व्यक्ति विशेष की सुरक्षा पर खर्च का ब्योरा तलब
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से संवैधानिक पदों से इतर लोगों को दी गई सुरक्षा पर खर्च का ब्योरा तलब किया है। इनमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के साथ वीवीआइपी लोगों के परिजनों का ब्योरा शामिल है। मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से संवैधानिक पदों से इतर लोगों को दी गई सुरक्षा पर खर्च का ब्योरा तलब किया है। इनमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के साथ वीवीआइपी लोगों के परिजनों का ब्योरा शामिल है। मामले की अगली सुनवाई 15 मार्च को होगी।
कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों मसलन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यों में इनके समकक्षों को दी गई सुरक्षा का विवरण नहीं चाहिए। इससे पहले जस्टिस जीएस सिंघवी और एचएल गोखले की पीठ के समक्ष वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने दलीलें रखीं। उन्होंने कई उदाहरणों के साथ स्पष्ट किया कि किस तरह सुरक्षा देने के प्रावधानों और लाल बत्ती का दुरुपयोग किया जा रहा है।
साल्वे ने बताया कि पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी अपने सुरक्षाकर्मियों और समर्थकों के साथ जिला मजिस्ट्रेट के दफ्तर में घुसकर तोड़फोड़ की। उन्होंने कहा कि यह समस्या अब राजनीतिक संस्कृति बन चुकी है। राज्यों के हलफनामे के आधार पर पीठ ने विजय माल्या जैसी शख्सियतों को दी गई सुरक्षा का विवरण भी मांगा है। कोर्ट ने यह जानना चाहा कि ऐसे लोग अपनी सुरक्षा का खर्च खुद उठा रहे हैं या राज्य सरकार वहन कर रही है। कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से उन आदेशों की प्रति भी मांगी है जिसके तहत पुलिस को यातायात और आवाजाही को रोकने का अधिकार मिल जाता है। कोर्ट ने वीवीआइपी की आवाजाही में सायरन के इस्तेमाल को भी गलत बताया।
लाल बत्ती के दुरुपयोग को लेकर उत्तर प्रदेश के नागरिक द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। हरीश साल्वे ने भी इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। साल्वे ने कहा कि अगर सड़क लोगों के लिए असुरक्षित है तो यह राज्य के सचिव के लिए भी होनी चाहिए। इससे पूर्व साल्वे ने तीन दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री आइके गुजराल की अंतिम यात्रा के दौरान यातायात रोकने और अन्य व्यवस्थाओं पर सवाल उठाया था। सुनवाई के दौरान जस्टिस सिंघवी ने कहा कि आइके गुजराल ने कभी जिंदा रहते यह नहीं किया था लेकिन उनके पार्थिव शरीर के लिए ऐसा किया गया। इन दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि सभी नागरिकों को समान दर्जा मिलना चाहिए। कोर्ट ने इस संबंध में विवरण भी राज्यों से तलब किए। साल्वे ने सुरक्षा पर केंद्र सरकार को दिशानिर्देश तय करने के लिए निर्देश देने की मांग की।
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