तलाक में छह महीने के कूलिंग पीरियड में हो सकती है कटौती
कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 में मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करके कई मामलों में इसे समाप्त कर चुका था।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अहम व्यवस्था देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतें परिस्थितियों को देखते हुए हिन्दू मैरिज एक्ट में सहमति से तलाक के मामले में छह महीने का कूलिंग पीरियड खत्म कर सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि कानून में दिया गया छह महीने के कूलिंग पीरियड का प्रावधान अनिवार्य नहीं बल्कि निर्देशात्मक है और अदालतें प्रत्येक मामले की परिस्थितियों और तथ्यों को देखते हुए विवेकाधिकार का प्रयोग कर इसे खत्म या इसमें कटौती कर सकती हैं।
ये फैसला न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल व न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने सहमति से तलाक के एक ऐसे ही मामले में कूलिंग पीरियड खत्म करने की याचिका पर सुनाया है। हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 13बी (2) कहती है कि दोनों पक्षों की ओर से सहमति से तलाक की अर्जी दाखिल करने के मामलों में दूसरे मोशन के बाद अदालत तलाक की डिक्री देने से पहले दोनों पक्षों में सुलह की गुंजाइश के लिए छह महीने का कूलिंग पीरियड देगी। दूसरे मोशन के समय तलाक के पहले छह महीने का कूलिंग पीरियड खत्म करने के अदालत के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई फैसलों में मतभेद था।
हालांकि कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 में मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करके कई मामलों में इसे समाप्त कर चुका था। अमरदीप सिंह के इस मौजूदा मामले में फैसला देते हुए कोर्ट ने कहा है कि कूलिंग पीरियड का उद्देश्य है कि लोग जल्दबाजी में तलाक का निर्णय न लें पक्षकारों को सुलह का मौका मिले, लेकिन इसका उद्देश्य यह कतई नहीं था कि इससे दो लोगों के बीच निरुद्देश्य हो गई शादी बनी रहे और सुलह न हो सकने की स्थिति में पक्षकारों की तकलीफों में इजाफा हो।
कोर्ट ने कहा कि वैसे तो शादी को बचाने का हर प्रयास होना चाहिए लेकिन फिर भी जहां सुलह की कोई गुंजाइश न बची हो और दूसरी ओर पुनर्वास का मौक हो तो वहां कोर्ट पक्षकारों को बेहतर विकल्प देने के बारे में अधिकारहीन नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि जिन मामलो में परिस्थितियों को देख कर अदालत को लगता है कि धारा 13बी(2) के तहत दिया गया छह महीने का कूलिंग पीरियड खत्म किया जा सकता है तो कोर्ट उसे खत्म कर सकता है।
इसके लिए कोर्ट को तीन बातों का ध्यान रखना होगा। जैसे कि उनके बीच सुलह की गुंजाइश न बची हो। गुजारेभत्ते और बच्चों की कस्टडी का विवाद व अन्य विवादों पर समझौता हो गया हो और तलाक की अर्जी दाखिल करने से पहले दोनों एक साल से अलग रह रहे हों।
इन स्थितियों में खत्म किया जा सकता है कूलिंग पीरियड
1- जब सहमति से तलाक का अदालत में पहला मोशन देने से पहले पति पत्नी धारा 13बी (1) के मुताबिक एक साल तक अलग रह चुके हों
2- कानून के मुताबिक दोनों के बीच सुलह के सारे प्रयास नाकाम रहे हों और उनमें सुलह की कोई गुंजाइश न दिख रही हो
3- दोनों पक्षकारों ने अपने बीच के सारे विवाद जैसे पत्नी को गुजाराभत्ता व बच्चे की कस्टडी आदि, सुलझा लिए हों
यह भी पढ़ें: जांच एजेंसियों की गिरफ्त में लालू का कुनबा, खुल रही है परत दर परत