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उद्धव को कभी नहीं माना गया राजनीति का कुशल खिलाड़ी, फिर भी जो कहा कर दिखाया

उद्धव ठाकरे जब भी राज्‍य में शिवसेना का सीएम बनाने की बात करते थे तो उन्‍हें सीरियसली नहीं लिया जाता था। इसकी वजह ये भी थी कि राजनीति का माहिर खिलाड़ी नहीं माना जाता था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 27 Nov 2019 04:45 PM (IST)Updated: Thu, 28 Nov 2019 12:34 AM (IST)
उद्धव को कभी नहीं माना गया राजनीति का कुशल खिलाड़ी, फिर भी जो कहा कर दिखाया
उद्धव को कभी नहीं माना गया राजनीति का कुशल खिलाड़ी, फिर भी जो कहा कर दिखाया

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले जब उद्धव ठाकरे अपनी चुनावी रैलियों में यह कहते घूमते थे कि वह मंत्रालय पर भगवा ध्वज फहराकर एवं शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाकर अपने पिता बालासाहब ठाकरे का सपना पूरा करेंगे, तो किसी को उनके इस कथन पर भरोसा नहीं होता था, क्योंकि उन दिनों पूरे राज्य में झंडा तो उनके सहयोगी दल भाजपा का फहरा रहा था। अन्य दलों से आनेवालों की ‘मेगा भर्ती’ तो भाजपा में चालू थी।

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नहीं माना गया राजनीति का कुशल खिलाड़ी 

उद्धव की यह बात इसलिए भी किसी के गले नहीं उतरती थी, क्योंकि उन्हें कभी भी राजनीति का कुशल खिलाड़ी माना ही नहीं गया। फोटोग्राफी में रुचि रखने वाले 59 वर्षीय उद्धव ठाकरे के मुखर सिपहसालार संजय राउत द्वारा रोज सुबह पौने दस बजे अपने निवास पर मीडिया से बात करते वक्त यह दोहराना कि मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही बनेगा, भी लोगों के गले नहीं उतरता था क्योंकि शिवसेना के पास मुख्यमंत्री बनाने लायक संख्या ही नहीं थी। कुल 56 विधायक चुनकर आए थे। कांग्रेस-राकांपा से उसका जन्मों का छत्तीस का आंकड़ा था। लोग चार दिन पहले तक यही मान रहे थे कि भाजपा का कोई वरिष्ठ नेता यदि उद्धव ठाकरे के निवास ‘मातोश्री’ जाकर उनका अहं ठंडा कर दे तो वह उपमुख्यमंत्री पद पर भी मान जाएंगे और ‘सरकार तो भाजपा-शिवसेना की ही बनेगी’।

मिलने लगी थी धृतराष्ट्र की उपाधि 

इस बार जब उद्धव ने अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को विधानसभा चुनाव लड़वाने का निश्चय किया तो भी यही माना गया कि उद्धव अपने पुत्र को मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री की कुर्सी दिलवाना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें धृतराष्ट्र की उपाधि से भी नवाजा जाने लगा। लेकिन जैसे-जैसे भाजपा-शिवसेना के बीच तनाव बढ़ता जा रहा था, वैसे-वैसे उद्धव का संकल्प भी दृढ़ होता जा रहा था। जब पहली बार 11 नवंबर को वह राकांपा अध्यक्ष शरद पवार से मिलने बांद्रा के एक होटल में पहुंचे तो इस मुलाकात ने सत्ता के लिए लड़ने का संकल्प और मजबूत कर दिया।

मातोश्री के बाहर आते ही खत्‍म हो गया संकोच

उद्धव के पांव एक बार मातोश्री से बाहर निकले तो फिर सारा संकोच जाता रहा। कांग्रेस नेता अहमद पटेल से आधी रात को उनके होटल में जाकर मिले। अपने विधायकों से मिलने और उनको बिखरने से बचाने के लिए कई बार मालाड के होटल रीट्रीट गए। कांग्रेस-राकांपा के विधायकों से भी मिलने उनके होटलों में जाते रहे। शरद पवार से भी कई मुलाकातें हुईं।

सीएम के लिए उद्धव ही सही 

बीच शरद पवार को अहसास हुआ कि राज्य में स्थायी सरकार बनाने के लिए शिवसेना को पांच साल के लिए मुख्यमंत्री पद देना ही उचित होगा। यह पद उम्र में कम होने के कारण आदित्य को दिया नहीं जा सकता था। शिवसेना के किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री जैसा महत्त्वपूर्ण पद देने से शिवसेना के साथ-साथ सरकार में भी सत्ता का दूसरा ध्रुव तैयार हो सकता था। ये न शरद पवार के लिए उचित होता, न उद्धव ठाकरे के लिए। आखिरकार 22 नवंबर को वाइबी चह्वाण सेंटर में हुई बैठक में शरद पवार ने शिवसेना स्टाइल में उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने का आदेश दिया। उद्धव को यह आदेश मानना भी पड़ा। इसके बाद का घटनाक्रम सबके सामने है। अब ‘मातोश्री’ से कदम बाहर निकाल चुके उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास ‘वर्षा’ की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। 

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