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आंकड़े बताते हैं उत्पीड़न के ज्यादातर मामले झूठे

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के मामले में फैसला सुनाते हुए अभियुक्तों के खिलाफ एससी-एसटी कानून में दर्ज मामला रद कर दिया है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Tue, 20 Mar 2018 09:26 PM (IST)Updated: Tue, 20 Mar 2018 09:26 PM (IST)
आंकड़े बताते हैं उत्पीड़न के ज्यादातर मामले झूठे
आंकड़े बताते हैं उत्पीड़न के ज्यादातर मामले झूठे

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अपराध के बारे में क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े देखने से पता चलता है कि एससी-एसटी एक्ट में दर्ज ज्यादातर मामले झूठे पाए गए। कोर्ट ने कुछ आंकड़े फैसले में शामिल किये हैं जिसके मुताबिक 2016 में पुलिस जांच में अनुसूचित जाति को प्रताडि़त किये जाने के 5347 केस झूठे पाए गए जबकि अनुसूचित जनजाति के कुल 912 मामले झूठे पाए गए। इतना ही नहीं वर्ष 2015 में एससी-एसटी कानून के तहत अदालत ने कुल 15638 मुकदमें निपटाए जिसमें से 11024 केस में अभियुक्त बरी हुए या आरोपमुक्त हुए। जबकि 495 मुकदमे वापस ले लिए गए। सिर्फ 4119 मामलों में ही अभियुक्तों को सजा हुई। ये आंकड़े 2016-17 की सामाजिक न्याय विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में दिए गए हैं।

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क्या था मामला

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के मामले में फैसला सुनाते हुए अभियुक्तों के खिलाफ एससी-एसटी कानून में दर्ज मामला रद कर दिया है। पुणे के इस मामले में दो अधिकारियों ने शिकायतकर्ता की सर्विस की गोपनीय रिपोर्ट में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज करते हुए कहा था कि उसका चरित्र और निष्ठा अच्छी नहीं है। इस पर शिकायतकर्ता ने अधिकारी के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा किया। मामले की जांच के बाद पुलिस ने अधिकारी पर आरोपपत्र दाखिल करने के लिए सरकार से मंजूरी मांगी तो निदेशक स्तर के अधिकारी ने मुकदमे की मंजूरी देने से इन्कार कर दिया।

शिकायतकर्ता ने बाद में इस अधिकारी के खिलाफ भी एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा किया। हाईकोर्ट ने जब अधिकारी के खिलाफ मुकदमा रद करने की मांग खारिज कर दी तो अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।


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