पांच साल से लंबित बिलों को निष्प्रभावी मानने का सुझाव
सदस्यों से बेहतर काम-काज को लेकर मांगा सहयोग विस्तृत चर्चा की मांग की।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने उच्च सदन के काम-काज के तरीके में बड़े बदलाव के संकेत दिए हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि कोई भी बिल राज्यसभा में पांच साल से ज्यादा समय से लंबित है, तो उसे निष्प्रभावी माना जाना चाहिए। साथ ही कहा है कि सदन के काम काज को बेहतर बनाने के लिए एक कमेटी गठित की गई है। जिसने कुछ सुझाव दिए है। चर्चा के बाद इन सभी पर अमल किया जाएगा।
नायडू ने इस दौरान राज्यसभा में 32 साल से एक बिल के लंबित होने का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि जो 33 बिल राज्यसभा में लंबित हैं, उनमें 1987 का मेडिकल काउंसिल (संशोधन) बिल भी है। जो राज्यसभा से पारित हो गया है, लेकिन लोकसभा से अभी तक पारित नहीं हो पाया है।
दरअसल लोकसभा से यदि कोई बिल पारित होकर राज्यसभा को आता है, और लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने तक राज्यसभा से पारित नहीं होता है, तो उसे लोकसभा का कार्यकाल खत्म होते ही स्वयं निष्प्रभावी मान लिया जाता है। जबकि राज्यसभा में ऐसा नहीं है। यदि कोई बिल पहले राज्यसभा से पारित होता है, तो वह राज्यसभा की संपत्ति बना रहता, जब तक वह लोकसभा से पारित नहीं हो जाता है। भले ही इस दौरान कितनी ही बार लोकसभा भंग हुई हो। वह बिल प्रभावी ही रहता है।
राज्यसभा के काम-काज को सरल बनाने का संकेत देते हुए नायडू ने कहा कि 16 वीं लोकसभा में लोक महत्व के करीब 22 बिल लोकसभा से पारित होकर राज्यसभा में आए थे। लेकिन वह राज्यसभा में काम-काज न होने के चलते लोकसभा के कार्यकाल के दौरान पारित नहीं हो पाए। ऐसे में यह लोकसभा भंग होने के बाद सभी अपने आप निष्प्रभावी हो गए।
नायडू ने इस दौरान सदन से सेवानिवृत्ति हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की गैरमौजूदगी का भी जिक्र किया और कहा कि वह लंबे समय तक इस सदन के सदस्य रहे। 14 जून को ही उनका राज्यसभा से कार्यकाल खत्म हुआ है। इससे पहले उन्होंने मनोहर पर्रीकर सहित सदन के सदस्य रहे सभी दस सदस्यों को भी श्रद्धांजलि दी, जिनका हाल ही में निधन हो गया था।
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