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कोरोना महामारी के साइड इफेक्‍ट, बच्‍चों में डिप्रेशन बनी एक बड़ी समस्‍या, जानें एक्‍सपर्ट व्यू

भारत में पिछले कुछ वर्षों में शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य के साथ-साथ मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍या गंभीर हुई है। खासकर कोरोना महामारी के बाद यह और जटिल हुई है। कोरोना काल में बच्‍चों के कोमल मन पर इसका बूरा असर पड़ा है। उनके मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर इसका प्रतिकूल असर देखा गया।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 06 Oct 2021 06:29 PM (IST)Updated: Wed, 06 Oct 2021 10:07 PM (IST)
कोरोना महामारी के साइड इफेक्‍ट, बच्‍चों में डिप्रेशन बनी एक बड़ी समस्‍या, जानें एक्‍सपर्ट व्यू
कोरोना महामारी के साइड इफेक्‍ट, बच्‍चों में डिप्रेशन बनी एक बड़ी समस्‍या।

नई दिल्‍ली, (जेएनएन)। भारत में पिछले कुछ वर्षों में शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य के साथ-साथ मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍या गंभीर हुई है। खासकर कोरोना महामारी के बाद यह और जटिल हुई है। कोरोना काल में बच्‍चों के कोमल मन पर इसका बूरा असर पड़ा है। उनके मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर इसका प्रतिकूल असर देखा गया। इसका परिणाम यह रहा है कि पहले की तुलना में मेंटल हेल्थ यानी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों की जागरूकता बढ़ी है। भारत में अक्‍सर बच्‍चों के मेंटल हेल्‍थ की उपेक्षा की गई है। या यूं कहें कि बच्चों के मेंटल हेल्थ पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता। बच्‍चों के व्यवहार में आए किसी भी परिवर्तन को उम्र के साथ आया बदलाव मान लिया जाता है। ऐसे में समय आ गया है कि अब बच्चों के मेंटल हेल्थ को प्राथमिकता देने वाली नीतियां बनाई जाएं। Jagran Dialogues के इस एपिसोड में बच्चों के मेंटल हेल्थ की सुरक्षा और उनकी देखभाल पर विस्तार से चर्चा हुई। इस मुद्दे पर जागरण न्यू मीडिया के एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रत्‍यूष रंजन ने राज्यसभा सदस्य और पद्मश्री से सम्मानित नेत्र विशेषज्ञ डा. विकास महात्‍मे एवं यूनिसेफ की बाल सुरक्षा प्रमुख सोलेदाद हेरेरो से विस्तृत चर्चा की। आइए जानतें हैं क्‍या कहते हैं हमारे विशेषज्ञ।

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मानसिक बीमारी के लिए मौजूदा ढांचे को मजबूत करने पर जोर

  • सांसद डा. विकास महात्‍मे ने कहा कि भारत में लोगों की मानसिक सेहत से संबंधित मौजूदा ढांचे को मजबूत करने व एक नए ढांचे को खड़ा करने की दरकार है। हालांकि, भारत सरकार ने 10 अक्‍टूबर, 2014 को राष्‍ट्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य नीति लागू की थी, लेकिन आज स्‍थानीय स्‍तर पर इस नीति को प्रभावी ढंग से क्रियान्‍वयन की जरूरत है। इसमें स्‍थानीय अधिकारियों के साथ स्‍कूलों एवं अन्‍य सामाजिक संगठनों एवं परिजनों को जोड़ा जा सकता है।
  • उन्‍होंने कहा कि इस समस्‍या को जानने से पहले मानसिक रोग और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की धारणा को स्‍पष्‍ट करना होगा। इसको लेकर काफी भ्रम है। उन्‍होंने कहा कि आमतौर पर मानसिक बीमारियों को ही इसमें शामिल किया जाता है, लेकिन इसका दायरा बड़ा है। उन्‍होंने कहा कि सामान्‍य और बीमार व्‍यक्ति के बीच का जो स्‍पेस है यानी अंतराल है, उसे समझना होगा। उन्‍होंने कहा इसके बीच में एक स्‍ट्रेस है। उन्‍होंने जोर देकर कहा कि भावनात्‍मक सपाेर्ट और आधुनिक समाज में बढ़ते स्‍ट्रेस को भी मेंटल हेल्‍थ में शामिल किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि आज देश की बड़ी आबादी अवसाद से ग्रसित है। 18 साल से 29 वर्ष के उम्र के लोग इस समस्‍या से ग्रसित हैं। इस स्ट्रेस का संबंध लोगों की दिनचर्या से जुड़ा हुआ है। इस पर बहुत काम करने की जरूरत है। अभी इस दिशा में काम नहीं हुआ है।  
  • उन्‍होंने कहा कि 2017 का एक्‍ट इस मामले में एक मील का पत्‍थर साबित हुआ है। इस एक्‍ट के पूर्व सुसाइड अटेम्प्ट को अपराध की श्रेणी में रखा जाता था। सुसाइड अटेम्प्ट को एक क्राइम माना जाता था, लेकिन 2017 के बाद कानून में बदलाव आया है। इससे लोगों की धारण भी बदली है। काफी लंबे समय बाद यह समझ में आया है कि सुसाइड करने की वृत्ति एक मनोरोग है। यह एक मेंटल डिसआर्डर है। ऐसे लोगों पर सहानुभूति रखना चाहिए। इसके पूर्व ऐसा नहीं था। महात्‍मे ने कहा कि एक जनप्रतिनिधि के नाते हमारा दायित्‍व है कि हम सदन का ध्‍यान इस ओर आकृष्‍ट करे। एक सांसद तो प्राइवेट बिल भी ला सकता है। मेंटल हेल्‍थ के लिए एक अलग बजट की बात भी उठाई जा सकती है।

दुनिया की 60 फीसद आबादी इससे प्रभावित

  • कोरोना महामारी के दौरान लोगों के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर किस तरह का प्रभाव पड़ा। इसका निदान क्‍या है। इस समस्‍या के समाधान में यूनिसेफ किस तरह से मदद कर सकता है। यूनिसेफ की बाल सुरक्षा प्रमुख सोलेदाद हेरेरो ने कहा कि निश्चित रूप से कोरोना महामारी के दौरान मेंटल हेल्‍थ एक बड़ी समस्‍या और चुनौती बनकर हमारे समक्ष उभरी है। पूरी दुनिया की 60 फीसद आबादी इससे प्रभावित थी। भारत में यह चुनौती काफी बड़ी है। भारत की 15 फीसद आबादी किसी न किसी बीमारी से जूझ रही है।
  • भारत में हर चार में एक बच्‍चा इससे प्रभावित हैं। देश में करीब 50 लाख बच्‍चे इस समस्‍या से जूझ रहे हैं। खासकर गरीब तबके से आने वालों बच्‍चों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। इन बच्‍चों में सामाजिक और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है। सामाजिक रूप से अलगाववादी प्रवत्ति बढ़ी है। भारत के मेंटल हेल्‍थ कानून के बारे में उन्‍होंने कहा कि इस कानून को समग्र तौर पर लागू करने व खासकर बच्‍चों पर फोकस करने की जरूरत है। उन्‍होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान यून‍िसेफ ने एक अहम भूमिका निभाई है। हमने गरीब मुल्‍कों के साथ मिलकर काम किया है।

डा. विकास महात्‍मे एवं सोलेदाद हेरेरो से विस्तृत बातचीत यहां देखें

 (इनपुट सामग्री Jagran Dialogues से )


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