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पति की चिता पर खाई थी कसम, शहीद की पत्‍नी ने इकलौते बेटे को सैनिक बना की पूरी

संजय को अपने पिता की वीरता और शहादत पर गर्व है। वह पूरी शिद्दत से उनके अधूरे काम को पूरा करना चाहता है। पिता की शहादत का बदला लेना चाहता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 23 Feb 2019 08:55 AM (IST)Updated: Sat, 23 Feb 2019 02:09 PM (IST)
पति की चिता पर खाई थी कसम, शहीद की पत्‍नी ने इकलौते बेटे को सैनिक बना की पूरी
पति की चिता पर खाई थी कसम, शहीद की पत्‍नी ने इकलौते बेटे को सैनिक बना की पूरी

कानपुर, गौरव दीक्षित। यूनान मिस्न रोमन सब मिट गए जहां से; बाकी मगर है अब तक नामो निशां हमारा; कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी; सदियों रहा है दुश्मन, दौर ए जहां हमारा... यह कहानी एक भारतीय सैनिक के परिवार की है, जो हर हिंदुस्तानी को गर्व से भर दे। कहानी एक शहीद की विधवा के प्रण और उसके बेटे के संकल्प की है। यह भारत की एक मां के जज्बे की बानगी भर है, जो दुश्मन का हौसलापस्त कर देने को काफी है। यह कहानी भारत के शहीदों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि है। जी हां, यह न तो जिद है, न जुनून।

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दरअसल यही वो पुरअसर जज्बा है जिसे भारतीयता कहते हैं। यही वो महानतम संस्कार हैं जिसे हम राष्ट्रप्रेम कहते हैं। यही हमारी संस्कृति, यही विरासत और यही पहचान है। ये आदर्श, ये मूल्य ही हमें औरों से कहीं बेहतर निरूपित करते आए हैं। इन्हीं के बूतेर हिंदुस्तान जिंदाबाद है और रहेगा।

सावित्री सिंह यादव की कसम आज पूरी हो गई। यह वो दृढ़ प्रतिज्ञा थी जो उन्होंने शहीद पति की चिता के सामने ली थी। गोद में ढाई साल के इकलौते बेटे को उठा कहा था- तुम्हारे बेटे को भी सैनिक बनाऊंगी...। तुम्हारी शहादत का बदला तुम्हारा बेटा लेगा...। सावित्री ने इस प्रतिज्ञा को पूरा कर दिखाया है। आज बेटा उसी शहर में सैन्य प्रशिक्षण ले रहा है, जहां कभी पिता तैनात रहे थे।

यह कहानी है कानपुर, यूपी की नर्वल तहसील के कस्बा साढ़ स्थित मजरा मिर्जापुर में जन्मे शहीद लांस नायक जय सिंह यादव के परिवार की। पत्नी सावित्री के प्रण और बेटे संजय के संकल्प की। साल 2001 में बारामूला में आतंकियों से मुठभेड़ में जय सिंह शहीद हो गए थे। तब सावित्री की गोद में छह माह की प्रीती, ढाई साल का इकलौता बेटा संजय और पांच साल की प्रियंका थी। अभी गृहस्थी बसनी शुरू ही हुई थी कि पति की शहादत ने झकझोर दिया। जब शव गांव आया तो पूरा गांव व्याकुल था। सावित्री बेसुध थीं, लेकिन पति की शहादत के गर्व को उन्होंने बेबसी के आंसुओं में बहने नहीं दिया। अपने को मजबूत किया और पति की चिता के सामने संजय को गोद उठा प्रतिज्ञा ली कि उसे सैनिक बनाएंगी।

यह सावित्री के जज्बे की इंतहा ही थी कि महज ढाई साल के बेटे से पति के पार्थिव को मुखाग्नि दिलाई थी। वह आग उनके सीने में तब तक धधकती रही जब तक कि बेटे ने सैनिक की वर्दी न पहन ली। उन्होंने संजय को हर रोज यह याद दिलाया कि उसे अच्छा पढ़ना है। सेना में जाना है। पिता के अधूरे काम को पूरा करना है...। संजय ने भी मां की कसम पूरी करने में कसर नहीं छोड़ी। जीजान से तैयार में लगा रहा। आखिर सावित्री का प्रण पूरा हुआ। संजय ने सेना भर्ती परीक्षा पास की। 5 सितंबर, 2018 को प्रशिक्षण के लिए ज्वाइन किया। वह पुणे स्थित उसी आर्मी सेंटर में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है, जहां कभी उसके पिता जय सिंह तैनात रहे थे।

रघुवीर प्रसाद यादव और कामिनी देवी के पुत्र लांस नायक जय सिंह सैन्य इंटेलीजेंस कोर पुणे में तैनात थे। पोस्टिंग बारामुला में थी। सात दिसंबर 2001 को क्षेत्र में आतंकियों के होने की खुफिया सूचना मिली। सर्च ऑपरेशन शुरू हुआ। जल्द ही आतंकियों से आमना-सामना हो गया। जय सिंह ने दो खूंखार आतंकी मार गिराए। उन्हें भी कई गोलियां लगीं और शहीद हो गए।

संजय को अपने पिता की वीरता और शहादत पर गर्व है। वह पूरी शिद्दत से उनके अधूरे काम को पूरा करना चाहता है। पिता की शहादत का बदला लेना चाहता है। कहती हैं सावित्री...: सावित्री देवी कहती हैं, सरकार पुलवामा हमले का बदला ले। दुश्मन को उसकी ही भाषा में जवाब देना चाहिए। साथ ही सरकारों को शहीदों के परिवार से किए गए वादे भी ईमानदारी से निभाने चाहिए। उनसे भी कई वादे किए गए थे, लेकिन पूरे नहीं हुए।


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