नई दिल्ली, विवेक तिवारी। 

पहला मामला

62 वर्ष के सत्य प्रकाश सिंह भारतीय जीवन बीमा निगम की नौकरी से रिटायर हुए। वह भूलने की समस्या से बहुत परेशान थे। उन्हें लगता था कि यह बढ़ती उम्र के कारण है। उन्होंने रुटीन मेडिकल टेस्ट कराए जिसमें उनका लीवर, किडनी, हार्ट आदि का प्रोफाइल करीब-करीब सामान्य आया। तब उनके एक मित्र ने उन्हें किसी न्यूरो स्पेशलिस्ट को दिखाने की सलाह दी। डायग्नोसिस के बाद सामने आया कि वह अल्जाइमर (भूलने की बीमारी) के मरीज हो चुके हैं। उनका इलाज शुरू हुआ और आज वे बेहतर महसूस कर रहे हैं।

दूसरा मामला

एक प्राइवेट अकाउंट फर्म में काम करने वाले शशि मेहदीरत्ता को अनिद्रा की समस्या थी। पूरी रात मोबाइल देखते गुजर जाती थी। 2020 में उन्हें कोरोना हुआ तो दिक्कत और बढ़ गई। बिना किसी डॉक्टर की सलाह के शशि नींद की दवा लेने लगे, लेकिन उनकी परेशानी खत्म नहीं हुई। उन्होंने महसूस किया कि वे जरूरी काम भूल जाते हैं। दो साल बाद उन्होंने डॉक्टर से संपर्क किया तो पता चला कि उन्हें अल्जाइमर बीमारी है।

तीसरा मामला

नोएडा के सुरेश पाठक को उनके सेवानिवृत्त होने के चार साल बाद पता चला कि वह अल्जाइमर से ग्रसित हैं। जब वह घर का रास्ता, कपड़ा पहनना, भोजन करना सब भूलने लगे तो स्वजनों को लगा कि वह बीमार हैं। दवाएं चलीं, मानसिक कसरत कराई गई। अब उन्हें हर बात याद आने लगी है। चार साल पहले उन्हें पकड़कर लोग लाते थे। अब वह खुद जिला अस्पताल आते हैं और डॉक्टर को दिखाकर दवा ले जाते हैं।

अगर आपके घर में किसी बुजुर्ग को हाल ही कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण हुआ था तो उनका ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत है। एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि ऐसे बुजुर्गों में अल्जाइमर (भूलने की बीमारी) का खतरा 50 से 80 फीसदी तक बढ़ जाता है। साइंस जर्नल www.sciencedaily.com में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बुजुर्ग पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अल्जाइमर होने का खतरा ज्यादा है।

अमेरिका की केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी की ओर से 65 साल से अधिक उम्र के लगभग 62 लाख मरीजों की स्टडी के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है। इसमें फरवरी 2020 और मई 2021 के बीच इलाज कराने वाले लोगों का डेटा था। इन लोगों में इलाज से पहले अल्जाइमर रोग का कोई लक्षण नहीं था। अध्ययन में पाया गया कि ऐसे बुजुर्ग जिन्हें कोरोना का संक्रमण हुआ था उनमें अगले एक साल के अंदर अल्जाइमर होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। केस वेस्टर्न रिजर्व स्कूल ऑफ मेडिसिन की रिसर्च प्रोफेसर पामेला डेविस के मुताबिक कोविड के संक्रमण से उबर चुके बुजुर्गों में अल्जाइमर होने का प्रमुख कारण वायरल संक्रमण और दिमाग के कुछ हिस्से में सूजन आना है। डेविस के अनुसार कोविड मरीजों में अलग-अलग अंगों पर पड़ा असर धीरे-धीरे सामने आएगा।

भारत में भी बुजुर्ग इससे प्रभावित

भोपाल एम्स के डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह के अनुसार कोविड के बाद अल्जाइमर के लक्षण वाले मरीजों की संख्या अचानक बढ़ गई है। भ्रम, अलर्टनेस की कमी, डिप्रेशन, एकाग्रता की कमी वाले मरीज ज्यादा आ रहे हैं। यह जरूर है कि इनमें से ज्यादातर बुजुर्ग हैं। रायपुर मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर और क्रिटिकल मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ.ओ.पी. सुंदरानी ने बताया कि कोविड के दौरान आईसीयू में लम्बे समय तक रहने वालों में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या काफी थी। कई मरीजों में ठीक होने के बाद भूलने, एकाग्रता खोने और चिड़चिड़ापन बढ़ने जैसे अल्जाइमर के लक्षण दिखने लगे हैं। कोविड से संक्रमित हुए 10 से 15 फीसदी बुजुर्ग मरीजों के साथ ऐसा हो रहा है।

लोगों को बीमारी का एहसास ही नहीं

भारत में अल्जाइमर के करीब 60 लाख मरीज हैं। समस्या है कि लोगों को इसका एहसास ही नहीं है। एम्स दिल्ली की न्यूरो विभाग की डॉ. मंजरी ने बताया कि अल्जाइमर का पता लगाना और इलाज पिछले दो साल के कोरोना काल में सही तरीके से नहीं हो पाया। इसलिए इस बीमारी के मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। अमूमन नींद नहीं आने की बीमारी को इंसोमनिया कहते हैं। कोरोना के बाद पाया गया कि लोगों को बुरे सपने आ रहे हैं, कुछ लोग घबराकर उठ जाते हैं। ऐसे में लोग बहुत जल्दी दवा लेने लगते हैं। तुरंत दवा लेने से बचना चाहिए, क्योंकि ये दवाइयां ऐसी होती हैं जो एक बार शुरू हो गईं तो फिर छूटेगी नहीं।

क्यों होता है अल्जाइमर, क्या हैं लक्षण

दिमाग में कुछ एंजाइम होते हैं जैसे- गामा सिक्रेटेज। यह एमिलायड प्रोटीन को नियंत्रित करता है। उसमें गड़बड़ी होने पर एमिलायड जमा होने लगता है और इससे याददाश्त कम होने लगती है। अल्जाइमर एक आनुवांशिक बीमारी है। अधिकांश मरीजों में इसका पता देर से चलता है। तब तक बीमारी गंभीर रूप धारण कर चुकी होती है और वे दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। याददाश्त की कमी, किसी व्यक्ति या वस्तु की पहचान न कर पाना, व्यवहार में चिड़चिड़ापन, उदास हो जाना, रिश्तों को भूलना, सामाजिक गतिविधियों से अलग हो जाना, भय व भ्रम से ग्रसित हो जाना, रोज आने-जाने वाले रास्ते भी भूल जाना, कहीं भी नित्य कर्म कर देना, कपड़े न पहन पाना या उल्टा-सीधा कपड़े की पहचान न कर पाना आदि इसके लक्षण हैं।

चालीस की उम्र में भी आने लगे हैं मरीज

आमतौर पर अल्जाइमर 60 वर्ष के बाद लोगों में पाया जाता था, लेकिन अब 40 वर्ष की उम्र के मरीज भी मिल रहे हैं। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. उज्जवल राय बताते हैं कि अधिक तनाव लोगों के मस्तिष्क पर असर कर रहा है। लोगों को भूलने की बीमारी हो रही है, जिसकी शुरुआत छोटी चीजों से होती है। अगर समय पर इलाज करवाया जाए तो इस बीमारी को कम उम्र में ठीक किया जा सकता है। लेकिन बढ़ती उम्र के साथ इस बीमारी का कोई कारगर इलाज नहीं है। हालांकि दवा, काउंसलिंग और जीवनशैली में बदलाव करके इस रोग के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

ऐसे कम कर सकते हैं जोखिम

-रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, मोटापा व मधुमेह को नियंत्रित रखें।

-शारीरिक गतिविधियों व व्यायाम पर जोर दें।

-संतुलित और स्वस्थ आहार का सेवन करें।

-मस्तिष्क की सक्रियता के लिए प्रयास करते रहें।

-सामाजिक गतिविधियों में शामिल हों और उनका आनंद लें।

योग और ध्यान से मिल सकता है लाभ

जीवनशैली में बदलाव करके या योग और ध्यान के माध्यम से कुछ हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है। बीमारी के शुरुआती लक्षणों पर लोग ध्यान नहीं देते हैं, जिससे यह बढ़ती जाती है। श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी, त्रिवेंद्रम के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि, योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में किया गया मेडिटेशन और योग रोगियों के लिए काफी लाभकारी होता है।

माइंडफुलनेस मेडिटेशन में ध्यान, भावना, तनाव, प्रतिक्रिया और व्यवहार से संबंधित मस्तिष्क क्षेत्रों के मॉड्यूलेशन की क्षमता होती है जो शरीर के अन्य भागों जैसे हृदय, रक्त संचार और मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त करने का काम करती है। माइंडफुलनेस मेडिटेशन एक मानसिक अभ्यास है जो आपको अनावश्यक विचारों को कम करना, नकारात्मकता दूर करना और आपके मन और शरीर को शांत करना सिखाता है।

परिवार की भूमिका भी अहम

चिकित्सकों के अनुसार यह ऐसी बीमारी है जिसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता, इसका असर कम जरूर किया जा सकता है। इसलिए मरीजों के साथ परिवार के सदस्यों को संवेदनशील होना चाहिए। उनकी हरकतों पर कभी नाराज नहीं होना चाहिए। उनकी रोजमर्रा की जरूरतों को समझना और छोटे बच्चे की तरह ध्यान देना जरूरी है। उन्हें संगीत सुनाने के अलावा चेस, पहेली, स्क्रैबल और शतरंज जैसे खेल खिलाने चाहिए। बार-बार दिन, समय, त्योहार आदि की याद दिलाते रहना चाहिए। वस्तुओं या व्यक्तियों की बार-बार पहचान भी करानी चाहिए। चित्रों में अंतर पहचानने, बच्चों को गणित पढ़ाने या खुद गणित के सवाल लगाने से मस्तिष्क सक्रिय होता है। धूप देखकर समय की पहचान कराने से भी याददाश्त क्षमता बढ़ती है।