एनपीए के दलदल में धंस रहे देश के सरकारी बैंकों की स्थिति और खराब हो सकती है
पिछले वर्ष आरबीआइ ने देश के 12 सबसे बड़े एनपीए खाताधारक कंपनियों में नए दिवालिया कानून के तहत कर्ज वसूली प्रक्रिया शुरु करवाई थी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सोमवार को एनपीए पर रिजर्व बैंक के नये नियम की मियाद खत्म हो रही है। इसकी वजह से फंसे कर्जे (एनपीए) के दलदल में धंस रहे देश के सरकारी बैंकों की स्थिति और खराब हो सकती है क्योंकि तकरीबन तीन लाख करोड़ रुपये की राशि और एनपीए में जुड़ सकता है। सरकारी डाटा के मुताबिक मार्च, 2018 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 10.41 लाख करोड़ रुपये का था जो इस नियम की वजह से 13-13.50 लाख करोड़ रुपये की सीमा लांघ सकती है। इस हालात से न सिर्फ बैंकों में घबड़ाहट है बल्कि वित्त मंत्रालय और आरबीआइ भी आगे की स्थिति से निपटने के रास्ते को लेकर सजग हैं। सोमवार को कई बैंकों की इस बारे में बोर्ड बैठक में अहम फैसला होने की उम्मीद है।
12 फरवरी, 2018 को आरबीआइ की तरफ से जारी एक अध्यादेश में कर्ज नहीं चुकाने वाले ग्राहकों के खातों को पुनर्निधारित करने के तत्कालीन सभी विकल्पों को समाप्त कर दिया गया था और यह कहा गया था कि अगर निर्धारित अवधि से एक दिन बाद भी कर्ज नहीं चुकाया जाता है तो उसे एनपीए माना चाहिए और उन खातों के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। पुराने सभी कारपोरेट खातों का निपटारा करने के लिए 180 दिनों का समय बैंकों को दिया गया था। यह अवधि 27 सितंबर, 2018 को समाप्त हो रही है। वित्त मंत्रालय, कारपोरेट सेक्टर और बैंकों को भी आरबीआइ का यह नियम पसंद नहीं आया लेकिन अभी तक केंद्रीय बैंक इस पर अडिग है।
आरबीआइ का कहना है कि यह बैंकिंग सिस्टम में जितने संभावित एनपीए हैं उनको बाहर लाने के लिए जरुरी है। हाल ही में रेटिंग एजेंसी इकरा की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 70 ऐसे बड़े कारपोरेट खाते हैं जिन्हें आरबीआइ के नियम के मुताबिक एनपीए खाता घोषित किया जा सकता है। इससे एनपीए की राशि में 3.8 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हो सकती है।
लेकिन बैंकिंग क्षेत्र के सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ हफ्तों के दौरान लगातार समीक्षा के बाद यह बात सामने आ रही है कि तकरीबन 60 कंपनियों के खातों को नए नियम के मुताबिक एनपीए में तब्दील करने की सिफारिश हो सकती है। इनमें 3.4 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बैंकों का फंसा हुआ है। अगर यह राशि एनपीए के तौर पर चिन्हित हो जाती है तो इन सभी कंपनियों के दिवालिया होने की प्रक्रिया बैंकों को शुरु करनी होगी। इस बारे में सोमवार को एसबीआइ, पीएनबी, बीओबी, केनरा बैंक समेत कई बैंकों की आतंरिक बैठक होने वाली है जिसमें आगे के कदमों पर अंतिम फैसला होगा।
जिन खातों का अंतिम तौर पर गाज गिरने की संभावना है उनमें बिजली, संचार, रियल एस्टेट जैसे क्षेत्र की हैं इसलिए इनके बारे में किये जाने वाले किसी भी फैसले का पूरी अर्थव्यवस्था पर असर होगा। ऐसे में वित्त मंत्रालय भी सतर्क है। एक संभावना यह जताई जा रही है कि पिछले छह महीने की रिपोर्ट के आधार पर आरबीआइ कहीं मौजूदा नियमों की मियाद आगे बढ़ाने को तैयार हो जाए। क्योंकि बैंक कुछ कंपनियों को उनके उनके बकाये कर्जे के भुगतान को लेकर थोड़ी नरमी बरतने को तैयार है। मसलन, बिजली क्षेत्र की कुछ कंपनियों की स्थिति सुधरने के संकेत हैं। अगर उन्हें अभी एनपीए घोषित किया जाएगा तो उन्हें पटरी पर लाने की कोशिशें धाराशायी हो सकती हैं।
दरअसल, बैंक भी चाहते हैं कि इन कंपनियों का मामला दिवालिया कानून के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में नहीं जाए क्योंकि वहां वक्त काफी लगता है और इस बात की भी गारंटी नहीं है कि कर्ज वसूली की राशि पर्याप्त होगी।
पिछले वर्ष आरबीआइ ने देश के 12 सबसे बड़े एनपीए खाताधारक कंपनियों में नए दिवालिया कानून के तहत कर्ज वसूली प्रक्रिया शुरु करवाई थी। इसमें सिर्फ भूषण स्टील, इलेक्ट्रोस्टील लिमिटेड, मोनेट इस्पात व इनर्जी की प्रक्रिया संपन्न होने के कगार पर है। जबकि अन्य सभी मामले कानूनी पचड़े में फंसे हुए हैं। इसमें आलोक इंडस्ट्रीज जैसी कंपनी भी शामिल है जिस पर बैंकों का 29,614 करोड़ रुपये बकाया है, लेकिन दिवालिया प्रक्रिया के तहत इसकी सबसे ज्यादा बोली 5,050 करोड़ रुपये की लगी है। यह काफी कम है। यही वजह है कि बैंक हर एनपीए खाता को दिवालिया कानून के तहत नहीं ले जाना चाहते।