आठवीं तक फेल न करने की नीति में बदलाव से राहत में स्कूल
केंद्रीय विद्यालय संगठन से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक फेल न करने नीति में बदलाव के बाद पढ़ने में कमजोर छात्र अब पांचवीं के बाद ही कक्षाओं में फेल होंगे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। स्कूलों में आठवीं तक फेल न करने की नीति में बदलाव को भले की कई राज्यों ने अब तक अपनी सहमति नहीं दी है, बावजूद इसके केंद्रीय विद्यालय जैसे संगठनों में इस बदलाव को भारी राहत के रूप में देखा जा रहा है। उन्हें इस बदलाव से आठवीं तक चौपट हो चुकी पढ़ाई में सुधार आने की उम्मीद है। हालांकि उन्हें इसका असर नौवीं में दिखाई देता था, जहां लगभग पचास फीसद बच्चे फेल हो जाते थे।
स्कूलों में इस नीति का एक और जो खामियाजा देखने को मिलता था, वह नौवीं की कक्षाओं में बच्चों की भारी भीड़ होती थी। वजह आठवीं तक फेल किए जाने से सभी बच्चे नौवीं तक आसानी से पास होते चले आते थे। वहीं दूसरी ओर से नौवीं में पचास फीसद बच्चे फेल भी हो जाते थे। ऐसे में स्कूलों में नौवीं की क्लास में इतने बच्चे हो जाते थे, कि स्कूलों में उनके लिए क्लास रुम छोटे हो जाते थे।
केंद्रीय विद्यालय संगठन से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक फेल न करने नीति में बदलाव के बाद पढ़ने में कमजोर छात्र अब पांचवीं के बाद ही कक्षाओं में फेल होंगे। ऐसे में अब वह पढ़ाई-लिखाई की ओर ध्यान देंगे। साथ ही अभिभावक भी अब बेफिक्री नहीं दिखाएंगे। फिलहाल केंद्रीय विद्यालयों में इसका असर दिखा है। नौवीं में पहले के मुकाबले बच्चों की भीड़ कम है। वजह आठवीं में ही कमजोर बच्चों को ड्राप कर दिया गया।
खास बात यह है कि स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार में जुटी मौजूदा सरकार के रास्ते की यह एक बड़ी बाधा थी। हालांकि सरकार ने खत्म करने की कोशिश सत्ता संभालने के बाद 2014 से शुरु कर दी थी। लेकिन संसद के अंतिम सत्र में सरकार को आठवीं तक फेल न करने की इस नीति में बदलाव कर सफलता मिली। जिसमें सरकार ने सभी राज्यों को इस बदलाव के लिए स्वतंत्र कर दिया था। फिलहाल 25 राज्यों ने इसे अपनी सहमति दी। बावजूद इसके लिए जो राज्यों इसके खिलाफ थे, उनमें आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा और तेलंगाना प्रमुख है।