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1918 में फ्लू से हुई थी दुनिया की ढाई फीसद आबादी की मौत, इनमें शामिल थे 18 लाख भारतीय

1918 में स्‍पेनिश फ्लू की वजह से भारत में 18 लाख लोगों की मौत हुई थी। वहीं पूरी दुनिया की करीब ढाई फीसद आबादी इसकी वजह से काल के ग्रास में समा गई थी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 26 Apr 2020 12:01 PM (IST)Updated: Sun, 26 Apr 2020 12:01 PM (IST)
1918 में फ्लू से हुई थी दुनिया की ढाई फीसद आबादी की मौत, इनमें शामिल थे 18 लाख भारतीय
1918 में फ्लू से हुई थी दुनिया की ढाई फीसद आबादी की मौत, इनमें शामिल थे 18 लाख भारतीय

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। महामारी हमारी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था के साथ रहन-सहन, जीवन जीने के तरीके और कार्य व्यवहार में 360 डिग्री का बदलाव लाती है। ये सब आज हम देख रहे हैं। ये बदलाव कितना स्थायी रूप ले पाते हैं, ये अभी भविष्य के गर्त में समाया हुआ है, लेकिन अतीत के अनुभवों के आधार पर कोविड-19 के हर क्षेत्र में पड़ने वाले स्थायी असर की तस्वीर पेश की जा सकती है।

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1918 के फ्लू जैसी कोविड

1918 में फैले स्पेनिश फ्लू ने पांच करोड़ जिंदगियां लील ली। उस समय की दुनिया की आबादी में यह 2.5 फीसद हिस्सेदारी थी। इसमें 18 लाख भारतीय मारे गए थे। यह किसी भी देश में मौतों का सर्वाधिक आंकड़ा था। अपने तीन हमलों में इसने दुनिया को झकझोर दिया।1918 के शुरुआती महीनों में इसका पहला लेकिन हल्का प्रकोप हुआ। अगस्त के आखिरी दिनों में दूसरा घातक प्रहार किया। 1919 के शुरुआती महीनों में इसका तीसरा और आखिरी हमला हुआ जिसकी भयावहता पहले और दूसरे चरण के मिले-जुले स्तर की रही।

मध्य सितंबर और मध्य दिसंबर 1918 के बीच के 13 हफ्तों में इसने सबसे ज्यादा जानें लीं। 14वीं सदी में ब्लैक डेथ महामारी के बाद अब तक ज्ञात इंसानी इतिहास में ये सबसे खतरनाक महामारी रही। कोविड-19 से समानताएं स्पैनिश फ्लू और कोविड-19 अलग रोग हैं, लेकिन इसमें कई समानताएं हैं। सांस से फैलते हैं। सतह को छूने से संक्रमण होता है। दोनों वायरस जनित हैं। दोनों बहुत संक्रामक हैं। दोनों को भीड़ का रोग (क्राउड डिजीज) कहते हैं। बदल गया

इलाज का तौर-तरीका

1918 में वायरस की संकल्पना एकदम नई थी। जब इससे संक्रमित फ्लू महामारी फैली तो सारा चिकित्सा क्षेत्र अवाक रह गया। उनके पास जांच के साधन नहीं थे। कोई टीका नहीं था। एंटी वायरल दवा या एंटीबायोटिक का भी अभाव था। शारीरिक दूरी और क्वारंटाइन जैसे पब्लिक हेल्थ उपायों का सहारा लिया गया। ये भी देर से उठाए गए। इसी महामारी के बाद तमाम देश सभी के लिए सोशलाइज्ड मेडिसिन-हेल्थकेयर की शुरुआत पर विवश हुए। रूस पहला देश बना जिसने केंद्रीयकृत हेल्थकेयर प्रणाली की शुरुआत की। धीरे-धीरे जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन इसके अनुगामी बने।

अमेरिका ने एक दूसरा रास्ता अख्तियार किया। इसने नियोक्ता आधारित इंश्योरेंस स्कीम लागू की। कमोबेश सभी देशों ने अपने हेल्थकेयर को मजबूत और विस्तार करने का काम शुरू किया। 1920 में कई देशों ने स्वास्थ्य मंत्रालयों का गठन किया गया। इसी दौरान तबके लीग आफ नेशंस (अब संयुक्त राष्ट्र) की वैश्विक स्वास्थ्य पर नजर रखने की एक शाखा भी खुली जिसे आज विश्व स्वास्थ्य संगठन के नाम से हम सब जानते हैं।

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