वैवाहिक दुष्कर्म संबंधित याचिका पर सुनवाई से SC का इंकार, याचिकाकर्ता को भेजा दिल्ली हाई कोर्ट
याचिका में मांग की गई थी कि तलाक के आधार के रूप में लेते हुए मैरिटल रेप को लेकर उचित कानून के साथ आवश्यक गाइडलाइंस बनना चाहिए।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने दांपत्य जीवन में दुष्कर्म की प्राथमिकी दर्ज करने तथा इसे तलाक का आधार बनाने का केंद्र को निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने याचिका दायर करने वाली वकील अनुजा कपूर से कहा कि उन्हें राहत के लिए हाई कोर्ट जाना चाहिए। इस पर वकील ने अपनी याचिका वापस ले ली।
वकील ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि प्रतिपादित दिशानिर्देशों और कानून में दांपत्य जीवन में दुष्कर्म से संबंधित मामलों के दर्ज होने के बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश होना चाहिए ताकि अधिकारियों की जवाबदेही और जिम्मेदारी निर्धारित की जा सके। याचिका में इस संबंध में तैयार होने वाले दिशानिर्देशों और कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर उचित दंड या जुर्माने का भी प्रावधान करने का सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
याचिका में कहा गया है कि चूंकि इस समय दांपत्य जीवन में दुष्कर्म अपराध नहीं है और इसलिए पति के खिलाफ पत्नी की शिकायत पर किसी भी थाने में प्राथमिकी दर्ज नहीं होती है। पुलिस अधिकारी पीडि़त और पति के बीच विवाह की पवित्रता बनाए रखने के लिए समझौता कराते रहते हैं।
याचिका के अनुसार चूंकि हिंदू विवाह कानून, 1955, मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन कानून और विशेष विवाह कानून, 1954 में दांपत्य जीवन में दुष्कर्म तलाक का आधार नहीं है, इसलिए पति के खिलाफ क्रूरता के लिए इसका तलाक के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।