बेघरों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक- कोर्ट की सीमाएं हैं तो शासन की जिम्मेदारी सरकार की है
सुप्रीम कोर्ट ने बेघरों के रात में आश्रय के मुद्दे पर केंद्र से हलफनामा दायर करने को कहा है।
नई दिल्ली [प्रेट्र]। शहरी बेघर लोगों के लिए अपने आदेशों का पालन न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में उसकी सीमाएं हैं। मामले में कई प्रदेशों ने शीर्ष अदालत के बेघरों के लिए सुविधाओं के इंतजाम करने के आदेश का पालन नहीं किया। शीर्ष अदालत ने इसी पर अपनी सीमा को स्पष्ट किया है।
जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, हम सरकार को शासन चलाने के लिए कह सकते हैं। लेकिन अगर वह उचित तरीके से शासन न चलाए तो हम कुछ नहीं कर सकते। शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी को बुधवार को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के उस कथन को मजबूती प्रदान करने वाला माना जा सकता है जिसमें मंत्री ने कहा था कि देश में शासन चलाने का अधिकार चुनी हुई सरकार के पास ही होना चाहिए।
इसी प्रकार से महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने जस्टिस लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आठ अगस्त को एक मामले की सुनवाई में कहा था कि जन हित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान न्यायालयों को कठोर टिप्पणियों से बचना चाहिए। इससे पूरे देश को पीड़ा पहुंचती है।
बेघरों के मसले में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए पीठ ने गुरुवार को केंद्र से कहा कि कुछ प्रदेश सरकारों ने सुविधाएं मुहैया कराने की बाबत अभी तक कमेटी का गठन ही नहीं किया है। यह कमेटी दीनदयाल अंत्योदय योजना के तहत राष्ट्रीय शहरी जीवनयापन मिशन के तहत गठित होनी है।
मामले में एक याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण पेश हुए। उनकी मांग पर जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की मौजूदगी वाली पीठ पर कोई कड़ी कार्रवाई करने से इन्कार कर दिया।