आंध्र प्रदेश ही नहीं बल्कि कई अन्य राज्यों ने भी कर रखी है विशेष दर्जे की मांग
देश के 29 में से 11 राज्यों को मौजूदा वक्त में विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है और आंध्र प्रदेश के अलावा बिहार, गोवा, राजस्थान व ओडिशा की सरकारें भी इस दर्जे की मांग कर रही हैं।
नई दिल्ली [रिजवान निजामुद्दीन अंसारी]। आंध्र प्रदेश के टीडीपी के रुख के बाद देश में विशेष राज्य के दर्जे का मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है। देश के 29 में से 11 राज्यों को मौजूदा वक्त में विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है और आंध्र प्रदेश के अलावा बिहार, गोवा, राजस्थान व ओडिशा की सरकारें भी इस दर्जे की मांग कर रही हैं। दरअसल विशेष राज्य के दर्जे को प्राप्त करने के लिए कुछ शर्ते निर्धारित की गई हैं, लेकिन उपरोक्त राज्यों में से एक भी ऐसा राज्य नहीं है जो सभी मापदंडों पर खरा उतरता हो। अब सवाल है कि क्या-क्या शर्ते निर्धारित की गई हैं? पहला है राज्यों का पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्र होना।
गौरतलब है कि जो विशेष दर्जा प्राप्त 11 राज्य हैं वे सभी भौगोलिक रूप से पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। चाहे उत्तर-पूर्व के राज्य हों या जम्मू-कश्मीर या उत्तराखंड जैसे राज्य, ये सभी पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। वहीं दूसरी ओर आंध्र प्रदेश, बिहार, राजस्थान जैसे राज्य इस मापदंड पर खरे नहीं उतरते। दूसरा, निम्न जनसंख्या घनत्व के साथ-साथ जनजातीय आबादी भी होनी चाहिए। इस मापदंड पर भी राज्य खड़े नहीं उतरते। जहां तक आदिवासी जनसंख्या का सवाल है तो आंध्र प्रदेश, राजस्थान तथा ओडिशा तीन ऐसे राज्य हैं जहां आदिवासियों की तादाद अच्छी खासी है, लेकिन फिर आपको याद रखना होगा कि विशेष दर्ज के लिए एक साथ सभी शर्तो को पूरा करना आवश्यक है।
तीसरा है महत्वपूर्ण सामरिक भौगोलिक स्थिति यानी अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ाव। इसमें चौथी शर्त है आधारभूत ढांचे और औद्योगिक ढांचे का पिछड़ापन। 2014-15 के अनुसार आंध्र प्रदेश की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 93 हजार रुपये है। अगर औद्योगिक ढांचे की बात करें तो आंध्र प्रदेश देश के शीर्ष पांच औद्योगिक राज्यों की श्रेणी में आता है।1विशेष राज्य के दर्जे में सबसे महत्वपूर्ण और विवादपूर्ण प्रावधान कमजोर वित्तीय स्थिति है। आइएमएफ की मानें तो आंध्र प्रदेश का प्रति व्यक्ति जीडीपी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के मुताबिक आंध्र प्रदेश को 22 हजार करोड़ रुपये राजस्व घाटे के रूप में 2015-20 तक दिए जाएंगे। जबकि आंध्र प्रदेश सरकार ने खुद अपना राजस्व घाटा 16 हजार करोड़ रुपये ही बताया है।
दूसरी ओर देखें तो आंध्र प्रदेश ऐसे समय में विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहा है जब 14वें वित्त आयोग ने इस व्यवस्था को खत्म करने की अनुशंसा की है। गौरतलब है कि इस वित्त आयोग ने पिछले वित्त आयोग (2010-15) की तुलना में दस फीसद ज्यादा कर राज्यों को वितरित करने की अनुशंसा की है। लिहाजा राजस्व का एक बड़ा भाग राज्यों को यूं ही मिल जा रहा है। उसके बाद भी विशेष दर्जा देना केंद्र सरकार पर एक अतिरिक्त बोझ होगा। यहां पर यह जानना भी बेहद जरूरी है कि राज्य विशेष दर्जे की मांग क्यों करते हैं। दरअसल किसी भी योजना को सामान्य राज्यों में लागू करने के लिए खर्च का 60:40 अनुपात केंद्र और राज्यों के बीच तय किया जाता है, लेकिन जब बात विशेष राज्य की आती है तो यह समीकरण बदल जाता है।
फिर इसमें केंद्र सरकार को 90 फीसद खर्च देना होता है। यही कारण है कि राज्य अधिक से अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त करने की इच्छा से विशेष दर्जे की मांग करते रहते हैं।1लेकिन सवाल है कि तकनीकी मानकों की उपेक्षा करते हुए अगर आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दे भी दिया जाए तो पहले से ही कई राज्य जो दबाव बना रहे हैं उनका क्या होगा? अगर सभी को विशेष दर्जा देने की रिवायत बन जाए तो इसकी अहमियत ही क्या रह जाएगी? वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आंध्र प्रदेश को साफगोई से मना कर एक बेहतर संदेश दिया है। भारत के संघवाद पद्धति को संतुलित बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि किसी प्रावधान का राजनीतिक फायदा न उठाया जाए। अन्यथा राज्यों में एक दूसरे के प्रति असंतोष की भावना पैदा हो जाएगी, जो लोकतंत्र की सफलता में यकीनन एक रुकावट बनकर उभरेगी।’
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