शहरी विकास मंत्रालय की 'अमृत योजना' में 2 साल की देरी, 2020 तक 69% सीवर लाइन बिछाने का था लक्ष्य
वर्ष 2014 में देश के मात्र 32.9 फीसद शहरी क्षेत्रों में ही सीवर लाइनें थी जिसे वर्ष 2020 तक बढ़ाकर 69 फीसद का लक्ष्य निर्धारित किया गया था लेकिन अब इसे पूरा करने में अभी दो साल का समय और लग सकता है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। देश के लगभग 69 फीसद शहरी क्षेत्रों में सीवर लाइनें बिछाने के लक्ष्य को पूरा करने में अभी दो साल और लगेंगे। देश के शहरी क्षेत्रों में सीवर लाइन प्रणाली को मजबूत बनाने और नई लाइनें बिछाने का काम अमृत योजना के तहत किया जा रहा है। यह जानकारी केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में बुधवार को प्रश्नोत्तर काल के दौरान पूछे एक सवाल के जवाब में दी।
वर्ष 2014 में देश के मात्र 32.9 फीसद शहरी क्षेत्रों में ही सीवर लाइनें थी, जिसे वर्ष 2020 तक बढ़ाकर 69 फीसद का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन अब इसे पूरा करने में अभी दो साल का समय और लग सकता है। पुरी ने बताया, 'शहरी क्षेत्रों में सीवर लाइन बिछाने का काम अटल मिशन फॉर रेजुविनेशन एंड अर्बन ट्रांसफार्मेशन (अमृत) के तहत कराया जा रहा है। सीवर लाइन बिछाने और प्रणाली को मजबूत बनाने की प्रक्रिया चल रही है, जिसे पूरा करने में थोड़ा और समय लग रहा है, जिसे 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा।' उन्होंने बताया कि इसे पूरा करने में 32456 करोड़ रुपये की लागत आयेगी, जिसका आवंटन कर दिया गया है।
एक अन्य सवाल के जवाब में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री पुरी ने कहा कि अमृत योजना देश के सर्वाधिक शहरी क्षेत्रों को कवर करता है। शहरी क्षेत्रों में बचे बाकी हिस्से के लिए जल जीवन मिशन की शुरुआत की गई है। पब्लिक हेल्थ और स्वच्छता राज्य का विषय है, जिसमें केंद्र अपना पूरक सहयोग करता है। अमृत योजना के तहत शहरी निकायों में सीवेज प्रणाली जैसे मूलभूत ढांचे के विकास पर जोर दिया जा रहा है।
पुरी ने बताया कि योजना के तहत स्टेट एनुअल एक्शन प्लान (साप) के लिए 77 हजार करोड़ रुपये से अधिक मंजूर किये गये हैं, जिसमें केंद्र की हिस्सेदारी 36 हजार करोड़ रुपये भी शामिल है। इसमें 32,456 करोड़ रुपये यानी 42 फीसद हिस्सा सीवेज और सेप्टेज मैनेजमेंट पर खर्च किया जाएगा। इन दोनों कार्यों की 685 परियोजनाओं के लिए 28.5 हजार करोड़ रुपये का कांट्रैक्ट हो चुका है। यह जानकारी उन्होंने एक लिखित सवाल के जवाब में दी है। दो हजार करोड़ रुपये से अधिक लागत वाली डेढ़ सौ परियोजनाएं पूरी भी हो चुकी हैं।