बागवानी क्षेत्र की इस योजना को मिल रही सफलता, रेगिस्तान में भी होने लगा संतरे का उत्पादन
कम बारिश और ज्यादा गर्मी वाले राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में देश का सर्वोत्तम संतरा पैदा होने लगा है।
नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की माटी में उम्दा किस्म का संतरा होने लगा है। आंवला व बेल जैसे फल दक्षिणी राज्यों में नहीं होते थे, लेकिन उत्तर प्रदेश से हर साल पहुंच रहे लाखों पौधों से व्यावसायिक खेती होने लगी है। यही हाल केला व अमरूद समेत अन्य कई फलों का है, जो गैर परंपरागत क्षेत्रों में धमाल मचा रहे हैं। इससे किसानों को तो लाभ हो ही रहा है, उपभोक्ताओं को भी उचित मूल्य पर ताजा उत्पाद उपलब्ध हो जा रहे हैं।
देशभर के खानपान में प्रमुखता से शामिल आलू की खेती भी गैर उत्पादक क्षेत्रों में होने लगी है। राजस्थान जैसे गरम प्रदेश में भी आलू की खेती होने लगी है। आइटीसी यहां आलू के उन्नत बीज तैयार कर रही है। यहां की मिट्टी में आलू को नुकसान पहुंचाने वाले रोग व कीटाणु नहीं लगते।
उत्तर प्रदेश में महाराष्ट्र और गुजरात का केला सबसे ज्यादा साल भर आता था, लेकिन अब यहीं इसकी व्यावसायिक बागवानी होने लगी है। मांग के हिसाब से कृषि उत्पाद तैयार करने की देशव्यापी योजना को और बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) में बागवानी के उप महानिदेशक डॉ. एके सिंह वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर उनकी पीठ थपथपाते हुए कहते हैं कि इस अभियान को सघन तरीके से चलाने की जरूरत है। इसके लिए केंद्र सरकार के साथ संबंधित राज्यों को भी आगे आना होगा। इससे किसानों में गैर परंपरागत खेती को बढ़ावा मिलेगा।
उन्होंने गर्व से बताया कि उत्तर प्रदेश में केले की व्यावसायिक खेती नहीं होती थी, लेकिन किसानों को जागरूक करने के साथ इसके फायदे गिनाए गए। नई फसलों की खेती में भरोसा होते ही किसानों ने इसे अपना लिया। केले की सर्वाधिक खेती पूर्वाचल के साथ तराई के जिलों में होने लगी है।
उत्तर भारत की बागवानी उत्पादों में आंवला उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला और बेल लखनऊ और आसपास के जिलों में केंद्रित थी। अब इसकी व्यावसायिक खेती तमिलनाडु और कर्नाटक में भी होने लगी है, जिसका फायदा वहां के किसान उठा रहे हैं। कम बारिश और ज्यादा गर्मी वाले राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में देश का सर्वोत्तम संतरा पैदा होने लगा है।
डॉ. सिंह का कहना है कि पूर्वोत्तर राज्यों में जरूरी खाद्य पदार्थो को पहुंचाने में भारी लागत आती है। स्थानीय स्तर पर खेती होने से जहां उपभोक्ताओं को ताजा उत्पाद सस्ती दर पर मिलने लगेगा, वहीं किसानों को भी फायदा मिलेगा।
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