आजादी के इतने वर्षों बाद भी इस गांव में नहीं हो पाया कोई साक्षर, कहलाता है अनपढ़ों का गांव
छत्तीसगढ़ में एक गांव ऐसा है, जहां के इतिहास में आज तक कोई भी स्कूल नहीं गया। यहां के सभी लोग पूरी तरह अनपढ़ हैं।
जशपुर। एक तरफ देश भर में पूर्ण साक्षरता के लिए सरकार कानून बनाने पर विचार कर रही वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में एक गांव ऐसा है, जहां के इतिहास में आज तक कोई भी स्कूल नहीं गया। यहां के सभी लोग पूरी तरह अनपढ़ हैं। जशपुर जिले में विशेष संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोगों को ऊपर उठाने के लिए सरकार कहने को प्रयास कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि एक गांव जहां इस जनजाति के लोग रहते हैं, वे पूरी तरह शिक्षा की रौशनी से दूर हैं। अंबापकरी नाम के इस गांव में स्कूल और शिक्षा से किसी को भी सरोकार नहीं है। बगीचा तहसील के पंड्रापाठ पंचायत का यह आश्रित ग्राम आजादी के 70 पंचायत मुख्यालय से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव तक पहुंचने में ही पसीने छूट जाएंगे, क्योंकि यहां तक पहुंचने के लिए पूरे पांच किलोमीटर की पत्थरीली पगडंडी का रास्ता तय करना पड़ता है।
इस शत प्रतिशत पहाड़ी कोरवा बाहुल्य गांव में 20 परिवार निवासरत हैं, लेकिन बुनियादी सुविधा के नाम पर शासन-प्रशासन ने किस प्रकार कागजी खानीपूर्ति की है, यह देख कर आप दंग रह जाएंगे। गांव में पानी की जरूरत पूरा करने के लिए एक हैंडपंप बरसों पहले खुदवाया गया था, लेकिन खुदाई होने के बाद से ग्रामीणों को एक बाल्टी पानी इस हैंड पंप से नहीं मिल पाया है। लाल पानी निकलने की वजह से यह बंद पड़ा हुआ है। पानी के लिए महिलाओं को रोजना 6 किलोमीटर पदयात्रा कर खेत के बीच में स्थित ढोढ़ी तक जाना पड़ता है। यही हाल क्रेडा द्वारा स्थापित सौर उर्जा प्लांट का भी है। सरकारी कागज में यह कोरवा बस्ती विद्युतीकृत घोषित कर दिया गया है, लेकिन सामान्य दिनों में बामुश्किल पांच घंटे ही बिजली मिल पाती है। बारिश के दिनों में बैटरी के चार्ज ना होने से अंधेरे में ही ग्रामीणों को रात गुजारनी पड़ती है।
बच्चे से बुजुर्ग तक किसी ने नहीं देखा स्कूल
अंबापकरी गांव की सबसे बड़ी विडंबना है इस गांव का शत प्रतिशत निरक्षर होना। इस गांव में ना तो प्राथमिक शाला है और ना ही आंगनबाड़ी केन्द्र। वन बाधित इस गांव में सबसे नजदीकी स्कूल और आंगनबाड़ी केन्द्र गांव से 4 किलोमीटर दूर तेंदपाठ गांव में स्थित है। जंगली जानवरों के भय से इस गांव से आज तक कोई भी इस 4 किलोमीटर की दूरी को तय करने का साहस नहीं जुटा पाया। नतीजा बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक किसी ने आज तक स्कूल और आंगनबाड़ी में कदम नहीं रखा है। यह गांव शत प्रतिशत निरक्षर है।
4 डिग्री के ठंड में घास का सहारा
विकास और साक्षरता से महरूम इस गांव में गरीबी किस कदर हावी है, इसे इन पहाड़ी कोरवाओं के ठंड से बचाव के जुगाड़ को देख कर समझा जा सकता है। इन दिनों इस पाट क्षेत्र में शीत लहर की वजह से पारा 4 से 5 डिग्री के आसपास है। इस कड़ाके की सर्दी में गर्म कपड़े ना होने की वजह से अंबापकरी के ग्रामीण घास के बने हुए झोपड़ी में अपने तन को छुपाए हुए नजर आएंगे।
इस बारे में ट्राइवल विभाग के सहायक आयुक्त एसके वाहने का कहना है कि पहाड़ी कोरवा विशेष संरक्षित जनजाति है। इनके क्षेत्र में सरकार विकास के लिए हर तरह के प्रयास कर रही है। अंबापकरी गांव के लोग शिक्षा से अछूते क्यों हैं, यह बात समझ से परे है। अब यहां शासन स्तर पर साक्षरता के लिए प्रयास तेज करेंगे।