श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 37 बार गूंजी किलकारियां, किसी ने करुणा तो किसी ने लॉकडाउन रखा नाम
बीते एक मई से अबतक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 37 बार नवजातों की किलकारियां गूंजी हैं। ट्रेनों में जन्म लेने वाले नवजातों का नाम भी लोगों ने कोरोना दौर में आए नए नामों पर रखा है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से घर पहुंचने की खुशी के बीच यदि आपकी बोगी में किसी नवजात की किलकारी गूंजे तो खुशी दोगुनी हो जाती है। एक मई से अबतक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में यात्रियों को ऐसी खुशियों का अनुभव 37 बार हुआ है। समाचार एजेंसी पीटीआइ ने रेलवे के हवाले से बताया है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में एक मई से अबतक 37 शिशुओं का जन्म हुआ है। इन ट्रेनों में जन्म लेने वाले नवजातों का नाम भी लोगों ने कोरोना संकट के दौर में आए नए नामों पर रखा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, ईश्वरी देवी ने अपनी बेटी का नाम करुणा तो वहीं रीना ने अपने नवजात बेटे का नाम लॉकडाउन यादव रखा है। दोनों बच्चों का जन्म कोरोना महामारी के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सफर के दौरान हुआ। इन घटनाओं से साफ जाहिर है कि महामारी ने मानवीय जीवन के सभी पहलुओं पर असर डाला है। यहां तक कि बच्चों के नाम तक इससे अछूते नहीं हैं। करुणा के पिता राजेंद्र यादव से जब पूछा गया कि उनके बच्चे के नाम पर कोरोना संकट का क्या असर है तो उन्होंने जवाब दिया दया और सेवा भाव...
छत्तीसगढ़ के धरमपुरा में अपने गांव से राजेंद्र यादव ने फोन पर बताया कि लोगों ने उनसे बच्ची का नाम बीमारी पर रखने के लिए कहा... लेकिन मैं बिटिया का नाम कोरोना कैसे रख सकता हूं जबकि इस महामारी ने लाखों लोगों की जान ली है और लाखों जीवन बर्बाद किए हैं। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से मुंबई से यूपी जा रहीं रीना ने अपने बेटे का नाम लॉकडाउन यादव रखा है। उनका कहना है कि यह नाम इसलिए रखा गया ताकि इस मुश्किल वक्त को हमेशा के लिए याद रखा जा सके। उन्होंने कहा कि मेरा बेटा बेहद मुश्किल हालात में पैदा हुआ है।
ईश्वरी देवी भी उन तीन दर्जन महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने गर्भावस्था के अंतिम चरण में भूख और बेरोजगारी जैसे मुश्किल हालात का सामना किया। इन्होंने भी असामान्य परिस्थिति में बच्चे को जन्म दिया। ममता यादव इन्हीं महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने मुश्किल परिस्थिति में बच्चे को जन्म दिया। ममता आठ मई को जामनगर-मुजफ्फरपुर श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सवार हुई थीं। वह चाहती थीं कि बिहार के छपरा जिले में जब वह अपने बच्चे को जन्म दें तो उनकी मां भी उनके साथ हों लेकिन गंतव्य स्टेशन तक पहुंचने से पहले ही उन्होंने बच्चे को जन्म दिया।