सीधी अपने लाल पर न्यौछावर
रीवा चार महीने के अबोध भास्कर को नहीं पता उसके पिता दूसरी दुनिया में चले गए हैं। वह टुकुर-टुकुर हर आने-जाने वाले को देखता है-दुलारे जाने पर निश्छल मुस्कान भी छोड़ता है। नन्हा भास्कर पाकिस्तानी सीमा पर शहीद हुए सुधाकर सिंह का इकलौता बेटा है।
[नीलांबुज पांडे], रीवा। चार महीने के अबोध भास्कर को नहीं पता उसके पिता दूसरी दुनिया में चले गए हैं। वह टुकुर-टुकुर हर आने-जाने वाले को देखता है-दुलारे जाने पर निश्छल मुस्कान भी छोड़ता है। नन्हा भास्कर पाकिस्तानी सीमा पर शहीद हुए सुधाकर सिंह का इकलौता बेटा है। वह पैदा होने के बाद चंद रोज ही पिता की गोद में हाथ-पांव चला पाया।
भास्कर अपनी मां दुर्गा के साथ नाना मानेंद्र सिंह के घर में रहता है, जहां उसकी मां बीकॉम की पढ़ाई कर रही हैं। सुधाकर मध्य प्रदेश के सीधी जिले के डढि़या गांव के रहने वाले थे। मंगलवार को पाकिस्तानी सैनिकों ने बर्बरता की हद लांघते हुए नियंत्रण रेखा पर दो भारतीय सैनिकों को मारकर उनके सिर काट लिए थे। शहीद सुधाकर सिंह का सिर अभी तक नहीं मिला है। शहीद के ससुर मानेंद्र सिंह का कहना है,सुधाकर के शहीद होने पर मुझे गर्व है उसने देश की रक्षा के लिए बलिदान दिया है। हमें पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाने की बात नहीं करनी चाहिए बल्कि उसे मुंह तोड़ जवाब देना चाहिए। मैं फौज से रिटायर हुआ हूं और यदि जरूरत पड़ी तो देश के लिए फिर लड़ूंगा।
मानेंद्र सिंह ने कहा, सुधाकर उनका दामाद नहीं बेटा था। जिस धरोहर को वह छोड़कर गया है उसे मैं ताउम्र संभालकर रखूंगा। भास्कर को देश सेवा के लिए प्रेरित कर फौज की नौकरी में भेजूंगा। ताकि वह अपने पिता का नाम रोशन कर सके। घटना की खबर लगते ही पूरे विंध्य क्षेत्र में मातम छा गया है वहीं उनके गांव डढि़या स्थित घर पर पहुंचने वालों का तांता लग गया। पिता सच्चिदानंद सिंह बेटे की मौत की सूचना से हिल गए, लेकिन जल्द ही उन्होंने खुद को संभाला और बोले, उन्हें बेटे की मौत पर गर्व है। शहीद सुधाकर सिंह के बाबा शीलभान सिंह भी फौज में थे। सुधाकर सात जनवरी को ड्यूटी के बाद घर के लिए रवाना होने वाले थे। सात जनवरी को उनका ट्रेन में रिजर्वेशन था लेकिन नीयति को कुछ और मंजूर था। घर के लिए रवाना होने से कुछ घंटों पहले ही वह पाकिस्तानी सैनिकों की बर्बरता के शिकार हो गए। पुत्र भास्कर का जन्म होने के बाद वह पिछली बार 19 सितंबर को छुट्टी पर आए थे और करीब एक महीने तक अपने पैतृक गांव और ससुराल में रहे थे। अब उनका शव दस जनवरी गुरुवार को आएगा।
बेटे की शहादत से गर्वान्वित हुई ब्रजभूमि
मथुरा में बुधवार सुबह जब सूरज ने आंखें खोलीं तो कोसीकलां के लोगों के लिए इतिहास बदल चुका था। दूरदराज में बसे गांव खैरार के एक घर का बेटा पूरे देश का सपूत बन गया था। वह भी महज तीस साल की उम्र में। हेमराज से हर कोई अपना रिश्ता जोड़ना चाह रहा था। खैरार ही नहीं आसपास के गांवों के लोग भी यह बताना नहीं भूल रहे थे कि पिछली बार छुट्टी पर आए हेमराज ने उनसे क्या कहा था।
कोई हेमराज का छुटपन याद कर रहा था तो कोई उनका विद्यार्थी जीवन। कोई सेना की वर्दी में सजे उनके व्यक्तित्व को जेहन में टटोल रहा था तो कोई उनके बांकेपन पर फिदा था। जितने मुंह-उतनी बातें। सच ही कहा गया है, शहादत होती ही है इतनी गौरवशाली कि जीते-जी लोग उसकी कल्पना से रोमांचित हो उठते हैं। अपनी धरती पर आए दुश्मन से दो-दो हाथ करते हुए शहीद हुए लांसनायक हेमराज की खबर जिसने सुनी, उसके पांव उनके घर की ओर मुड़ गए। वीरगति पाए योद्धा के दर को सलाम करने के लिए मेला लग गया। गांव की हद छोटी पड़ गई, जनसैलाब उसके बाहर तक हिलोरे ले रहा था। सायंकाल शहीद का शव आने तक लोगों का हुजूम डटा रहा।
मौके पर मौजूद डीएम समीर वर्मा और एसएसपी प्रदीप कुमार ने गांव के बुजुर्गो से बात करके शव पेटिका को खुलने नहीं दिया। माना जा रहा है कि शहीद के छत-विक्षत शव को देखकर भावनाएं न भड़कें, इसलिए प्रशासन ने यह कदम उठाया।
इससे पहले सुबह आई बेटे की शहादत की खबर ने कुछ देर के लिए मां मीना देवी को भाव विह्वल किया, लेकिन उसके बाद साथ की महिलाओं के साथ वह बहू धर्मवती को संभालने में लग गईं। शहीद की पत्नी की हालत ने मौके पर मौजूद सभी की आंखों को नम कर दिया। हेमराज को सेना में जाने का शौक ऐसे ही नहीं चढ़ा। इसका कारण उनका फौजी परिवार में पला-बढ़ा होना था। प्रेरणास्त्रोत बने सेना में नौकरी कर चुके उनके दो चाचा। ऐसे में हेमराज भी बहादुरी दिखाने को सन 2001 में सेना में भर्ती हो गए। मृदुभाषी और सौम्य व्यवहार के धनी हेमराज को हथियारों से बेहद प्यार था।
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