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फुटबॉल के बूते आत्मनिर्भरता का गोल दाग रहा उत्तर प्रदेश के मेरठ का सिसौला गांव

ग्राम निवासी विनोद ने बताया इधर पांच-छह वर्षो में तो पूरा गांव ही इस काम से जुड़ आत्मनिर्भर हो चुका है। गांव के 1785 परिवारों में से 1503 परिवार अब फुटबाल के छोटे-बड़े काम से जुड़े हुए हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 09:35 AM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 09:36 AM (IST)
फुटबॉल के बूते आत्मनिर्भरता का गोल दाग रहा उत्तर प्रदेश के मेरठ का सिसौला गांव
मेरठ के सिसौला गांव में फुटबॉल तैयार करते ग्रामीण। जागरण

मेरठ, अरुण कुमार। उत्तर प्रदेश के मेरठ का सिसौला गांव। यहां की किसी भी गली में घूम लीजिए, एक खास नजारा दिखता है। सुए से खेलती अंगुलियां देखते ही देखते चमड़े के 32 टुकड़ों को जोड़कर मुकम्मल फुटबॉल बना देती हैं। यहां के 1500 परिवार फुटबॉल बनाने का काम करते हैं। ग्रामीणों की इसी हुनरमंदी के चलते इसे अब ‘खेलन गांव’ के नाम से भी जाना जाता है।

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गांव के अधिकांश परिवार फुटबॉल बनाने के छोटे-बड़े काम से जुड़े हुए हैं। एक फुटबॉल सिलने के 15 रुपये मिलते हैं। ऐसे में पुरुषों के साथ महिलाएं भी घर का कामकाज निपटाकर फुटबॉल सिलाई में जुट जाती हैं। लॉकडाउन के दौरान भी यहां किसी को काम की कोई कमी नहीं थी। यहां के युवा छोटी-मोटी नौकरी के लिए गांव नहीं छोड़ते, वे यहीं फुटबॉल के काम से जुड़ जाते हैं। कोई फुटबॉल बनाने की छोटी इकाई शुरू करता है, तो कोई कारीगर का काम कर लेता है। हर हाथ के लिए काम है यहां। गांव के युवा दीपक कहते हैं, पढ़ाई-लिखाई के बाद कमाई का जरिया ढूंढा तो इससे बेहतर कुछ नहीं लगा। जितना कहीं नौकरी करने पर कमाता, उतना घर बैठे ही फुटबॉल बनाकर कमा लेता हूं। अब यह मेरा काम, मैं ही इसका मालिक। मेरी तरह दूसरे लोग भी इसी सोच के हैं।

गांव के सबसे बड़े फुटबॉल निर्माता कपिल कुमार कहते हैं, आज फुटबॉल की वजह से ही हमारा गांव आत्मनिर्भर हो चुका है। यही वजह है कि लॉकडाउन में भी, जब दूसरी जगहों पर लोग रोजी-रोटी के लिए परेशान थे, खेलन गांव में सभी के पास काम था। सभी ने मिल जुलकर उस संकट से पार पाया। अनलॉक के बाद भी गांव में कोई भी अब तक एक दिन भी खाली नहीं बैठा है।

ग्राम निवासी शेर खां ने बताया कि करीब चार दशक पहले तक यह गांव भी दूसरे गांवों की तरह ही था। उसी दौरान यहां के एक ग्रामीण धनीराम मेरठ से फुटबॉल सिलना सीखकर आए और यहां काम शुरू किया। इसी तरह हरिनाम, रामकिशन, कंवल सिंह ने भी काम शुरू किया। कमाई का एक बेहतर जरिया देख कुछ ही वर्ष में कई और ग्रामीण भी इससे जुड़ गए।

आत्मनिर्भर हो चुका है पूरा गांव: ग्राम निवासी विनोद ने बताया, इधर पांच-छह वर्षो में तो पूरा गांव ही इस काम से जुड़ आत्मनिर्भर हो चुका है। गांव के 1785 परिवारों में से 1503 परिवार अब फुटबाल के छोटे-बड़े काम से जुड़े हुए हैं। शहर से कच्चा माल लाकर यहां उसकी कटिंग, सिलाई, फिनिशिंग का काम होता है। सिसौला में तैयार फुटबॉल आज देश के बड़े बाजारों में बिकते हैं। यहां की फिनिशिंग और मजबूत धागे ही इसका मजबूत पक्ष हैं।

ग्राम निवासी विनोद ने बताया कि बीते पांच वर्षो में गांव के अधिकांश परिवार इस काम से जुड़ गए हैं। चूंकि गांव में बहू-बेटियां भी फुटबॉल सिलती हैं, ऐसे में शादी के बाद इस गांव की बेटी जहां जाती है, वहां के लोगों को भी यह काम सिखाती है। नतीजा यह हुआ कि अब तो दूसरे गांव के लोग भी इस काम से रोजगार पाने लगे हैं।


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