नक्सली मुठभेड़ में पाक निर्मित गोलियों के इस्तेमाल पर सुरक्षा एजेंसियां सतर्क
बिहार के रजौली में मुठभेड़ में नक्सलियों की ओर से पाकिस्तान बनी एके-47 की गोलियों के इस्तेमाल को सुरक्षा एजेंसियां ने गंभीरता से लिया है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। बिहार के रजौली में मुठभेड़ में नक्सलियों की ओर से पाकिस्तान बनी एके-47 की गोलियों के इस्तेमाल को सुरक्षा एजेंसियां ने गंभीरता से लिया है। स्थानीय पुलिस से इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट तलब की गई है। जल्द ही खाली कारतूस को फारेंसिक जांच के लिए भेजा जाएगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह पता लगाना जरूरी है कि पाकिस्तान निर्मित गोलियां नक्सलियों तक कैसे और किन लोगों की मदद से पहुंची हैं।
सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि नक्सलियों के आइएसआइ व आतंकी संगठनों से साठगांठ कोई नई बात नहीं है। 2010 में छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की बैठक में लश्करे तैयबा के दो आतंकियों के शामिल होने की खुफिया विभाग ने रिपोर्ट दी थी। यही नहीं, 2012 में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक नपराजित मुखर्जी ने बताया था कि किस तरह से आइएसआइ और नक्सलियों के ओवरग्राउंड संगठनों के बीच संबंध पनप रहा है और इसमें प्रतिबंधित सिमी अहम भूमिका निभा रहा है।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जल्द ही गोली के मिले खोखे की फारेंसिक जांच की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पाकिस्तान के किस आर्डिनेंस फैक्ट्री में यह बनी है। एक बार रिपोर्ट आने के बाद इन गोलियों के नक्सलियों तक पहुंचने के पूरे रूट और किरदारों का पता लगाने की कोशिश होगी, ताकि भविष्य में इसे रोका जा सके।
सबसे पहले नक्सलियों ने 2005 में पाकिस्तान में बनी गोलियों का इस्तेमाल किया था। उस समय छत्तीसगढ़ के बलरामपुर में एक थाने पर हमले में नक्सलियों बड़ी संख्या में पाकिस्तान में बनी गोलियों का इस्तेमाल किया था। बाद में फारेंसिक जांच में पता चला कि नक्सलियों ने पाकिस्तान में जिस फैक्ट्री में बनी गोलियों का इस्तेमाल किया था, उन्हीं गोलियों का इस्तेमाल 2001 में जैश ए मोहम्मद के आतंकियों ने संसद पर हमले के दौरान किया था।
खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि नक्सलियों के पूर्वोत्तर के कई आतंकी और अलगाववादी संगठनों के साथ गहरे रिश्ते हैं। खुफिया रिपोर्टो के मुताबिक आइएसआइ मणिपुर लिबरेशन आर्मी के मार्फत नक्सलियों को हथियारों की सप्लाई करता रहा है। लेकिन सुरक्षा एजेंसियों की चौकसी के कारण पिछले कुछ सालों में इस पर काफी हद तक लगाम लगी है।