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जानें- सबरीमाला मंदिर में क्‍या है फसाद की जड़, सुप्रीम फैसला पर आस्‍था की आंच

केरल के सबरीमाला मंदिर में एक बार आस्‍था और सर्वोच्‍च अदालत का सुप्रीम फैसले पर जंग छिड़ गई है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 09:37 AM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 08:28 AM (IST)
जानें- सबरीमाला मंदिर में क्‍या है फसाद की जड़, सुप्रीम फैसला पर आस्‍था की आंच
जानें- सबरीमाला मंदिर में क्‍या है फसाद की जड़, सुप्रीम फैसला पर आस्‍था की आंच

नई दिल्ली [ जागरण स्‍पेशल ]। धार्मिक आस्‍थाएं श्रेष्‍ठ हैं या परंपराओं को तोड़ने वाल सर्वोच्‍च अदालत का सुप्रीम फैसला। यह कानूनविदों और आस्‍थावान लोगों के बीच एक बहस का विषय हो सकता है। लेकिन इसे लेकर देश में एक बड़ा तबका इस फैसले के खिलाफ खड़ा हो गया है। अब यह देखना दिलचस्‍प होगा कि सबरीमाला मंदिर में ऊंट किस करवट बैठता है। हालांकि, इस मामले को लेकर सियासत भी शुरू हो गई है। आइए एक बार फ‍िर आपको बताते हैं सारे फसाद की जड़ में क्‍या है। आस्‍थावान लोग सुप्रीम फैसले के खिलाफ क्‍यों हैं।

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आखिर क्‍या है फसाद की जड़

सबरीमाला का मंदिर देश के केरल राज्‍य में स्थित है। इस मंदिर में दस से 50 साल तक की महिलाएं, जो रजस्वला हैं, उनके प्रवेश पर प्रतिबंध है। इसके पीछे यह मान्यता है कि इस मंदिर के मुख्य देवता अयप्पा ब्रह्मचारी थे। ऐसे में इस तरह की महिलाओं के मंदिर में जाने से उनका ध्यान भंग होगा। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। सबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज़्यादा भक्त पहुंचते हैं।

सर्वोच्‍च अदालत का सुप्रीम फैसला

800 साल पुरानी प्रथा पर देश की शीर्ष अदालत ने अपना सुप्रीम फैसला सुनाते हुए नारियों को सबरीमाला मंदिर में जाने की इजाजत दे दी है। अब सबरीमाला मंदिर में महिलाएं भी भगवान अयप्‍पा के दर्शन कर सकती हैं। मंदिर की इस प्रथा को शीर्ष अदालत की एक पीठ ने गैर कानूनी घोषित किया। आइए हम आपको बताते हैं केरल राज्‍य में स्थित इस सबरीमाला मंदिर का संपूर्ण इतिहास। मंदिर में आखिर महिलाओं के प्रवेश लिए क्‍यों था प्रतिबंध। 

क्‍या था केरल हाईकोर्ट का फैसला

सर्वोच्‍च अदालत के फैसले के पूर्व केरल हाई कोर्ट ने 1991 और 2015 में कहा था कि सबरीमला मंदिर को अपनी परंपराएं जारी रखने का अधिकार है। बाद में अदालत ने कहा कि रजस्वला महिलाओं के मंदिर में प्रवेश को लेकर लगी पाबंदी आयु पर आधारित है, महिलाओं को वर्ग मानते हुए नहीं। इस परंपरा में बदलाव लाने के लिए विद्वानों का एक दल नियुक्त करने की बात कही गई थी। लेकिन उस वक्‍त केरल सरकार ने अपने हलफनामे में सबरीमला मंदिर में महिलाओं के वर्ग को प्रवेश देने से मना करना सही नहीं है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा

पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।

दूर पहाड़ियों पर है मंदिर

यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीज़ें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

संविधान पीठ से सुप्रीम फैसले तक

  • पिछले साल 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने अनुच्छेद-14 में दिए गए समानता के अधिकार, अनुच्छेद-15 में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव रोकने, अनुच्छेद-17 में छुआछूत को समाप्त करने जैसे सवालों सहित चार मुद्दों पर पूरे मामले की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ के हवाले कर दी थी।
  • याचिकाकर्ता 'द इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन' ने सबरीमाला स्थित भगवान अयप्पा के इस मंदिर में पिछले 800 साल से महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को चुनौती दी थी। याचिका में केरल सरकार, द त्रावनकोर देवस्वम बोर्ड और मंदिर के मुख्य पुजारी सहित डीएम को 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने की मांग की थी।
  • इस मामले में सात नंवबर 2016 को केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि वह मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में है।

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