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तंत्र के गण: आइईडी ब्लास्ट में पांच जगह से टूट गई थीं हड्डियां, लेकिन छह माह में दोबारा पहुंच गए मोर्चे पर

नक्सल ऑपरेशन के एएसपी गोरखनाथ बघेल के साहस की कहानियां सुन लोग दंग रह जाते हैं। नक्सलियों ने उनके वाहन को आइईडी ब्लास्ट कर उड़ा दिया था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 25 Jan 2019 12:59 PM (IST)Updated: Fri, 25 Jan 2019 01:02 PM (IST)
तंत्र के गण: आइईडी ब्लास्ट में पांच जगह से टूट गई थीं हड्डियां, लेकिन छह माह में दोबारा पहुंच गए मोर्चे पर
तंत्र के गण: आइईडी ब्लास्ट में पांच जगह से टूट गई थीं हड्डियां, लेकिन छह माह में दोबारा पहुंच गए मोर्चे पर

दंतेवाड़ा, योगेन्द्र ठाकुर। बेमिसाल बहादुरी देखनी हो तो दंतेवाड़ा आइए। यहां नक्सल ऑपरेशन के एएसपी गोरखनाथ बघेल के साहस की कहानियां सुन लोग दंग रह जाते हैं। नक्सलियों ने उनके वाहन को आइईडी ब्लास्ट कर उड़ा दिया था। उनके नौ जवान आंखों के सामने शहीद हो गए। बारह गंभीर रूप से घायल थे। खुद उनके शरीर की पांच जगह की हड्डियां टूट गई थीं।

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कभी भागकर मत आना...
अस्पताल में भर्ती थे तो पिता की यह बात कानों में गूंजती रहती थी, बेटा, पुलिस की नौकरी में जाना तो कभी भागकर मत आना...। छह महीने में ही वे दोबारा दोगुने उत्साह से नक्सल मोर्चे पर डट गए। गणतंत्र दिवस समारोहों में पुरस्कृत होना उनके लिए आए दिन की बात बन गया है। वर्ष 2018 में उन्हें वीरता अवार्ड से नवाजा गया है। राज्य सरकार और विभागीय ढेरों पुरस्कार उनके पास हैं।

दिलाई बड़ी सफलताएं
एएसपी गोरखनाथ बघेल के निर्देशन में दंतेवाड़ा की फोर्स जंगलों में नक्सलियों के चक्रव्यूह को तोड़ने में सफल रही। बस्तर का यह बेटा लाल लड़ाकों की रणनीति को अच्छे से समझता है। दक्षिण बस्तर में कुन्नडब्बा, नागुलगुड़ा, तर्रेमपारा व फरसपाल घाट जैसी बड़ी मुठभेड़ में इनकी बनाई रणनीति से ही पुलिस ने बड़ी सफलता पाई।

इस घटना ने बनाया मजबूत
बघेल बताते हैं कि 17 जुलाई 1991 को बालाघाट जिले में घाघरा-सीतापाल के बीच लांजी थाना क्षेत्र में नक्सलियों ने एक ट्रक को जला दिया था। फोर्स लेकर वे बस से निकले। रास्ते में माओवादियों ने लैंडमाइंस से ब्लास्ट कर बस को उड़ा दिया। 21 साथियों में नौ मौके पर ही शहीद हो गए। उनके समेत सभी 12 साथी घायल थे। बकौल बघेल, शरीर की हड्डियां पांच जगहों से टूट गई थीं। पिता मुझे देखने अस्पताल पहुंचे। बेड के करीब आए और कहा, बेटा, यह तो पहला झटका है। ऐसे झटके देश सेवा के लिए अवार्ड हैं।

संघर्ष ने बनाया बहादुर
केशकाल ब्लॉक के छोटे से गांव में जन्मे बघेल ने लाल आतंक को करीब से देखा है। चिमनी की रोशनी में पढ़ाई की। मजदूरी कर कॉलेज की फीस चुकाई। तेंदूपत्ता फड़ में मुंशी का काम किया। इन्हीं संघर्षों ने उन्हें बहादुर बनाया। स्नातक की पढ़ाई के दौरान उन्हें सब इंस्पेक्टर और पंचायत इंस्पेक्टर दोनों परीक्षाओं में सफलता मिली। ऐसे में उन्होंने देशसेवा को ही चुना।


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