शरई अदालतें असंवैधानिक घोषित हों, मुस्लिम महिला ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
जिकरा ने अपनी अर्जी में अनुरोध किया है कि धारा 498-ए के तहत तीन तलाक को क्रूरता घोषित किया जाए।
नई दिल्ली, प्रेट्र। निकाह, तलाक और अन्य मामलों पर फैसले के लिए शरई अदालतों के गठन को असंवैधानिक घोषित करने की मांग करने वाली मुस्लिम महिला की एक याचिका पर विचार करने के लिए उच्चतम न्यायालय तैयार हो गया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने जिकरा से कहा कि वह नए सिरे से अर्जी दायर करे। उन्होंने मुसलमानों में व्याप्त बहुविवाह और निकाह हलाला के मामले में चल रही सुनवाई में पक्षकार बनने की अनुमति मांगी थी।
पिछले वर्ष एक साथ तीन तलाक को खत्म करने का फैसला सुनाने वाले न्यायालय ने बहुविवाह और निकाह हलाला को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 26 मार्च को संविधान पीठ का गठन किया था। मुसलमानों में व्याप्त बहु विवाह की प्रथा एक पुरुष को चार महिलाओं के साथ विवाह का हक देती है।
वहीं निकाह हलाला में यदि पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देने के बाद उससे फिर विवाह करना चाहता है, तो महिला को पहले किसी अन्य पुरुष से विवाह करना होगा। फिर दूसरे पति से तलाक लेने के बाद इद्दत की अवधि गुजारने के बाद ही वह अपने पहले पति से विवाह कर सकेगी।
उत्तर प्रदेश की रहने वाली 21 वर्षीय जिकरा दो बच्चों की मां हैं। न्यायालय में उनकी ओर से अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय पेश हुए थे। जिकरा ने अपनी अर्जी में अनुरोध किया है कि धारा 498-ए के तहत तीन तलाक को क्रूरता जबकि निकाह हलाला, निकाह मुताह और निकाह मिस्यार को धारा 375 के तहत दुष्कर्म घोषित किया जाए।
अर्जी में कहा गया है कि बहुविवाह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत अपराध है। जबकि भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ निकाह हलाला और बहुविवाह की अनुमति देता है। जिकरा ने अपनी अर्जी में तीन तलाक, निकाह हलाला और अन्य कानूनों तथा परंपराओं के हाथों अपनी प्रताड़ना की बात कही है। उनको दो बार तलाक का सामना करना पड़ा और अपने ही पति से निकाह करने के लिए निकाह हलाला से गुजरना पड़ा।