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सुपर 30 के अानंद ने बताया- कैसे मामूली सहयोग से भी संवारा जा सकता है 'भविष्य'

देश के पिछड़ रहे शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे तमाम क्षेत्रों में बहुत काम करने की जरूरत है। इसे मात्र सरकार की जिम्मेदारी समझकर नहीं छोड़ा जा सकता।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 09 Jan 2018 11:16 AM (IST)Updated: Tue, 09 Jan 2018 11:54 AM (IST)
सुपर 30 के अानंद ने बताया- कैसे मामूली सहयोग से भी संवारा जा सकता है 'भविष्य'
सुपर 30 के अानंद ने बताया- कैसे मामूली सहयोग से भी संवारा जा सकता है 'भविष्य'

नई दिल्ली (जेएनएन)। सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुख भागभवेत। (सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुख का भागी न बनना पड़े।) यह पंक्ति पश्चिम की नहीं है। हजारों वर्ष पहले अपनी ही माटी की उपज है। हमारी अच्छाइयों को पश्चिम आत्मसात कर रहा है और हम पश्चिम की बुराइयों को चाहे-अनचाहे स्वीकार करते जा रहे हैं। हमारी कामनाओं का विस्तार हो रहा है। इच्छा पूरी नहीं होने पर हमें निराशा होती है, लेकिन यह उचित नहीं। नए साल में हम कुछ पल अपनी सोसायटी को देने का संकल्प लें तो भारत को दोबारा विश्व गुरु बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

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बात ऐसी भी नहीं कि सभी अपना काम छोड़कर दूसरे का हाथ बंटाने लगें। मामला बस इतना है कि कुछ मिनट अपनी सोसायटी को खूबसूरत बनाने के लिए दे सकते हैं। यदि हमारी व्यस्तता अधिक है, तो भी परेशानी की कोई बात नहीं है। हम ऐसे व्यवहार और कार्य तो कर ही सकते हैं, जिससे सोसायटी को नुकसान नहीं हो।

टोक्यो यूनिवर्सिटी के बुलावे पर पिछले साल मैं जापान गया था। देश में चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान की जानकारी विश्वविद्यालयों के साथियों से साझा की। एक शोधार्थी ने कहा कि भारत में स्वच्छ रहने के लिए भी अभियान चलाना पड़ रहा है। इसका जवाब आज भी मैं खोज नहीं पाया हूं। आप भी विचार कीजिएगा! सुपर-30 के माध्यम से पिछले डेढ़ दशक से समाज के दबे-कुचले तबके के बच्चों को आइआइटी की दहलीज तक पहुंचाने के दौरान मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। इस एक सीख को साझा करना चाहूंगा। 

मामूली सहयोग से भी एक परिवार का भविष्य संवारा जा सकता है। सप्ताह में एक घंटा तो हम उन्हें दे ही सकते हैं। इस दरम्यान हम जानने का प्रयास करें कि वे क्या पढ़ते हैं। पढ़ाई में उन्हें क्या दिक्कत पेश आ रही। किस क्षेत्र में उनकी अभिरुचि है और किस क्षेत्र में उनका कॅरियर बेहतर होगा। इच्छा जानकर, सलाह देकर उन बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाया जा सकता है। अभी सर्दी का मौसम है। सभी लोग अपने पुराने कपड़े गरीबों को दे दें तो ठंड से बीमार पड़ने वालों की संख्या में कमी आएगी या नहीं?

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा न दे पा रहे सरकारी स्कूलों में हम अपना सबसे बेहतर योगदान दे सकते हैं। जिस विषय में हम दक्ष हैं, उसी में बच्चों का मार्गदर्शन कर सकते हैं। स्कूलों में संसाधन उपलब्ध कराने के लिए चैरिटी भी बेहतर विकल्प होगा। इसका सर्वाधिक असर बच्चों की मानसिकता पर पड़ेगा। जाति-धर्म, क्षेत्र-वर्ग आदि के नाम पर विभाजनकारी शक्तियां स्वत: दूर हो जाएंगी। जिस समाज ने हमें खास बनाया, उसे कोसने के बजाए उसे खास बनाने के लिए प्रयासरत होना होगा।

पश्चिम के उद्योगपतियों से अपने देश के संप्रभु वर्ग को सामाजिक दायित्व निर्वहन सीखना चाहिए। कुछ एक अभियान चलाए गए हैं। इन्हें विज्ञापनों के साथ- साथ जमीन पर भी उतारने की जरूरत है। उद्योगपति अपने पैतृक गांव को गोद ले सकते हैं। जिस स्कूल और कॉलेज में पढ़े हैं, उनकी जरूरतों को पूरा कर मातृ संस्थान को आदर्श रूप दे सकते हैं।

भारत को दोबारा विश्व गुरु बनाना चाहते हैं तो जिम्मेदारी केवल सरकार के हवाले कर देने से लक्ष्य पूरा नहीं होगा। हम सरकार और व्यवस्था को कोसने के बजाए समस्याओं के निदान में सहयोग करें। संसाधन और समय मुहैया कराएं। भावी पीढ़ी को ऐसा भारत दें कि वह हम पर, आप पर यानी अपने पूर्वजों पर गर्व कर सके। यह सबके सहयोग से ही संभव होगा।

देश के पिछड़ रहे शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे तमाम क्षेत्रों में बहुत काम करने की जरूरत है। इसे मात्र सरकार की जिम्मेदारी समझकर नहीं छोड़ा जा सकता। अपना पल्ला झाड़ लेने से काम नहीं चलेगा। 

आनंद कुमार

संस्थापक, सुपर 30 

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