सुदर्शन टीवी के 'बिंदास बोल' ने नियमों का उल्लंघन किया : केंद्र सरकार
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ जस्टिस इंदू मलहोत्रा और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सुदर्शन टीवी से 28 सितंबर तक जवाब मांगा गया है। अगर चैनल की तरफ से उत्तर नहीं दिया जाता है तो एक पक्षीय निर्णय लिया जाएगा।
नई दिल्ली, प्रेट्र। केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्राथमिक तौर पर पाया गया है कि सुदर्शन टीवी के 'बिंदास बोल' ने कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन किया है और इसके लिए चैनल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि चैनल के खिलाफ कारण बताओ नोटिस के अनुपालन में सरकार द्वारा उठाए गए कदम अदालत के आदेशों के अधीन होंगे।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मलहोत्रा और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सुदर्शन टीवी से 28 सितंबर तक जवाब मांगा गया है। अगर चैनल की तरफ से उत्तर नहीं दिया जाता है तो एक पक्षीय निर्णय लिया जाएगा। तुषार मेहता ने बताया कि केंद्र सरकार ने केबल टेलीविजन नेटवर्क (रेग्यूलेशन) एक्ट, 1995 की धारा 20 की उप धारा (3) के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए सुदर्शन न्यूज को 23 सितंबर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। मेहता ने अदालत से अनुरोध किया कि चूंकि चैनल से 28 सितंबर तक जवाब मांगा गया है, इसलिए इस पर सुनवाई टाल दी जाए। सॉलिसिटर जनरल के अनुरोध पर पीठ ने सुनवाई पांच अक्टूबर तक के लिए टाल दी।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि सरकार अगली सुनवाई के दिन यह रिपोर्ट देगी कि नोटिस का परिणाम क्या हुआ। इसके साथ ही अदालत ने अगले आदेश तक सुदर्शन न्यूज के कार्यक्रम पर रोक भी बरकरार रखी। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि अगर इस मामले की अदालत में सुनवाई नहीं होती तो कार्यक्रम की सभी कड़ियों का प्रसारण हो गया होता। अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप याचिकाएं दायर करने वालों से भी अपना पक्ष रखने को कहा है।
गौरतलब है कि सुदर्शन न्यूज के बिंदास बोल कार्यक्रम में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में एक समुदाय विशेष के अभ्यर्थियों के चयन पर सवाल उठाए गए हैं। जकात फाउंडेशन को विदेश से मिलने वाली आर्थिक मदद और आरक्षण के मुद्दे पर भी सवाल किए गए हैं। अदालत ने पिछली सुनवाई में यह कहा था कि वह कार्यक्रम पर पूरी तरह से रोक लगाने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि इसमें विदेशी मदद और आरक्षण जैसे जनहित के मुद्दे भी शामिल हैं।