिली थी उम्र कैद, सुप्रीम कोर्ट ने बरी करते हुए दिया ये तर्क...
सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के मार्च 2010 के महिला के खिलाफ फैसले को पलटते हुए उस पर लगाए दोष और सजा को खारिज कर दिया।
नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नवजात बच्ची की गला घोंटकर हत्या करने की दोषी और उम्रकैद की सजा पाई एक महिला को बरी कर दिया है। अस्पताल में ही मार दी गई नवजात की मां को बरी करते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि एक महिला के लिए खुद ही अपने ही बच्चे की हत्या करना 'पूरी तरह से अस्वाभाविक' है।
सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के मार्च 2010 के महिला के खिलाफ फैसले को पलटते हुए उस पर लगाए दोष और सजा को खारिज कर दिया। जस्टिस एमएम शांतनागौदर और आर.सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने कहा कि यह सच है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट और डॉक्टर के मुताबिक नवजात बच्ची की मौत दम घुटने से हुई थी और उसके गले पर गला दबाए जाने के निशान भी थे, लेकिन अगर सभी सुबूतों को व्यापक तरीके से देखा जाए तो हत्या का मकसद स्थापित नहीं होता है। साथ ही यह भी पूरी तरह से अस्वाभाविक है कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करने वाली मां अपनी नवजात बच्ची का खुद ही गला घोंट दे।
विगत 17 दिसंबर को दिए अपने फैसले में खंडपीठ ने कहा कि इस बात के साक्ष्य उपलब्ध हैं कि बच्ची के जन्म के तुरंत बाद उसे इन्क्यूबेटर में ऑक्सीजन मास्क लगाकर रखा गया था। उस दौरान ना तो उसने अपनी आंखें खोली थीं और ना ही वह रोई थी। अभियोजन पक्ष का कहना है कि महिला ने 24 अगस्त, 2007 को एक अस्पताल में बच्ची को जन्म दिया था। चूंकि वह एक बच्ची थी इसलिए उसे उसी दिन सौंपे जाने के बाद बच्ची का गला घोंटकर हत्या कर दी थी।
बता दें कि 26 अगस्त, 2007 को नवजात बच्ची का पोस्टमार्टम किया गया था और 31 अगस्त, 2007 को मां के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के तहत अपराध के लिए मामला दर्ज किया गया। बाद में ट्रायल कोर्ट ने दिसंबर 2009 में अपना फैसला सुनाया और बच्ची की हत्या के लिए दोषी ठहराते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।