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अयोध्या पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में भारी हंगामा

ये मामला अयोध्या में जमीन के मालिकाना हक के मुद्दे को संविधान पीठ भेजने का नहीं था बल्कि 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले मे मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न मानने वाली व्यवस्था को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजने का है।

By Srishti VermaEdited By: Published: Fri, 06 Apr 2018 08:38 AM (IST)Updated: Sat, 07 Apr 2018 06:37 AM (IST)
अयोध्या पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में भारी हंगामा
अयोध्या पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में भारी हंगामा

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में शुक्रवार को एक बार फिर कोर्ट में भारी हंगामा हुआ। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने सुनवाई कर रही पीठ से सवाल किया कि मुसलमानों में प्रचलित बहुविवाह ज्यादा महत्वपूर्ण मामला है या अयोध्या? कुछ दिन पहले कोर्ट ने बहुविवाह को महत्वपूर्ण मामला मानते हुए संविधान पीठ के पास भेजा है। वही मानदंड अपनाते हुए इसे भी संविधान पीठ के पास भेजा जाए। धवन इस पर तत्काल फैसला दिए जाने की मांग लेकर कोर्ट में करीब पौने घंटे तक अड़े रहे।

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यह मामला अयोध्या में जमीन के मालिकाना हक के मुद्दे को संविधान पीठ भेजने का नहीं है। यह 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले में मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं मानने वाली व्यवस्था को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजने का है। फारुखी का फैसला अयोध्या में जमीन अधिग्रहण पर आया था। मुस्लिम पक्षकार एम सिद्दीकी के वकील राजीव धवन ने फैसले के इस अंश पर आपत्ति उठाई थी। इस पर कोर्ट ने मुख्य मामले से पहले इसी मुद्दे पर सुनवाई शुरू की थी।

पिछली दो सुनवाइयों से धवन फारुखी फैसले पर पुनर्विचार की मांग पर बहस कर रहे हैं। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की पीठ कर रही है। धवन का कहना था कि अगर बाद में मामला संविधान पीठ को गया तो उन्हें फिर से यही दलीलें देनी पड़ेंगी। कोर्ट का समय बर्बाद होगा। उन्होंने कहा कि फारुखी फैसले का असर हाई कोर्ट के फैसले पर भी पड़ा है।

धवन का सवाल

धवन ने पूछा कि बहुविवाह ज्यादा महत्वपूर्ण मामला है या अयोध्या? 26 मार्च को कोर्ट ने उसे संविधानपीठ को भेज दिया। --उन्होंने कहा कि वही मानदंड इस मामले में भी अपनाया जाए। प्रेस मौजूद है। कोर्ट फैसला दे।

हिंदू पक्ष की आपत्ति::

धवन की दलीलों और उनके तरीके पर एएसजी तुषार मेहता और मनिंदर सिंह ने आपत्ति उठाई।

हिंदू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि कोई कैसे कह सकता है कि अभी फैसला दो। प्रेस के आगे बताओ।

कोर्ट की व्यवस्था::----जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से कहा कि वे इस मामले में प्रेस को न शामिल करें। वे अपनी बहस करें। --कोर्ट इस पर सभी को सुनने के बाद एक साथ फैसला देगा। इसके बाद धवन ने फारुखी केस की मेरिट पर बहस शुरू की।

कोर्ट दो समुदायों के धर्मस्थल की तुलना कैसे कर सकता है

धवन ने फारुखी फैसले को गलत बताते हुए कहा कि कोर्ट धार्मिक स्थलों की तुलना कैसे कर सकता है। इस फैसले में कोर्ट ने हिंदुओं और मुस्लिमों के धार्मिक स्थल की ज्यादा और कम महत्वपूर्ण होने के आधार पर तुलना की है। यह गलत है। कोर्ट को जमीन अधिग्रहण से आगे केस की मेरिट पर कुछ नहीं बोलना चाहिए था। अन्यथा अयोध्या में जमीन पर मालिकाना हक के मुकदमे का क्या मतलब रह गया। उन्होंने कहा कि बनारस में भी मंदिर के साथ मस्जिद है। कल को उसकी भी तुलना शुरू कर दी जाएगी। धवन 27 अप्रैल को भी अपनी दलीलें जारी रखेंगे।

 धवन बोले, बकवास मत करो

राजीव धवन प्रतिवादी वकीलों से लगभग सट कर खड़े थे। एएसजी मनिंदर सिंह ने उनसे थोड़ा खिसकने को कहा तो धवन बोले कि मैं यहीं खड़ा रहूंगा। यहां से मुझे चीफ जस्टिस सीधे दिखते हैं।

सिंह ने फिर कहा कि वे थोड़ा खिसक जाएं। धवन ने जोर से कहा कि सिट डाउन मिस्टर मनिंदर सिंह सिट डाउन। बकवास मत करो। इस पर सिंह ने कहा, बकवास आप कर रहे हैं।

एएसजी तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि आजकल कुछ वकीलों का कोर्ट में व्यवहार अक्खड़ होता जा रहा है। मैं पूरे सम्मान के साथ कहता हूं कि मेरे सम्मानित मित्र को इस बारे में क्रैश कोर्स की जरूरत है।

वरिष्ठ वकील के परासरन और सीएस वैद्यनाथन ने भी धवन के व्यवहार पर आपत्ति जताई। मुख्य मामले में बहस के दौरान भी धवन की जुबान की तेजी कायम रही और अकड़ से दलीलें रखते रहे।
 


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