Move to Jagran APP

क्रिप्टोग्राफी उपकरण के अवैध आयात के प्रयास की सीबीआइ जांच पर विशेष अदालत ने उठाए सवाल

अदालत ने संक्षिप्त लेकिन सारगर्भित टिप्पणियों में कहा कि इस मामले में राष्ट्र की सुरक्षा और संरक्षा के लिए गंभीर खतरा शामिल है जिसकी गहरी जांच की आवश्यकता है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी (आइओ) ने जांच में जरा भी गंभीरता नहीं बरती।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 10:10 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 10:10 PM (IST)
क्रिप्टोग्राफी उपकरण के अवैध आयात के प्रयास की सीबीआइ जांच पर विशेष अदालत ने उठाए सवाल
1996 में मामला संज्ञान में आने पर मच गया था तहलका (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, प्रेट्र। नेशनल सिक्योरिटी ग्रुप (एनएसजी) के फर्जी दस्तावेजों के सहारे 1995 में जर्मन कंपनी सीमेंस से एन्कि्रप्शन सिस्टम खरीदने के मामले की सीबीआइ जांच में लापरवाही बरते जाने पर यहां की एक विशेष अदालत ने जांच एजेंसी की जमकर खिंचाई की। जांच निष्कर्षो को बकवास बताते हुए अदालत ने इस मामले के आरोपित हरीश गुप्ता को आरोपमुक्त कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने जांच अधिकारी और चार्जशीट अग्रसारित करने वाले अधिकारियों (यदि सेवा में हों) के खिलाफ नियमानुसार जांच शुरू करने को सीबीआइ के निदेशक को फैसले की प्रति भेजी है।

loksabha election banner

अदालत ने संक्षिप्त लेकिन सारगर्भित टिप्पणियों में कहा कि इस मामले में राष्ट्र की सुरक्षा और संरक्षा के लिए गंभीर खतरा शामिल है, जिसकी गहरी जांच की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी (आइओ) ने जांच में जरा भी गंभीरता नहीं बरती।

आरोपित को रिहा करते हुए विशेष जज हरीश कुमार ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी ने जानबूझकर या किसी बड़े अधिकारी के इशारे पर गंभीरता से जांच नहीं की। ऐसे में इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि ये सब आरोपित या असली अपराधी की खाल बचाने के लिए किया गया।

उल्लेखनीय है अप्रैल 1996 में जब देश भर में संसदीय चुनाव की सरगर्मी थी एनएसजी स्क्वाड्रन कमांडर विमल सत्यार्थी को बेल्जियम दूतावास से एक पत्र मिला जिसमें उन्हें सीमेंस एनवी, जर्मनी से एन्कि्रप्शन उपकरण के आयात के लिए अंतिम उपयोगकर्ता प्रमाणपत्र (एंड यूजर सर्टिफिकेट) फिर से जारी करने के लिए कहा गया था।

यह उपकरण किसी देश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ही बेचा जा सकता था। वास्तविकता में सत्यार्थी ने इंटरसेप्शन उपकरण के लिए कोई एंड यूजर सर्टिफिकेट जारी नहीं किया था।

इस पत्र से सुरक्षा प्रतिष्ठान में तहलका मच गया। बेल्जियम दूतावास की विज्ञप्ति का मतलब था कि कोई व्यक्ति 18 दिसंबर, 1995 के फर्जी एंड यूजर सर्टिफिकेट की मदद से उपकरण आयात करने का प्रयास कर रहा था।

एक आंतरिक जांच के बाद एनएसजी के तत्कालीन महानिदेशक एके टंडन ने नौ मई, 1996 को गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर मामले की जानकारी दी।

गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव यूके सिन्हा ने एंड यूजर सर्टिफिकेट के साथ बेल्जियम के दूतावास के टंडन के पत्रों की प्रति संलग्न की और 28 मई, 1996 को सीबीआई को जांच सौंप दी। सीबीआइ ने लगभग दो महीने बाद प्रारंभिक जांच शुरू की जिसके बाद 12 अक्टूबर 1996 को प्राथमिकी दर्ज की गई।

जांच के दौरान, सत्यार्थी ने सीबीआइ को बताया कि एनएसजी को विदेश मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव ईएसएल नरसिम्हन का एक पत्र मिला जिसमें बताया गया कि हरीश गुप्ता नाम के एक शख्स ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर यह उपकरण आयात करने का प्रयास किया जिसे केवल किसी देश की प्रवर्तन एजेंसियां ही हासिल कर सकती हैं। उल्लेखनीय है नरसिम्हन तेलंगना और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी रहे हैं।

सीबीआइ ने दावा किया कि गुप्ता, सरकारी एजेंसियों जैसे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, एनएसजी, आदि से जुड़े अपने ग्राहकों के साथ काउंटर-निगरानी उपकरणों के आयात का काम कर रहा था।

सीबीआइ ने आरोप लगाया कि गुप्ता ने सीमेंस से दो एन्कि्रप्शन सिस्टम - टी1285 सीए, जिसमें की जेनरेशन प्रोग्राम सीजीपी 2002 और क्रिप्टो फिल डिवाइस सीईडी 2001 शामिल हैं, आयात करने का प्रयास किया था। इसके लिए किसी राष्ट्रीय प्रवर्तन एजेंसी को एंड यूजर सर्टिफिकेट की जरूरत होती थी।

सितंबर 1998 में दायर सीबीआइ की चार्जशीट के अनुसार, गुप्ता ने सीमेंस को फर्जी प्रमाण पत्र सौंपा जिसे कथित तौर पर एनएसजी के सत्यार्थी द्वारा जारी किया बताया गया था। मुकदमे के दौरान सीबीआई ने 11 गवाह पेश किए, जिनमें नरसिम्हन, गृह मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव यू के सिन्हा और एनएसजी के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे।

चार्जशीट दाखिल करने के लगभग 22 साल बाद, ट्रायल कोर्ट ने गुप्ता को धोखाधड़ी (420 आइपीसी) के आरोप से बरी कर दिया, लेकिन 22 दिसंबर, 2021 को उसे जालसाजी (468 आइपीसी) का दोषी ठहराया और तीन साल की सजा और 10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।

गुप्ता ने सीबीआइ के विशेष जज के समक्ष अपील दायर की जिन्होंने उसे जालसाजी के आरोप से बरी कर सजा को रद कर दी। गुप्ता को बरी करते हुए, विशेष अदालत ने कहा कि सीबीआइ जांच अधिकारी अखिल कौशिक ने सत्यार्थी को छोड़कर सीआरपीसी की धारा 161 के तहत किसी और गवाह के बयान दर्ज नहीं किए। इस मामले में गुप्ता का नाम कैसे सामने आया इस पर भी कोई रोशनी नहीं डाली गई है। अदालत ने कहा कि नरसिम्हन के एक पत्र को छोड़ जिसमें गुप्ता के जाली एंड यूजर सर्टिफिकेट का उपयोग करने के बारे में सुनी सुनाई बात का जिक्र था, रिकार्ड में ऐसा कुछ भी नहीं था जिस पर सीबीआई निष्कर्ष निकाल पाती कि इस मामले के पीछे हरीश का ही हाथ है। जांच अधिकारी ने बेल्जियम के दूतावास या सीमेंस से कोई जांच नहीं की और नरसिम्हन से भी मुलाकात कर कोई बयान दर्ज नहीं किया।

जज ने सीबीआइ निदेशक से जांच अधिकारी और चार्जशीट अग्रसारित करने वाले अधिकारियों के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई शुरू करने और जांच की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए कदम उठाने की अपेक्षा की है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.