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बाल विवाह के खिलाफ बिगुल फूंक जीती कानूनी लड़ाई, अब की मनपसंद शादी

चाचा की शादी की चाहत में परिवार ने आठ वर्ष की उम्र में ही उसे बालिका वधू बना दिया था। समझदार हुई तो फरमान को मानने से साफ इन्कार कर दिया।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 10:16 PM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 10:16 PM (IST)
बाल विवाह के खिलाफ बिगुल फूंक जीती कानूनी लड़ाई, अब की मनपसंद शादी
बाल विवाह के खिलाफ बिगुल फूंक जीती कानूनी लड़ाई, अब की मनपसंद शादी

 पानीपत, जागरण संवाददाता। वह अठखेलियां करने की उम्र में ही दुल्हन बन गई। समाज की कुरीति और उसके चाचा की शादी की चाहत में परिवार ने आठ वर्ष की उम्र में ही उसे बालिका वधू बना दिया था। समझदार हुई तो जीवन बर्बाद करने वाले फरमान को मानने से साफ इन्कार कर दिया। अब लवुश को जीवन साथी चुन लिया।

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यह संघर्ष भरी जीवन गाथा बीकॉम की छात्रा शशि की है। उसे धमकी भी मिली। परिवार और समाज का तिरस्कार भी झेलना पड़ा। अदालत का दरवाजा खटखटाया और जीत गई। अतिरिक्त जिला व सत्र अदालत ने गत 16 जुलाई को उसके पक्ष में फैसला सुनाया। केस जीतने के बाद सोमवार को करनाल के गांव गंजू गढ़ी निवासी लवुश से सात फेरे लेकर वैवाहिक जीवन की तरफ कदम बढ़ा दिए।

करनाल के बरसत गांव निवासी बलकार सिंह ने, जो अब पानीपत में रहते हैं, बेटी शशि का विवाह आठ वर्ष की आयु में आटा-साटा कुप्रथा के तहत उप्र के सहारनपुर के ढोला माजरा गांव के मन्नू से कर दिया। इसके बदले में मन्नू की बहन का विवाह लड़की के चाचा से हुआ। इस प्रथा के तहत जिस कुनबे से बहू लाई जाती है, उस कुनबे को अपने कुनबे की बेटी देनी होती है।

2017 में शशि जब कक्षा 12 में पहुंची तो पिता बलकार पर बेटी को विदा करने का दबाव पड़ा। बेटी से जिक्र किया तो उसने इन्कार कर दिया। उसने मन्नू को दिव्यांग, बेरोजगार और आयु अधिक बताते हुए ससुराल जाने से मना कर दिया। पौत्री के निर्णय से गुस्साए दादा ने जातीय परंपरा को ठेस लगती देख बलकार को जायदाद से बेदखल कर दिया। मार्च 2017 में पिता के साथ जाकर महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के यहां शिकायत दी। मई 2017 में कोर्ट में शादी खत्म करने के लिए केस दायर किया।

16 जुलाई 2018 को कोर्ट ने बाल विवाह मानते हुए, आठ साल की उम्र में मन्नू के साथ हुई शशि की शादी को रद कर दिया। इसके बाद बलकार ने अपनी बेटी का रिश्ता करनाल के गांव गंजू गढ़ी लवुश से कर दिया।

मन्नू अपनी बहन को घर ले गया 
कानूनी लड़ाई के दौरान मन्नू और उसके परिजनों ने शशि और उसके पिता बलकार पर कई तरह से दबाव डाले। मन्नू अपनी बहन (शशि की चाची) को भी यह कहकर अपने साथ ले गया कि अपनी बेटी दोगे तभी वह अपनी बहन को भेजेगा। बिरादरी की पंचायत बुलाकर भी खूब दबाव डाला गया। जिस लड़के लवुश से अब शादी हुई है, उसके अपहरण तक की धमकी दी गई थी।

कॉलेज में सेमिनार से मिली सीख 
शशि ने बताया कि ये तो पता था कि मेरी शादी हो चुकी है। इससे ज्यादा कुछ ज्ञान नहीं था। 11वीं में पढ़ाई के दौरान कॉलेज में बाल विवाह कुप्रथा पर एक सेमिनार हुआ था। उसमें पता चला कि कानूनी मदद से बाल विवाह को तोड़ा जा सकता है।

बाल विवाह का कलंक माथे से मिट गया। दामाद लवुश करनाल बस स्टैंड पर पानी बेचने का काम करता है। बेटी के ससुराल पक्ष को पूरा प्रकरण पता था फिर भी उन्होंने हमारा साथ दिया। सभी माता-पिता से एक ही प्रार्थना है कि समाज में चली आ रही कुप्रथा और आर्थिक तंगी का बहाना बनाकर बेटियों का विवाह कम उम्र में न करें।

-बलकार सिंह, शशि के पिता


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