1533 में बने ब्रिटिश कानून पर आधारित था धारा 377
समलैंगिक संबंधों को पर बनी धारा 377, 1533 में ब्रिटेन में बने एक कानून पर आधारित थी।
नई दिल्ली (प्रेट्र)। समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाले 158 साल पुराने कानून को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था आइपीसी की धारा 377 से समानता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होता है। लेकिन, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह कानून 1533 में ब्रिटेन में बने एक कानून पर आधारित था।
इस मुद्दे पर फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ में शामिल जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि आइपीसी की धारा 377 को हेनरी-आठ के समय बने अप्राकृतिक संबंध अधिनियम के आधार पर तैयार किया गया था। इसमें आदमी या जानवर के साथ अप्राकृतिक संबंधों को घृणास्पद अपराध करार दिया गया था। इसमें मृत्युदंड तक का प्रावधान किया गया था। यह कानून लगभग तीन सौ वर्षों तक कायम रहा। 1828 में व्यक्ति के खिलाफ अपराध अधिनियम बनाकर पुराने कानून को खत्म कर दिया गया। ब्रिटेन में 1861 तक समलैंगिक संबंधों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान बना रहा। भारत के आजाद होने के बाद भी समलैंगिक संबंध अपराध बना रहा।
158 साल पुराने प्रावधान के इतिहास का जिक्र
समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आइपीसी की धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त करने वाले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 158 साल पुराने इस प्रावधान के इतिहास का जिक्र किया जिसे 1533 में ब्रिटेन के राजा हेनरी अष्टम के शासनकाल में बनाए गए कानून से लिया गया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने छह सितंबर को अपने फैसले में कहा कि आइपीसी की धारा 377 ने समानता और गरिमा के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन किया है।
धारा 377 पर विस्तार से बताया
न्यायमूर्ति नरीमन और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में धारा 377 पर विस्तार से बताया। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि धारा 377 ब्रिटेन के बगरी अधिनियम, 1533 पर आधारित है, जिसे तत्कालीन राजा हेनरी अष्टम ने बनाया था।