आरक्षण संबंधी अदालती फैसले पर भी एतराज
एम्स और तकनीकी संस्थानों में विशेषज्ञता वाले उच्च पदों पर आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गूंज संसद में भी सुनाई दी। जदयू अध्यक्ष शरद यादव, सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव समेत विभिन्न दलों के नेताओं ने फैसले को निरस्त करने की मांग की।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एम्स और तकनीकी संस्थानों में विशेषज्ञता वाले उच्च पदों पर आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गूंज संसद में भी सुनाई दी। जदयू अध्यक्ष शरद यादव, सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव समेत विभिन्न दलों के नेताओं ने फैसले को निरस्त करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट को संविधान की याद दिलाते हुए कुछ नेताओं ने कहा कि पिछड़ों को कुछ गारंटी दी गई है। उसे छीनने की कोशिश हुई तो पूरे देश में संघर्ष होगा। इससे पहले सभी दल सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजनीति के अपराधीकरण को रोकने और केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) द्वारा सभी राष्ट्रीय पार्टियों को आरटीआइ के दायरे में लाने के खिलाफ एकजुटता दिखा चुके हैं।
मानसून सत्र के पहले ही दिन आरक्षण मुद्दा बना। शून्यकाल में शोर-शराबे के बीच सबसे पहले शरद यादव ने आरक्षण संबंधी अदालती फैसले पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि आरक्षण मान-सम्मान का सवाल है। केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि केवल पेट भरने से काम नहीं होता है। संविधान में पिछड़ों को कुछ हक दिया गया है, लेकिन कोर्ट उसे भी छीन रहा है। यह बर्दाश्त नहीं होगा। संशोधन लाकर इस फैसले को निरस्त करना चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका को इशारा दिया कि वह संसद से बड़ी नहीं है। लिहाजा, कोर्ट को संसद की भावना का ध्यान रखना चाहिए।
वहीं, उन्होंने परोक्ष रूप से कुछ न्यायाधीशों पर भी सवाल उठाया। शरद का समर्थन करते हुए मुलायम सिंह ने कहा कि देश में जिनकी संख्या 54 फीसद है, उच्च पदों पर उनकी मौजूदगी सिर्फ दो फीसद है। अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ों के लिए आरक्षण सभी की सहमति से हुआ था। इसे छीनने की कोशिश होगी तो संघर्ष होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह बात निचले स्तर तक पहुंच गई, तो बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी। लिहाजा, तत्काल फैसले को निरस्त कर उच्च तकनीकी पदों पर आरक्षण का प्रावधान भी लागू होना चाहिए।
बसपा के दारासिंह चौहान व कांग्रेस के पीएल पुनिया ने भी अलग-अलग मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि हकमारी नहीं होनी चाहिए। चौहान ने इसी बहाने पदोन्नति में आरक्षण के लिए फिर से दबाव बढ़ाया। उन्होंने कहा कि दबाव के बाद राज्यसभा में तो यह पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में अब तक अटका है। अगर यह प्रस्ताव लोकसभा में भी पारित हो गया होता, तो सुप्रीम कोर्ट इसके खिलाफ फैसला नहीं दो सकता था। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने की हिदायत दी, जिस पर राजनीतिक दलों ने या तो चुप्पी साध ली थी या विरोध जताया था। इसके अलावा केंद्रीय सूचना आयोग ने जब सभी राष्ट्रीय दलों को सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने का फैसला दिया तो पार्टियों ने एक साथ निर्णय पर विरोध जताया था। साथ ही कैबिनेट में आरटीआइ कानून में संशोधन पर आमराय भी बनी।
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