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फेक न्यूज पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सरकार से कहा इस पर रोक लगाने के लिए तंत्र विकसित करने

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा पहले तो आपने कोई हलफनामा नहीं दायर किया। हलफनामा दायर भी किया तो उसमें दो अहम मुद्दों पर कुछ नहीं कहा गया है। इस तरह से नहीं चल सकता।

By Manish PandeyEdited By: Published: Tue, 17 Nov 2020 01:46 PM (IST)Updated: Tue, 17 Nov 2020 10:47 PM (IST)
फेक न्यूज पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सरकार से कहा इस पर रोक लगाने के लिए तंत्र विकसित करने
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के हलफनामें पर नाराजगी जताई है।

नई दिल्ली, एजेंसी। कोरोना महामारी की शुरुआत में तब्लीगी जमात के कार्यक्रम पर मीडिया रिपोर्टिग को लेकर केंद्र सरकार की दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नाखुशी जताई। कोर्ट ने कहा कि सरकार को टीवी पर इस तरह के मामलों को नियंत्रित करने के लिए एक नियामक तंत्र स्थापित करने पर विचार करना चाहिए। साथ ही उससे यह पूछा है कि इस मुद्दे पर उसने केबल टेलीविजन नेटवर्क एक्ट (सीटीएनए) के तहत क्या कार्रवाई की है।साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने फेक न्यूज पर रोक लगाने के लिए तंत्र विकसित करने के बारे में पूछा। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, 'पहले तो आपने कोई हलफनामा नहीं दायर किया। हलफनामा दायर भी किया तो उसमें दो अहम मुद्दों पर कुछ नहीं कहा गया है। इस तरह से नहीं चल सकता।'

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अदालत ने सरकार से नया हलफनामा दायर कर सीटीएनए के तहत की गई कार्रवाई और ऐसे मामलों से निपटने के लिए मौजूदा कानून के बारे में बताने को कहा है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अपने हलफनामा में कहा है कि इस मामले में ज्यादातर मीडिया ने तथ्यों पर आधारित रिपोर्टिग की है।

पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यम भी शामिल थे। पीठ ने मेहता से कहा, 'हम आपके जवाब से संतुष्ट नहीं हैं। हम चाहते हैं कि आप हमें बताएं कि सीटीएनए के तहत आपकी तरफ से क्या कार्रवाई की गई है।' इस पर मेहता ने कहा कि इसके तहत कई कदम उठाए गए हैं। शीर्ष अदालत जमीयत उलेमा--ए--हिंद की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया है कि मीडिया के एक धड़े ने कार्यक्रम को लेकर गलत रिपोर्टिग की और समाज में नफरत फैलाने का काम किया।

परीक्षा शुल्क माफ करने की मांग वाली याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी के मद्देनजर 10वीं और 12वीं के छात्रों के परीक्षा शुल्क माफ करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। याचिका में इसके लिए केंद्रीय माध्यमिक परीक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और दिल्ली सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। यह भी कहा गया था कि कोरोना के चलते ज्यादातर अभिभावकों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना प़़ड रहा है।

जस्टिस अशोक भूषषण, जस्टिस आर सुभाषष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा, 'अदालत सरकार को ऐसा करने के लिए कैसे कह सकती हैं? आप सरकार के सामने अपना पक्ष रखें।' गैर सरकारी संगठन (सोशल जुरिस्ट) ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार और सीबीएसई से कहा था कि वह इस जनहित याचिका पर नियमों के मुताबिक विचार कर फैसला करे। 2020--21 शैक्षणिक सत्र के लिए सीबीएसई ने 10वीं के लिए 1500--1800 रपये और 12वीं के लिए 1500--2400 रपये परीक्षा शुल्क रखा है।

महामारी कानून के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई से इन्कार

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महामारी कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ता (मिराशी) से यह सवाल भी किया कि उसने इस मुद्दे पर बांबे हाई कोर्ट में अपील क्यों नहीं की। अदालत ने कहा कि महामारी कानून जैसे केंद्रीय कानूनों को रद करने का हाईकोर्ट को पूरा अधिकार है और याचिकाकर्ता को पहले वहां जाना चाहिए।


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