अब सौर ऊर्जा से भी चलेगा चरखा
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को प्रिय रहा चरखा अब हाथ से नहीं, बल्कि सौर ऊर्जा से चलेगा। इस नई तकनीकी से न सिर्फ खादी को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ग्रामीण स्तर पर सूत के उत्पादन को भी बढ़ाया जा सकेगा। तापी नदी के तट पर बसे सूरत शहर ने इस तकनीकी का
सूरत, नई दुनिया ब्यूरो। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को प्रिय रहा चरखा अब हाथ से नहीं, बल्कि सौर ऊर्जा से चलेगा। इस नई तकनीकी से न सिर्फ खादी को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ग्रामीण स्तर पर सूत के उत्पादन को भी बढ़ाया जा सकेगा। तापी नदी के तट पर बसे सूरत शहर ने इस तकनीकी का उपहार पूरे देश को दिया है।
सूरत के टेक्सटाइल इंजीनियरिंग एसोसिएशन को इस तकनीक को विकसित करने में सफलता मिली है। केंद्र सरकार इस तकनीकी की मदद से ग्रामीण इलाकों में खादी कपड़ा निर्माण को और विकसित करने की सोच रही है।
एसोसिएशन के प्रमुख हेतलभाई मेहता के अनुसार, इस तकनीक से बड़े बदलाव आने की उम्मीद है। इससे न केवल सूत कातने की गति में बढ़ोतरी होगी, बल्कि देश में सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों में भी सफलता मिल सकती है। साथ ही सूरत शहर भी देश में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल में नए मानक स्थापित करने में कामयाब हो सकता है।
बैट्री से भी चलेगा चरखा
अंबर चरखा सिर्फ 4500 आरपीएम (रिवॉल्यूशन पर मिनट), हाथ चरखा 1500 आरपीएम और सोलार चरखा 12000 आरपीएम की गति से चल सकता है। जबकि अंबर चरखा में 8 और सोलार चरखा में 32 स्पिंडल होते हैं। इसलिए सोलर एनर्जी से 150 एंपीयर की बैट्री को चार्ज करके उसका उपयोग चरखा में किया जाएगा। इस बैट्री का उपयोग लगभग सात घंटे तक किया जा सकता है और अगर अधिक समय चरखा चलाना हो तो अतिरिक्त बैट्री का इस्तेमाल किया जा सकता है। चरखे की कीमत लगभग 1 लाख रुपये होगी।