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केरल के बाद अब कर्नाटक में भी मंडरा रहा है बाढ़ का खतरा, पीआइके ने दी है चेतावनी

वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि आने वाले दिनों में उत्तरी गोलार्द्ध में मौसम का और भी विध्वंसकारी रूप देखने को मिल सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 21 Aug 2018 09:24 AM (IST)Updated: Tue, 21 Aug 2018 11:04 AM (IST)
केरल के बाद अब कर्नाटक में भी मंडरा रहा है बाढ़ का खतरा, पीआइके ने दी है चेतावनी
केरल के बाद अब कर्नाटक में भी मंडरा रहा है बाढ़ का खतरा, पीआइके ने दी है चेतावनी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अभी केरल में मानसूनी बाढ़ की त्रासदी पूरी तरह रुक भी नहीं पाई है कि कर्नाटक में भी बाढ़ का खतरा तेज होता जा रहा है। इस बीच वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है कि आने वाले दिनों में उत्तरी गोलार्द्ध में मौसम का और भी विध्वंसकारी रूप देखने को मिल सकता है। जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च (पीआइके) और एम्सटरडम के व्रिजे यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के कई हिस्सों में अत्यधिक प्रलयकारी मौसम अपना कहर बरपा सकता है। ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते मौसम चक्र में आए बदलावों से आगे आने वाले समय में गर्मी और बारिश का प्रकोप बढ़ता ही जाएगा। यह रिपोर्ट नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित हुई है।

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ग्रीनहाउस गैसों ने बढ़ाई परेशानी

वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसानों द्वारा किया गया ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पूर्व की ओर बहने वाली हवाओं को अवरुद्ध करता है। इसके चलते गर्मी के मौसम की अवधि लंबी हो जाएगी। तपाने, झुलसाने वाली गर्मी ज्यादा दिन पड़ेगी और इसके बाद बारिश भी समय से अधिक दिन होगी। ग्रीनहाउस गैसों की वजह से बढ़ रही ग्लोबल वॉर्मिंग प्रकृति के बने बनाए सांचे को बिगाड़ रही है।

आपदाएं बढ़ने की संभावना

अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक बारिश दोनों ही लू, सूखा, दावानल और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह बनेंगी। उत्तरी गोलार्द्ध के कई हिस्सों में इस साल अत्यधिक गर्मी पड़ने से जंगलों में आग लगी। आर्कटिक के घेरे में आने वाले उत्तरी यूरोप में भी तापमान 30 डिग्री के पार पहुंचा।

आर्कटिक का पिघलना बड़ा खतरा

दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग की औसत दर से दो गुना अधिक गति से आर्कटिक गर्म हो रहा है। आर्कटिक में अत्यंत कम तापमान और दक्षिण की ओर गर्म तापमान के फर्क से ही पृथ्वी के चारों ओर मौसमों को संचालित करने वाली हवाएं चलती हैं। इन दोनों जगहों के तापमान का अंतर जितना कम होता जाएगा, इन हवाओं की रफ्तार कम होती जाएगी। इसके चलते गर्मी और बारिश का मौसम अधिक समय तक रहेगा। जिस गति से आर्कटिक की बर्फ पिघल रही है उसकी वजह से गहरे रंग का पानी और जमीनी सतह सूर्य की गर्मी सोख रहे हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग में ही इजाफा हो रहा है।  


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