'अपराधी को छोड़ने से पहले पीड़ितों को भी सुना जाए'
केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जघन्य अपराधियों को छोड़े जाने में पीड़ितों के अधिकारों का मसला उठाया। सॉलिसिटर जनरल ने संविधान पीठ से आग्रह किया कि पीड़ितों के अधिकारों पर भी विचार होना चाहिए। जिन मामलों में फांसी उम्रकैद में तब्दील हो गई हो उसमें माफी देकर अपराधी को छोड़ने से पहले पीड़ित
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जघन्य अपराधियों को छोड़े जाने में पीड़ितों के अधिकारों का मसला उठाया। सॉलिसिटर जनरल ने संविधान पीठ से आग्रह किया कि पीड़ितों के अधिकारों पर भी विचार होना चाहिए। जिन मामलों में फांसी उम्रकैद में तब्दील हो गई हो उसमें माफी देकर अपराधी को छोड़ने से पहले पीड़ित का पक्ष सुना जाना चाहिए। सॉलिसीटर जनरल ने राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई के मसले पर बहस के दौरान ये बात कही। इस बीच, देश भर में उम्रकैदियों की रिहाई पर कोर्ट का रोक आदेश जारी है।
मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली संविधानपीठ ने बुधवार से दुर्दात अपराधों में उम्रकैद काट रहे अपराधियों को माफी देकर छोड़े जाने के कानूनी मसले पर सुनवाई शुरू की है। संविधानपीठ के सामने कुल 7 प्रश्न हैं जिसमें केंद्र और राज्य सरकार के माफी देने के कानूनी प्रावधानों पर मंथन होगा।
केंद्र सरकार ने याचिका दाखिल कर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का विरोध किया है। दरअसल, फरवरी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दया याचिका के निपटारे में अनुचित देरी के आधार पर राजीव के तीन हत्यारों की फांसी उम्रकैद में तब्दील करने के अगले ही दिन तमिलनाडु सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री के सातों हत्यारों की रिहाई की घोषणा कर दी। तमिलनाडु सरकार ने केंद्र को पत्र भेजकर रिहाई पर जवाब मांगा और कहा कि अगर तीन दिन में जवाब नहीं दिया गया तो राज्य सरकार हत्यारों को छोड़ देगी। केंद्र ने राज्य सरकार के उस पत्र और घोषणा को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है।
बुधवार को जब मामले में सुनवाई शुरू हुई तो सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने विचार के लिए भेजे गए सातों प्रश्न कोर्ट के सामने दोहराए। कुमार ने अनुरोध किया कि संविधानपीठ पीड़ितों के अधिकार के मसले को भी सवालों की सूची में शामिल कर ले। उन्होंने कहा कि इस पर भी विचार हो कि जिन मामलों में अपराधी को फांसी की सजा दी गई है और बाद में किसी कारण से उसकी फांसी उम्रकैद में तब्दील होती है, तो उस अपराधी को माफी देकर छोड़ने से पहले क्या सरकार को पीड़ित के अधिकारों और पीड़ित पक्ष को भी सुनना चाहिए या फिर सरकार सिर्फ अपराधी की माफी अर्जी पर विचार कर उसे माफी दे सकती है। अभी कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे इस प्रश्न को विचार सूची में शामिल करेंगे या नहीं, लेकिन केंद्र ने पीड़ितों के हक की बात पूरी मजबूती से पेश की।
संविधान पीठ के सामने क्या हैं सवाल
1- क्या ताउम्र कैद की सजा भोग रहा उम्रकैदी रिहाई की मांग कर सकता है या फिर विशेष अपराधों में जिनमें फांसी की सजा ताउम्र कैद में तब्दील की गई हो ऐसे दोषी की सजा माफ कर रिहा करने पर रोक लगाई जा सकती है।
2- जिस मामले में राष्ट्रपति या राज्यपाल संविधान में मिली माफी देनी की शक्ति का इस्तेमाल कर चुके हों क्या उस मामले में सरकार सीआरपीसी की धारा 432 या 433 की शक्ति का इस्तेमाल कर दोषी को माफी दे सकती है
3- जहां पर राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को कानून में माफी देने का हक हो वहां क्या सीआरपीसी की धारा 432 (7) केंद्र सरकार को प्राथमिकता दी गई है और राज्य को बाहर कर दिया गया है।
4- क्या संविधान में माफी देने की शक्ति में केंद्र सरकार को राज्य सरकार से ज्यादा प्राथमिकता है
5- क्या सीआरपीसी की धारा 432 (7) में माफी देने में दो सरकारों (केंद्र और राज्य) उचित सरकार माना जाएगा
6- क्या सरकार स्वयं से माफी देने के अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है या उसके लिए कानून में तय प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है
7- सीआरपीसी की धारा 435 में केंद्र सरकार से परामर्श करने की बात का मतलब सहमति से है
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