GST क्षतिपूर्ति की अवधि में पांच साल का विस्तार चाहते हैं राज्य
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बजट पूर्व बैठक में विपक्ष शासित राज्यों ने पुरजोर तरीके से रखी मांग। विपक्ष शासित राज्यों के साथ कुछ भाजपा सरकार वाले राज्यों भी समर्थन में। अधिभार लगाने की केंद्र की प्रवृत्ति को लेकर भी राज्य असहज।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोविड महामारी की वजह से केंद्र व राज्यों के राजस्व पर जो असर पड़ा है उसका कुछ प्रभाव शुक्रवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ राज्यों के वित्त मंत्रियों की बजट पूर्व बैठक में भी साफ दिखाई पड़ा। सिर्फ कांग्रेस व दूसरे गैर भाजपाई राज्यों की तरफ से ही नहीं बल्कि कुछ भाजपा शासित राज्यों ने भी राजस्व के मोर्चे पर उत्पन्न चुनौतियों को देखते हुए केंद्र के राजस्व संग्रह में ज्यादा हिस्सेदारी की बात रखी। इसी तरह से केंद्र सरकार की तरफ से कुछ महत्वपूर्ण उत्पादों पर अधिभार लगाने की बढ़ती प्रवृत्ति के खिलाफ भी गैर भाजपा शासित राज्यों ने उठाया तो कुछ भाजपा शासित राज्यों ने भी परोक्ष तौर पर इस मुद्दे पर समर्थन किया। कई राज्यों की तरफ से जीएसटी क्षतिपूर्ति की अवधि पांच वर्ष और बढ़ाने की मांग बहुत ही जोरदार तरीके से रखी गई।
कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़, आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार और भाजपा-शिंदे गठबंधन की महाराष्ट्र सरकार, हरियाणा सरकार के प्रतिनिधियों ने बैठक में कहा कि मौजूदा हालात को देखते हुए केंद्र को अतिरिक्त राजकोषीय मदद की घोषणा करनी चाहिए।बैठक को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री (वित्त मंत्रालय का प्रभार) भूपेश बघेल ने अपने भाषण में जीएसटी कंपनसेशन की अवधि को पांच वर्ष और बढ़ाते हुए इसे वर्ष 2026-27 तक लागू करने की मांग की।
अपने राज्यों के कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की घोषणा करने वाले बाघेल ने केंद्र सरकार से यह भी अपील की है कि नई पेंशन स्कीम में उनके राज्य के कर्मचारियों की तरफ से दी गई 17,240 करोड़ रुपये की राशि को राज्य को लौटा देनी चाहिए ताकि इस फंड से एक अतिरिक्त फंड का निर्माण हो और भविष्य में भविष्य निधि व पेंशन भुगतान में मदद मिले।
इस फंड का इस्तेमाल राज्य सरकार केंद्र व राज्यों के बांड्स में निवेश में करेगी। जीएसटी क्षतिपूर्ति की अवधि बढ़ाने की दूसरी मांग केरल की तरफ से आया। केरल के वित्त मंत्री के एन बालागोपाल की तरफ से दूसरी अहम मांग यह आई कि सामान व सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में राज्यों की मौजूदा हिस्सेदारी 50 फीसद को बढ़ा कर 60 फीसद कर देनी चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो केंद्र को अपनी हिस्सेदारी 50 फीसद से घटा कर 40 फीसद करनी होगी। बैठक में कुछ उत्पादों व सेवाओं पर अधिभार लगाने की बढ़ती प्रवृत्ति का मुद्दा भी उठाया गया।
दरअसल, अधिभार से अर्जित संग्रह में केंद्र सरकार को राज्यों को हिस्सेदारी नहीं देनी पड़ती है। उदाहरण के तौर पर सामान्य पेट्रोल पर अभी केंद्र सरकार की तरफ से कुल 19.90 रुपये प्रति लीटर का शुल्क लगाया जाता है जिसमें 7.50 रुपये प्रति लीटर का अधिभार है। सामान्य डीजल पर कुल 15.80 रुपये प्रति लीटर का शुल्क लगाया जाता है जबिक इसमें छह रुपये प्रति लीटर अधिभार के तौर पर है।
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तमिलनाडु, बिहार, आंध्र प्रदेश, मेघालय की तरफ से इस मुद्दे को उठाया गया। बाद में तमिलनाडु के वित्त मंत्री पलानीवेल थियागराजन ने कहा कि वर्ष 2011-12 में केंद्र के कुल राजस्व में अधिभार व सरचार्ज की हिस्सेदारी 10.4 फीसद थी जो वर्ष 2021-22 26.7 फीसद हो गई है। इससे केंद्र के राजस्व में राज्यों के वैधानिक हिस्सेदारी पर विपरीत असर पड़ा है। राज्यों के वित्त मंत्रियों के साथ वित्त मंत्री की इस तरह की सालाना बैठक हर साल आम बजट की तैयारियों के संदर्भ में होती है।
आम बजट 2023-24 संभवत: एक फरवरी, 2023 को पेश की जाएगी। शुक्रवार की बैठक में राज्यों के वित्त मंत्रियों के अलावा, कुछ राज्यों के मुख्य मंत्री, उप मुख्य मंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के वरिष्ठ अधिकारी समेत वित्त मंत्रालय के आला अधिकारी उपस्थित थे।
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