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वर्षों से चल रही है चमगादड़ों पर रिसर्च, 2013 में सामने आई थी कोरोना वायरस की थ्‍योरी

जिस जानलेवा वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है उसकी खोज काफी समय पहले वैज्ञानिक कर चुके थे। अब तक ऐसे करीब 500 वायरस की पहचान भी की जा चुकी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 28 Apr 2020 10:40 AM (IST)Updated: Tue, 28 Apr 2020 09:36 PM (IST)
वर्षों से चल रही है चमगादड़ों पर रिसर्च, 2013 में सामने आई थी कोरोना वायरस की थ्‍योरी
वर्षों से चल रही है चमगादड़ों पर रिसर्च, 2013 में सामने आई थी कोरोना वायरस की थ्‍योरी

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। कोरोना वायरस की उत्‍पत्ति और सवालों के बीच इसके वाहक बने चमगादड़ों पर कई देशों में रिसर्च चल रही है। चीन में ऐसी ही रिसर्च जनवरी में उस वक्‍त की गई थी जब वुहान समेत पूरे देश में कोरोना वायरस के मामले हजारों में पहुंच चुके थे। ये खोज यूनान प्रांत में मौजूद चूना पत्‍थर की गुफाओं में की गई थी। इस खोज को अमेरिका की गैर लाभकारी संस्‍था इको-हेल्‍थ एलाइंस ने अंजाम दिया था। इस रिसर्च के दौरान वैज्ञानिक यहां से चमगादड़ों के जालों, थूक और खून समेत कई तरह के नमूने एकत्रित किए। इस दौरान वैज्ञानिकों का दल विशेष सुरक्षा सूट पहने हुए था। आपको बता दें कि इको-हेल्थ एलाइंस नए घातक वायरसों की पहचान करने और बचाव करने में मदद करता है।

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इको-हेल्‍थ एलांइस के अध्‍यक्ष और वैज्ञानिक पीटर दासजाक इससे पहले भी इस तरह की खोज कर चुके हैं। आपको बता दें कि पूरी दुनिया में चमगादड़ों से सृजित करीब 500 घातक वायरस खोजे जा चुके हैं। वर्ष 2003 और वर्ष 2004 में भी इस तरह के घातक वायरस की खोज की गई थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक खोजे गए घातक वायरस और दुनिया के लिए समस्‍या बना नोवेल कोरोना वायरस इनसे करीब 96 फीसद तक मेल खाता है। खुद पीटर ही बीते 10 वर्षों में 20 से ज्यादा देशों में खतरनाक वायरस की खोज कर चुके हैं।

इन वैज्ञानिकों के लिए खोज का माध्‍यम केवल चमगादड़ ही नहीं बनते हैं बल्कि दूसरे जानवर भी होते हैं। जहां तक चमगादड़ों की बात है तो आपको यहां पर ये भी बता देते हैं कि अब तक हुई रिसर्च में ये बात काफी दमदार तरीके से सामने आई है कि चमगादड़ों के जरिए ही ये वायरस पहले चीन में और फिर पूरी दुनिया में फैला है। आपको बता दें कि आस्‍ट्रेलिया में चमगादड़ों की सबसे बड़ी गुफा है जहां पर लाखों की तादाद में चमगादड़ पाए जाते हैं। इन पर शोध करने वालों के लिए आस्‍ट्रेलिया की ये गुफा काफी बड़ी सुविधा भी है।

गौरतलब है कि चीन के वैज्ञानिक और वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ विरोलॉजी के प्रमुख वैज्ञानिक शी जेंगली ने चमगादड़ों से मिलने वाले वायरस पर काफी समय तक शोध किया है। लांसेट जर्नल में छपे रिसर्च पेपर में उन्‍होंने लिखा था कि अपने शोध के लिए उन्‍होंने चमगादड़ों का जो मल एकत्रित किया था उसमें नोवेल कोरोना वायरस के मिलने की पुष्टि हुई थी। उन्‍होंने ये खोज वर्ष 2013 में की थी। नवंबर-दिसंबर के दौरान जब ये बीमारी चीन में फैल रही थी तब इस वायरस का पहले से मौजूद वायरस से मिलान किया गया था। उस वक्‍त इन दोनों में 96 फीसद मेल सामने आया था।

वैज्ञानिक मानते हैं कि कोरोना वायरस का केवल चमगादड़ ही संवाहक नहीं रहा होगा। जो भी जानवर इनके संपर्क में आया होगा वही इसका वाहक भी बन गया होगा। इनमें बिल्ली, ऊंट, पैंगोलिन और दूसरे स्तनपायी जानवार भी हो सकते हैं। ये जानवर इंसानों के आसपास ही होते हैं। इस वजह से ये वायरस इंसानों के संपर्क में आया होगा और फिर एक के बाद एक इस संक्रमण से प्रभावित होते गए होंगे। नेचर मैगजीन में कहा गया है कि चमगादड़ों में बड़ी संख्या में घातक वायरस होते हैं जो इबोला, सार्स और कोविड-19 जैसी महामारियों का कारण बनते हैं।

आपको बता दें कि 2003 में सार्स महामारी से पहले कोरोना वायरस के बारे में ज्यादा अध्ययन नहीं किया गया था। उस समय तक सिर्फ दो ही प्रकार के वायरस के बारे में पता था जिसे 1960 में खोजा गया था। 2009 में यूएस एड द्वारा वित्तपोषित प्रेडिक्ट की स्थापना की गई। इस संस्थान ने इकोहेल्थ एलाइंस, द स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन, द वाइल्ड लाइफ कॉन्जर्वेशन सोसाइटी और कैलिफोर्निया की कंपनी के साथ एक महामारी ट्रैकर बनाया। इसका उद्देश्य नए बीमारियों की पहचान करना था। दासजाक ने कहा, हमने सार्स की उत्पत्ति के बारे में जानने के लिए खोज शुरू की। लेकिन, बाद में हमें पता चला कि हजारों प्रकार के कोरोना वायरस हैं, इसलिए हमने अपना ध्यान उन्हें खोजने में केंद्रित किया। 

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