स्वायल हेल्थ कार्ड बना किसानों के लिए वरदान, प्रति एकड़ 30 हजार रुपये तक बढ़ी आमदनी
स्वायल हेल्थ कार्ड के प्रभावों पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक इस योजना की वजह से देश के किसानों की आय में 30 हजार रुपये प्रति एकड़ तक का इजाफा हुआ है
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकार की महत्वाकांक्षी स्वायल हेल्थ कार्ड के प्रभावों पर रिपोर्ट सोमवार को जारी कर दी गई। रिपोर्ट का दावा है कि इस योजना की वजह से देश के किसानों की आय में 30 हजार रुपये प्रति एकड़ तक का इजाफा हुआ है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों, किसान संगठनों व विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट को लेकर कई गंभीर सवाल उठा दिए हैं। वैसे रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि योजना से खेती की लागत घटी है और उत्पादन बढ़ा है। जबकि जानकार कह रहे हैं कि लागत घटने व उत्पादन बढ़ने के जो आंकड़े हैं उससे आमदनी में 30 हजार रुपये तक की वृद्धि संभव नहीं हैं।
नेशनल प्रॉडक्टिविटी काउंसिल (एनपीसी) की यह रिपोर्ट देश के 19 राज्यों के 76 जिलों के 170 स्वायल हेल्थ टेस्टिंग लैब और 1700 किसानों से पूछे सवालों के जवाब के आधार पर तैयार की गई है। जबकि देश के लगभग 12 करोड़ किसानों को स्वायल हेल्थ कार्ड वितरित किये जा चुके हैं। एनपीसी ने यह रिपोर्ट फरवरी 2017 में सरकार के समक्ष पेश कर दी गई थी, जिसे कृषि मंत्रालय की ओर से वर्ष 2020 में दो साल बाद सोमवार को जारी की गई है। किसान जागृति मंच के अध्यक्ष डॉक्टर सुधीर पंवार ने रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि जमीनी हकीकत से इसका कोई वास्ता नहीं है। एक एकड़ की खेती में बमुश्किल चार से पांच हजार रुपये की खाद लगती है। रिपोर्ट के मुताबिक 10 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर घट जाए और उत्पादन 30 फीसद बढ़ भी जाए तो भी आमदनी में 30 हजार रुपये तक की वृद्धि नहीं हो सकती है।
प्रति एकड़ 25 से 30 हजार रुपये की आमदनी
एनपीसी रिपोर्ट के मुताबिक खाद की बचत और उत्पादन बढ़ने किसानों की आमदनी में वृद्धि दर्ज की गई है। नजीर के तौर पर दलहनी फसलों में अरहर की प्रति एकड़ खेती में 25 से 30 हजार रुपये की आमदनी हुई है। जबकि सूरजमुखी में 25 हजार रुपये, मूंगफली की खेती में 10 हजार रुपये और कपास में 12 हजार रुपये प्रति एकड़ की अतिरिक्त आमदनी होने का आकलन किया गया है। हालांकि रिपोर्ट में धान की खेती में 4500 रुपये और आलू में 3000 रुपये प्रति एकड़ की वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है।
यूरिया की खपत में कमी
खेती में बचत के तौर पर नाइट्रोजन वाली खाद यूरिया की खपत में कमी आई है। धान की खेती की लागत में नाइट्रोजन की बचत से 16 से 25 फीसद की बचत का अनुमान लगाया गया है। इससे प्रति एकड़ 20 किलो यूरिया की बचत हुई है। जबकि दलहनी फसलों की खेती में 15 फीसद कम खाद यानी 10 किलो यूरिया की कम खपत हुई है। तिलहनी फसलों में 10 से 15 फीसद कम यूरिया का प्रयोग किया गया, जिससे प्रति एकड़ नौ कम यूरिया का प्रयोग हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक मूंगफली की खेती में 23 किलो यूरिया प्रति एकड़ कम लगी।
उत्पादन में वृद्धि
स्वायल हेल्थ कार्ड के चलते धान, गेहूं और ज्वार की खेती में खाद के उचित प्रयोग से उनके उत्पादन में 10 से 15 फीसद तक की वृद्धि दर्ज की गई है। इसी वजह से दलहनी फसलों में 30 फीसद तक और तिलहनी फसलों में 40 फीसद तक की वृद्धि का आकलन किया गया है। चौधरी पुष्पेंद्र का कहना है कि एक एकड़ की खेती में इतनी अतिरिक्त आमदनी को होना वास्तविकता से परे है।
घटते निवेश पर चिंता
इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च के पूर्व महानिदेशक डॉक्टर मंगला राय ने कृषि अनुसंधान व विकास पर घटते निवेश पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि वर्ष 2008-09 में जहां सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.84 फीसद खर्च होता था, वह घटकर 0.53 फीसद हो गया है। मूलभूत बुनियादी सुविधाओं में स्वायल हेल्थ कार्ड पर एनपीसी की अध्ययन रिपोर्ट को जल्दबाजी में तैयार किया गया बताया।