Move to Jagran APP

Rising India: गांव में खुल रहे सुपर मार्केट, हो रही होम डिलीवरी

शहरों से लौटे परिवारों ने आवश्यकताओं को विस्तार दिया है तो शहरों से लौटे युवा नई संभावनाएं गढ़ रहे हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 08 Jun 2020 08:00 AM (IST)Updated: Mon, 08 Jun 2020 08:00 AM (IST)
Rising India:  गांव में खुल रहे सुपर मार्केट, हो रही होम डिलीवरी
Rising India: गांव में खुल रहे सुपर मार्केट, हो रही होम डिलीवरी

नई दिल्ली, जेेएनएन। कहते हैं भारत गांवों में बसता है, लिहाजा गांव की बात जरूरी है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के युग में देश की रीढ़ रहा गांव आज संक्रमण के दौर में है। ऊपर से कोरोना का दौर। लेकिन दौर कोई भी हो, देश को किसान, जवान और श्रमिक देने वाला गांव यूं ही हार नहीं मानने वाला है। दौर की आवश्कताओं के अनुरूप गांवों में भी नई व्यवस्था आकार लेते दिख रही है। शहरों से लौटे परिवारों ने आवश्यकताओं को विस्तार दिया है, तो शहरों से लौटे युवा नई संभावनाएं गढ़ रहे हैं। पिछली गर्मी में खाली रहे गांव के युवाओं के पास भी अब सांस लेने की फुर्सत नहीं है। पढ़ें और शेयर करें वाराणसी से शाश्वत मिश्रा और भागलपुर से अश्विनी की रिपोर्ट।

loksabha election banner

मौके को भुनाने की जिद

कोरोना संकट के इस काल को गांवों ने मौके की तरह भुनाया है। यह वही गांव हैं, जहां पिछली गर्मियों में बोर दुपहरिया सुनसान सन्नाटे में गुजर जाया करती थीं, लेकिन इस बार की गर्मी में यहां हलचल ज्यादा है। रमना, नरोत्तमपुर, टिकरी, तारापुर, डाफी, नैपुरा, मुड़ादेव, सराय डंगरी, अखरी, गजाधरपुर आदि गांव के युवा इस बार काम में तल्लीन हैं। कोई सुपर मार्केट के लिए सामान लेने जा रहा है तो कोई राशन की होम डिलीवरी कर रहा है।

गांव के सुपर मार्केट में है हर चीज

रमना गांव में संतोष और राजेश ने सुपर मार्केट की तर्ज पर दुकान खोली है। यहां लोगों को सारा सामान मिल जाता है। डाफी के विनोद पांडेय, संदीप और प्रमोद ने मार्च में बगल के टिकरी गांव में दुकान खोली थी। उस समय तो बिक्री कम थी, लेकिन बाद में उन्होंने दुकान को सुपर मार्केट में बदल दिया। आज उन्हें ऑर्डर लेने और सामान पैक करने से फुर्सत ही नहीं मिल रही है। यहां राहत भरी बात यह है कि सभी अपने-अपने ग्राहकों को शारीरिक दूरी बनाए रखने पर जोर देते हैं और सबके हाथ पर आते-जाते समय सैनिटाइजर लगाते हैं।

सैकड़ों घरों तक पहुंचा रहे सामान

टिकरी में सुपर मार्केट चला रहे प्रमोद कुछ और लोगों को नौकरी पर रखने की योजना बना रहे हैं। वो कहते हैं कि इस समय 8 से 10 कर्मचारी सिर्फ पैकिंग में लगे है। ये सभी आसपास के 8 से 10 गांवों और कुछ कॉलोनियों में सामान पहुंचाते हैं। रमना में सुपर मार्केट चला रहे राजेश और संतोष ने बताया कि महीने भर में करीब 300 से 400 ग्राहकों के घर तक सामान की डिलीवरी कर रहे हैं।

खरीदारी की प्रवृत्ति में बदलाव

विनोद का मानना है कि इस समय लोगों की खरीदारी की प्रवृत्ति बदली है। पहले जहां लोग थोड़ा-थोड़ा सामान कई बार में ले जाते थे, वहीं अब एक साथ 15-15 दिनों का सामान ले जाते हैं।

छोटे किसानों और ग्राहकों के बीच सेतु बने युवा

रमना गांव के अमित पटेल ने बताया कि कई युवा समूह बनाकर सोनभद्र, मीरजापुर, चंदौली से सब्जी और अनाज लाते हैं और आसपास के गांवों और शहर की कुछ कॉलोनियों में बेचते हैं। सामान खरीदने से पहले वे ग्राहकों से पसंद जान लेते हैं। साथ ही यह भी तय कर लेते हैं कि कितना सामान कितने दिनों में चाहिए।

बेटवा सामने रहै अउर का चाही

रमना गांव के संतोष पटेल आगरा में नौकरी करते थे। वो वापस आ गए हैं। इससे घरवाले खुश हैं। पिता मुन्नी लाल कहते हैं कि बेटवा आंखि के सामने रहै अउर का चाही। संतोष गांव में ही रोजगार खोज रहे हैं। टिकरी के ग्राम प्रधान सुशील सिंह कक्कू कहते हैं, गांव का माहौल बदल रहा है। लोग चाहते हैं कि एक ही जगह पर सारा सामान मिल जाए। इसलिए सुपर मार्केट और होम डिलीवरी जैसी सुविधाओं का यहां बोलबाला है। गांव में ही लोगों को रोजगार मिल रहा है यह अच्छी बात है।

पति का रोजगार छूटा तो पत्नी ने खोली दुकान

गांव-कस्बों की कुछ तस्वीरें अमावस के बाद की सुबह का अहसास करा रही हैं। इन्हीं में एक है रूपा। भागलपुर, बिहार के गोराडीह प्रखंड के रामंचद्रपुर गांव में छोटी सी दुकान की चौखट से झांकती हुई। एक प्रतीक भर, जहां वर्तमान की चुनौतियों से जंग और भविष्य की अर्थव्यवस्था की झलक है। काम-धंधा बंद होते ही पति पंजाब से लौट आया। आय का कोई जरिया नहीं। पांच हजार रुपये का जुगाड़ कर गांव में ही एक छोटी सी दुकान खोल ली। हालात सामान्य होते ही पति फिर कमाने बाहर जाएगा, पर आज की वैश्विक आपदा ने इस घर को दोहरी अर्थव्यवस्था का विकल्प भी दे दिया, जहां की मालकिन रूपा है। ऐसे दर्जनों दृश्य हैं।

प्रवासियों की भीड़ यहीं नहीं ठहर जाएगी। वे फिर लौटेंगे, पर स्थानीय स्तर पर भी रोजी-रोटी के पुख्ता जुगाड़ के साथ। पूर्व बिहार से सीमांचल तक करीब तीन लाख प्रवासी लौटकर आए हैं। ऐसा नहीं है कि सबके सब स्थायी भाव से ही वहां थे। पंजाब में आलू की मंडी में काम करने वालों की संख्या हजारों में है। वे तीन से छह महीने तक वहां काम करते हैं। फिर लौट आते हैं। यहां आकर मक्के की तैयारी करते हैं। जो अभी लौट आए हैं, वे मुर्गी फार्म के लिए दाना तैयार कर रहे हैं।

(अस्वीकरणः फेसबुक के साथ इस संयुक्त अभियान में सामग्री का चयन, संपादन व प्रकाशन जागरण समूह के अधीन है।)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.