इस मां की आंखों से छलकते हैं खुशी के आंसू, है अपील-बेटियों को दें दुआ
शशि अपनी मेहनत के दम पर अपनी छह बेटियों की जिंदगी संवार रही हैं। वह सफाई कर्मचारी हैं। आज बेटियों की सफलता देख उनका मन खुशी से फूले नहीं समाता।
मथुरा [मनोज चौहान]। मैं शशि जादों। लोगों के लिए एक मामूली सफाईकर्मी, पर छह बेटियों की मां। मेरी आंखों में हर बेटी के लिए एक ख्वाब पल रहा है। ये ख्वाब साकार हों, इसके लिए हर कठिन तपस्या करने को तैयार हूं। आखिर मां हूं, मैं नहीं करूंगी तो कौन संवारेगा उनका जीवन। सोच रहे होंगे कि आखिर यह सब आपको क्यों बता रही हूं। इसका मकसद सिर्फ यह बताना है कि बेटी हो या बेटा, दोनों बराबर हैं, उनका जीवन संवारने के लिए एक सा प्रयास करना चाहिए। मैंने भी संघर्ष किया है। अब देखती हूं कि बेटियां सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही हैं, तो मेरा मन खुशी में कुलांचे मारने लगता है।
नगर निगम में सफाई कर्मचारी
मैं नगर निगम में संविदा पर सफाई कर्मचारी हूं। कड़ाके की ठंड हो या फिर बारिश, मेरे कदम कभी नहीं रुकते। रोज सुबह झाड़ू लगाकर सड़क बुहारती हूं, इस उम्मीद के साथ कि इसी से बच्चों का जीवन संवरेगा। पति गंगा प्रसाद मिलिट्री हॉस्पिटल में सफाई कर्मचारी हैं। नौकरी काफी अव्यवस्थित है। ऐसे में चिंता छह बेटियों की परवरिश की थी। संविदा की नौकरी से बेटियों की पढ़ाई मुश्किल थी। ऐसे में कुछ न कुछ अतिरिक्त करना था। मन में आया कबाड़ बेचने का काम। सफाई के साथ रोज कबाड़ बीनती, फिर उसे एकत्र कर बेचती। जो पैसा मिलता, वह बेटियों की पढ़ाई पर खर्च करती।
आइएएस बनने का सपना
लोग पूछते हैं कि बेटियों की पढ़ाई की इतनी चिंता क्यों? अब क्या बताऊं? मैंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा, किताबों में लिखे अक्षर काले ही दिखते हैं। सोच लिया था कि बेटियों को अपनी तरह नहीं बनाऊंगी। बड़ी बेटी कुमकुम को ग्रेजुएशन कराया और फिर ब्यूटीशियन का कोर्स। उसकी शादी कर दी। दूसरे नंबर की बेटी डॉली की आंखों में बचपन से आइएएस बनने का सपना पल रहा था। इन सपने को पंख देने की जिम्मेदारी मेरी थी, कबाड़ बीनने में और मेहनत की। बेटी का दाखिला दिल्ली विश्वविद्यालय में कराया। डॉली वहां से आइएएस के प्री एग्जाम की तैयारी कर रही है।
बेटियों का दुआएं दें
तीसरे नंबर की अंजली दिल्ली के मेट्रो हॉस्पिटल से बी-फार्मा कर रही है। चौथे नंबर की नीलम वकील बनना चाहती है। वह बीएसए कॉलेज से एलएलबी कर रही है। पांचवें नंबर की कंचन ग्रेजुएशन करने के बाद एक बड़ी कंपनी में सेल्स एक्जीक्यूटिव है। सबसे छोटी अर्चना इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रही है। जब बेटियों के हाथ में किताबें देखती हूं तो आंखों से खुशी के आंसू छलक आते हैं। सब बिहारी जी की कृपा है। उनके दर पर माथा टेकती हूं, कि बेटियों का जीवन सुधरे। आप सबसे से गुजारिश है कि बेटियों का दुआएं दें। वह पढ़ें, बढ़ें और नेक रास्ते पर चलें।
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