छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष: साल वनों के द्वीप से सिमट रहे आदिवासियों के 'कल्पवृक्ष'
करीब पांच सौ साल तक जीवित रहने वाला साल का वृक्ष आदिवासियों की जिंदगी से जुड़ा है। वनाधिकार पट्टे के लिए वनों में अतिक्रमण की बाढ़ आ गई है।
अनिल मिश्रा, जगदलपुर। साल के पेड़ को आदिवासियों का कल्प वृक्ष और बस्तर को साल वनों का द्वीप भी कहा जाता है। कहने को तो साल छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष है, लेकिन इससे विकास व संरक्षण में मदद नहीं मिल पाई है। साल को बस्तर में सरई भी कहा जाता । यह आदिवासियों के लिए पूजनीय है, क्योंकि आधा दर्जन से ज्यादा उत्पाद इसी एक पेड़ से मिलते हैं। विडंबना ही है कि साल दर साल कूप की कटाई, वनों में अतिक्रमण व अवैध कटाई की वजह से साल के जंगल खत्म हो रहे हैं।
दो दशक में लाखों पेड़ काटे जा चुके हैं
साल के पौधे नैसर्गिक रूप से उगते हैं। बीते दो दशक में साल के लाखों पेड़ काटे जा चुके हैं। इसके बदले में रोपण का प्रयास किया जा रहा है, पर रोपण की सफलता की दर कम है। साल का वैज्ञानिक नाम शोरिया रोबस्टा है। यह डिप्टेरोकापैसी कुल का सदस्य है।
500 साल तक जीवित रहने वाला यह वृक्ष आदिवासियों की जिंदगी संवारता है
करीब पांच सौ साल तक जीवित रहने वाला साल का वृक्ष आदिवासियों की जिंदगी से जुड़ा है। इससे इमारती व जलाऊ लकड़ी, साल का बीज, धूप, दोना-पत्तल बनाने के लिए उपयोगी पत्ते, दातून व कई तरह की औषधियां मिलती हैं। साल वृक्ष के नीचे एक विशेष तरह का मशरूम मिलता है जिसे बस्तर में बोड़ा कहा जाता है। इसकी सब्जी राजसी मानी जाती है। यह इतना उपयोगी वृक्ष है कि जिस व्यक्ति की निजी भूमि पर यह होता है वह गौरवान्वित महसूस करता है। बस्तर वन वृत्त में करीब दो हजार किमी क्षेत्र में साल के वन थे। बढ़ती जनसंख्या, गांवों व शहरों का विकास व अतिक्रमण की वजह से इसका रकबा 895.076 वर्ग किमी रह गया है। वनाधिकार पट्टे के लिए वनों में अतिक्रमण की बाढ़ आ गई है। इससे साल वनों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
साल पर अनुसंधान नहीं
राज्य वन्य प्राणी बोर्ड के सदस्य हेमंत कश्यप कहते हैं कि साल का रोपण तो किया जा रहा है पर जितने कूप काटे जाते हैं उसकी तुलना में जंगल का उतना विकास नहीं हो पाता है। उन्होंने कहा कि बस्तर के लोग वर्षों से साल अनुसंधान केंद्र खोलने की मांग कर रहे हैं। सरकार इस पर ध्यान नहीं देती। साल को बचाने के लिए इसके बीजों को मिट्टी में दबाना जरूरी है। साल बीज और कूप कटाई से होने वाली आय के लालच में जंगलों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है।
दातून के लिए काटी जा रही शाखाएं
साल के नए पौधे विकसित नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि सरई की दातौन का उपयोग बस्तर में सभी करते हैं। साााहिक हाट बाजार में दातून बेची जाती है। ग्रामीण प्रतिदिन हजारों साल की शाखाओं को काटकर बेचने ले जाते हैं। पतली शाखाओं के कटने से पौधों का विकास नहीं हो पाता है।