नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। बीते कुछ सालों में दुनिया भर में ऑनलाइन शिक्षा की मांग तेजी से बढ़ी है। कोरोना के दौर में अपनी काबिलियत को मांझने के लिए प्रोफेशनल्स ने भी इसका सहारा लिया। लेकिन भारत में इसका चलन अधिक तेजी से बढ़ा है। यही कारण है कि ई-लर्निंग अपनाने वालों में भारतीय सबसे आगे हैं, अमेरिका, चीन और ब्रिटेन के लोगों से भी आगे। यह बात स्टेटिस्टा की ग्लोबल कंज्यूमर सर्वे रिपोर्ट में सामने आई है। यह बताती है कि साल 2021 में 69 फीसद भारतीय छात्रों और प्रोफेशनल्स ने ई-लर्निंग को अपनाया। रिपोर्ट के अनुसार ब्राजील के 57 फीसद, चीन के 48 फीसद, साउथ अफ्रीका के 35 फीसद , स्पेन के 34 फीसद, साउथ कोरिया के 23 फीसद, अमेरिका के 22 फीसद और ब्रिटेन के 16 फीसद लोगों ने ई-लर्निंग माध्यम पर भरोसा जताया। रिपोर्ट में हम आगे बता रहे हैं कि उच्च शिक्षा में ऑनलाइन माध्यम की लोकप्रियता कैसे बढ़ रही है, इसके फायदे और चुनौतियां क्या हैं।

भारत में ऑनलाइन लर्निंग के लगभग सभी माध्यम पॉपुलर हैं। बिजनेस या लाइफ कोच से कंसल्ट करना भी यहां काफी लोकप्रिय है। ज्यादातर ई-लर्निंग कोर्स अंग्रेजी में हैं, इसलिए भारत और दक्षिण अफ्रीका के लोगों के लिए इन्हें एक्सेस करना आसान है। वैसे भी जब बात सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी के ऑनलाइन कोर्स की हो, तो ज्यादातर सामग्री अंग्रेजी में ही होती है।

टीचिंग क्वालिटी : करियर काउंसलर जतिन चावला कहते हैं कि ऑनलाइन एजुकेशन का सबसे बड़ा फायदा सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का समान अवसर मुहैया होना है। इससे कोई भी व्यक्ति किसी भी स्तर पर अपनी क्षमता और जरूरत के अनुरुप कोर्स, संस्थान और शिक्षक का चयन कर सकता है।

बच्चों के लिए फायदेमंद : जतिन चावला कहते हैं कि बच्चों के लिए ऑनलाइन एजुकेशन काफी फायदेमंद है। वह रियल टाइम पर नई जानकारियों से अपडेट होते रहते हैं। वहीं टीएनजर्स को ये टेक्नोलॉजी से अपडेट करने में काफी कारगर है।

उच्च शिक्षा पर काफी हद तक हो जाएगी ऑनलाइन

ऑनलाइन शिक्षा का बड़ा फायदा यह है कि दूर के किसी संस्थान से घर बैठे अपनी पसंद का कोर्स कर सकते हैं। इसकी मान्यता भी तेजी से बढ़ी है। इसलिए मार्केट रिसर्च फर्म इप्सोस (IPSOS) के 29 देशों में किए गए सर्वे में युवाओं ने इसे पहली पसंद बताया। सर्वे के अनुसार, 23 फीसद युवा मानते हैं कि आने वाले पांच सालों में उच्च शिक्षा काफी हद तक ऑनलाइन हो जाएगी। सऊदी अरब, भारत, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया के दस में से तीन वयस्क मानते हैं कि उच्च शिक्षा ऑनलाइन हो जाएगी, हालांकि चिली, साउथ कोरिया, जापान और पेरू में ऐसा सोचने वालों की संख्या दस में सिर्फ एक है।

ऑनलाइन ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट की संख्या बढ़ी

कंसल्टेंसी फर्म मैकेंजी की रिपोर्ट बताती है कि 2012 में जहां 0.9 प्रतिशत लोग ऑनलाइन माध्यम से स्नातक होते थे, वहीं परास्नातकों के मामले में यह प्रतिशत 4.6 था। 2019 में 1.3 प्रतिशत स्नातकों और 6.1 प्रतिशत परास्नातकों ने ऑनलाइन पढ़ाई की। रिपोर्ट बताती है कि 2011 से 2021 के बीच मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (MOCCs) के प्रतिभागियों की संख्या तीन लाख से बढ़कर 22 करोड़ हो गई। परंपरागत विश्वविद्यालयों में 2012 और 2019 के बीच हाइब्रिड और डिस्टेंस ऑनली स्टूडेंट्स की संख्या में 36 फीसद का इजाफा हुआ है। 2020 में कोरोना की वजह से यह संख्या 92 फीसद हो गई।

डिजिटल कंटेंट के लिए सरकार तैयार

शिक्षा मंत्रालय के नेशनल रिसोर्स सेंटर ऑफ केमेस्ट्री की कोऑर्डिनेटर डॉ. विमल रार बताती हैं कि मंत्रालय कई साल से अपने कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर पढ़ाई के लिए ई-सामग्री उपलब्ध करा रहा है। डिजिटल कंटेंट की कमी नहीं हैं। उच्च शिक्षा के लिए स्वयं ( SWAYAM) शानदार पहल है। स्वयं प्रभा प्रोग्राम के वीडियो को टीवी चैनलों पर प्रसारित किया जा रहा है। इसके अलावा एनसीईआरटी की दीक्षा, ई-पाठशाला और वर्चुअल लैब हैं।

ई-लर्निंग की जरूरत इसलिए

दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर ई लर्निंग के चेयरमैन डॉ ए के बख्शी ने बताया कि देश में 12 साल पहले से ई लर्निंग के लिए कंटेंट बन रहा है। इसे बढ़ावा देने के दो कारण हैं। पहला, देश में उच्च शिक्षा में पंजीकरण सिर्फ 28 फीसदी है और पढ़ाई के स्तर में भी काफी सुधार की जरूरत है। शिक्षा में इनोवेशन काफी कम है। उच्च शिक्षा की पहुंच ज्यादातर युवाओं तक पहुंचाने के लिए ई लर्निंग की काफी जरूरत है। पर साथ ही ई लर्निंग के कंटेंट की क्वालिटी भी अच्छी होनी चाहिए। अगर कंटेंट खराब होगा तो छात्र समझने की जगह कंफ्यूज हो जाएगा। डॉ बख्शी ने कहा कि कंटेंट में सुधार के लिए 2013-14 से MOOCs पर जोर देना शुरू किया गया। मूक्स में किसी कोर्स के सेमेस्टर और पेपर के हिसाब से कंटेंट बनता है। मतलब दो साल के कोर्स के चार सेमेस्टर में कुल 16 पेपर हैं तो 16 मूक्स तैयार होंगे।

देश में उच्च शिक्षा के करीब 50 फीसदी कोर्स का मूक्स तैयार हो चुका है और बाकी पर काम किया जा रहा है। स्कूल नेट इंडिया की चीफ डिजिटल ऑफिसर शौरी चटर्जी कहती हैं कि आप किसी भी लोकेशन से पढ़ाई कर सकते हैं। यही नहीं, आप पुराने लेक्चर को कभी भी एक्सेस कर सकते हैं। यह फोरम ओपन डिस्कशन के लिहाज से उपयोगी है। ऑनलाइन लर्निंग में छात्र के पास यह विकल्प और सुविधा होती है कि दुनिया भर के श्रेष्ठ एक्सपर्ट्स से वह चीजों को सीख सके।

शारदा यूनिवर्सिटी के कंट्रोलर ऑफ एग्जामिनेशन डा. आर.सी.सिंह का कहना है कि ई-लर्निंग में समय, दिन और तारीख की कोई बाध्यता नहीं है। स्टूडेंट कभी भी, कहीं से अपनी क्लासेज कर सकता है। स्टूडेंट्स की परफॉर्मेंस को कही से ई-ट्रैकिंग के माध्यम से ट्रैक किया जा सकता है। यही नहीं भारत में टीचर्स की उपलब्धता कम होने की स्थिति में यह काफी उपयोगी हो सकता है। छात्र अपनी पसंद के टीचर से पढ़ सकते हैं। यह पर्यावरण के अनुकूल भी होता है क्योंकि यह पेपरलैस स्टडी है।

बनानी होगी वर्चुअल यूनिवर्सिटी

ई लर्निंग विशेषज्ञ डॉ बख्शी के मुताबिक लॉकडाउन ने ई लर्निंग को बढ़ावा देने की एक सीख दी है। अब देश को वर्चुअल यूनिवर्सिटी बनानी चाहिए। इस यूनिवर्सिटी में सामान्य यूनिवर्सिटी की तरह हर कोर्स और उसमें हर तरह की फैकल्टी हो। इससे देश में उच्च शिक्षा को नई ऊंचाइयों तक ले जाया जा सकता है।

बढ़ रही है ऑनलाइन एजुकेशन अपनाने वालों की तादाद

क्यूसेरा की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में कुल 2.1 करोड़ रजिस्टर्ड यूजर्स थे जो कुछ सालों तक क्रमिक अंतराल में बढ़े। 2021 में यह आंकड़ा 9.2 करोड़ तक पहुंच गया। वहीं 2016 में नामांकन कुल 2.6 करोड़ था और 2021 में यह आंकड़ा 18.9 करोड़ हो गया। रिपोर्ट के अनुसार 2021 तक अमेरिका में 1.73 करोड़ और भारत में 1.36 करोड़ लर्नर थे। क्यूसेरा की टॉप-10 लर्नर देशों की सूची में पांचवें नंबर पर चीन था। वहां 33 लाख लर्नर थे। क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डाटा और ई-कॉमर्स, एडवांस इन डिजिटल एनक्रिप्शन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और नॉन ह्यूमेनॉयड रोबोट्स जैसे कोर्स काफी चलन में रहे।

शारदा स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के डीन डा. परमानंद का कहना है कि कोरोना के बाद से पूरी दुनिया में ऑनलाइन शिक्षा तेजी से बढ़ी है। ऑनलाइन एजुकेशन के माध्यम से छात्रों के पास सीखने के अपार अवसर मौजूद है। वह अपनी सुविधा के अनुसार घर में सीख सकते हैं। अपना कम्युनिकेशन स्किल सुधार सकते हैं। वह काम करते हुए अपनी पढ़ाई को जारी रख सकते हैं। उनके पास यह मौका भी होता है कि वह स्टेकहोल्डर से बात कर उनके अनुभवों से चीजों को सीख सकें। परमानंद कहते हैं कि प्रोफेशनल्स के पास अपने करियर और स्किल को तराशने का मौका होता है। यह उन्हें करियर में तरक्की करने में मदद करता है।

परमानंद कहते हैं कि इससे स्टूडेंट्स और प्रोफेशनल्स को अपनी कमियों को सुधारने और बेहतर करने के लिए समय से फीडबैक मिलता है। इसके अलावा प्रोफेशनल्स की लाइफस्टाइल भी इससे प्रभावित नहीं होती है। उनका आवागमन भी इससे प्रभावित नहीं होता है।

गूगल डिजिटल का राज

करियर काउंसलर जतिन चावला कहते हैं कि गूगल डिजिटल (https://learndigital.withgoogle.com/digitalgarage/courses) आपके लिए काफी उपयोगी हो सकता है। इसमें 161 के करीब कोर्स मुफ्त है। इन कोर्सों में करियर डेवलपमेंट, डिजिटल मार्केटिंग, टेक्निकल, पढ़ाई के साथ लाइफ स्किल में भी फायदेमंद होते हैं। यह कोर्स नए जमाने के अनुरुप भी होते हैं। इसका छात्रों को अधिकतम फायदा उठाना चाहिए।

डिजिटल एजुकेशन के फायदे और चुनौतियां

1. ऑनलाइन एजुकेशन की तस्वीर बदलेगी और रोजगार बढ़ेंगेः कोरोना के दौर ने एजुकेशन तकनीक के लिए बदलाव का रास्ता बनाया। तेजी से बढ़ती मांग के चलते इस सेक्टर में रोजगार के काफी अवसर आएंगे।

2. सस्ती होगी शिक्षा, दूसरे देश भी नहीं जाना पड़ेगाः अगर ऑनलाइन एजुकेशन एक मानक बनेगा तो इसके कई और फायदे होंगे, क्योंकि यह काफी सस्ती है। अगर दुनिया की ज्यादातर बड़ी यूनिवर्सिटी ऑनलाइन शिक्षा देने लगें तो छात्रों को पढ़ने के लिए दूसरे देशों में नहीं जाना पड़ेगा। छात्रों को अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा उनके अपने देश में ही मिलेगी।

3. सामाजिक अनुभव कम मिलेगाः दूसरे देशों में शिक्षा के लिए जाने पर सामाजिक अनुभव भी मिलता है। ऑनलाइन पढ़ाई में वह नहीं मिलेगा। कोर्स की मान्यता और गुणवत्ता नियंत्रण की भी समस्या है। क्रॉस इंस्टीट्यूट क्रेडिट सिस्टम पारंपरिक शिक्षा प्रणालियों के लिए भी चुनौती है, और ऑनलाइन एजुकेशन का लचीलापन इसे और खराब बना सकता है। कई यूनिवर्सिटी को शक है कि क्या उनके ऑनलाइन कोर्स परंपरागत कोर्स जितने लोकप्रिय होंगे।

4. व्यावहारिक चुनौतियांः ऑनलाइन पढ़ाई में कई व्यावहारिक चुनौतियां हैं। जैसे इंटरनेट की समस्या, बैकग्राउंड की आवाज और फोकस होने में मुश्किल। ये चीजें छात्र और शिक्षक दोनों पर प्रभाव डालती हैं।

5. ग्रामीण भारत को भी साथ लेकर चलना होगाः कुछ लोगों का मानना है कि ऑनलाइन पढ़ाई केवल विकसित देशों में सफल हो सकता है। भारत जैसे देश में जहां मिड डे मील स्कूली बच्चों के आकर्षण की बड़ी वजह है, उनके लिए ऑनलाइन एजुकेशन फिलहाल असंभव है। ऑनलाइन क्लास के लिए जरूरी है कि बिजली और इंटरनेट कनेक्शन भरोसेमंद हो। ऐसे में अगर ऑनलाइन एजुकेशन एकाएक बढ़ता है तो कम आय वाले परिवारों, पिछड़े जिलों में लर्निंग गैप बढ़ जाएगा।

6.क्वालिटी एजुकेशन : करियर काउंसलर जतिन चावला कहते हैं कि ऑनलाइन एजुकेशन का फायदा यह है कि हर व्यक्ति को अपनी आवश्यकता, स्किल के अनुरुप गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सकें।

7. छात्रों के लिए फायदेमंद : जतिन चावला कहते हैं कि ऑनलाइन एजुकेशन बच्चों के लिहाज से काफी फायदेमंद है। वह लेटेस्ट जानकारी से रियल टाइम पर अपडेट होते रहते हैं। वहीं टीएनजर्स टेक्नोलॉजी और सॉफ्ट स्किल की जानकारी पाते रहते हैं। चावला कहते हैं कि युवाओं को जॉब में इंटरपर्सनल और कम्युनिकेशन को सुधारने में यह काफी मददगार होता है। जॉब करने वाले लोगों के लिए भी यह काफी बेहतर है। वह बताते हैं कि कई बार ऐसा होता है कि किसी वजह से हम कोई जॉब शुरु कर देते हैं लेकिन उसकी पूरी क्वालिफिकेशन हमारे पास नहीं होती है ऐसे में आपके आगे बढ़ने के रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं। इसमें  ऑनलाइन एजुकेशन काफी लाभकारी होता है। वह आपको इस बात का मौका देता है कि आप अपने सेक्टर और स्किल के अनुसार सर्टिफिकेट, डिग्री और डिप्लोमा नौकरी करते हुए कर सकें।