सियासी जंग में शीला नजीब के संग
सूबे में हुकूमत को लेकर ताजा टकराव में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने उपराज्यपाल नजीब जंग का खुलकर समर्थन किया है। दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष पद को लेकर दीक्षित ने कहा कि सीधी और साफ बात यह है कि फाइल उपराज्यपाल के पास ही भेजी जानी चाहिए।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। सूबे में हुकूमत को लेकर ताजा टकराव में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने उपराज्यपाल नजीब जंग का खुलकर समर्थन किया है। दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष पद को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल जंग के बीच नए सिरे से शुरू हुए टकराव पर दीक्षित ने कहा कि सीधी और साफ बात यह है कि फाइल उपराज्यपाल के पास ही भेजी जानी चाहिए। अपने 15 साल के कार्यकाल में महिला आयोग में तीन-तीन अध्यक्ष की नियुक्ति का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इस पद के लिए कभी किसी विवाद की नौबत नहीं आई।
आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा स्वाति मालीवाल को दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बनाए जाने और उपराज्यपाल द्वारा इस नियुक्ति को खारिज किए जाने से पैदा विवाद को लेकर पूछने पर दीक्षित ने कहा कि इस पूरे मामले में दो-तीन बातें बेहद महत्वपूर्ण हैं। पहली बात तो यह कि जब दिल्ली के मंत्रियों को शपथ दिलानी होती है तो फाइल आखिरकार उपराज्यपाल के पास ही जाती है। उसी प्रकार महिला आयोग के अध्यक्ष पद के मामले में भी ऐसा किया जाना जरूरी है।
उन्होंने कहा, मैंने अपने कार्यकाल में अंजलि राय, प्रो. किरण वालिया और बरखा सिंह को यह कुर्सी सौंपी, लेकिन बाकायदा उपराज्यपाल की अनुमति लेकर। दूसरी बात यह कि कांग्रेस सरकार ने हमेशा अपनी विधायक को ही यह कुर्सी सौंपी। जनप्रतिनिधि होने के नाते यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी किसी विधायक को ही सौंपी भी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि तीसरी और सर्वाधिक अहम बात यह है कि यदि चुनी हुई सरकार तय प्रारूप के तहत प्रस्ताव उपराज्यपाल के पास भेजती है तो राजनिवास से मनाही किए जाने की कतई कोई वजह नहीं है।
दीक्षित ने कहा कि अन्य मामलों की तरह ही दिल्ली महिला आयोग अध्यक्ष मामले में भी उन्हें कभी कोई दिक्कत नहीं पेश आई। जब भी उपराज्यपाल को फाइल भेजी गई, वह हस्ताक्षर होकर आ गई। लिहाजा, केजरीवाल सरकार को भी ऐसा ही करना चाहिए था और आखिरकार उसने यही किया भी है।
उन्होंने कहा कि यदि किसी पद के लिए उपराज्यपाल को एक ही नाम भेजा जाता है तो वह दो-तीन और नाम भेजने की सलाह दे सकते हैं। लेकिन यदि सरकार अपने चयन से संतुष्ट है तो उपराज्यपाल को सरकार की पसंद को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। दीक्षित ने कहा कि उन्हें यह लगता है कि दिल्ली की बेहतरी के लिए उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है।