न्याय के लिए भटक रहे पिता पर सुप्रीम कोर्ट को आयी दया, चिट्ठी को बनाया पीआइएल
बेटे की हत्या के मुकदमें में न्याय पाने के लिए 19 साल से नवल किशोर अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। अब सुप्रीमकोर्ट से बंधी है न्याय की उम्मीद।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। बेटे की हत्या के मुकदमे में 19 साल से न्याय तलाशते नवल किशोर पर सुप्रीम कोर्ट को दया आयी है कोर्ट ने नवल किशोर की चिट्ठी को जनहित याचिका में तब्दील कर लिया है। नवल किशोर का दुख ये है कि निचली अदालतों ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूरी तरह लागू नहीं किया है। वह उस आदेश को लागू कराने के लिए पिछले आठ साल से एक से दूसरी अदालत का चक्कर काट रहे हैं। इस बीच उन्होंने कई बार सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी भेज कर अपनी बात बताने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं पहुंच पायी, परन्तु इस बार उसकी हताशा भरी चिट्ठी पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है।
हालांकि अभी मामले पर सुनवाई की कोई तारीख तय नहीं है फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट के पीआइएल सेक्शन में स्क्रूटनी के स्तर पर है। नवल किशोर को सुप्रीम कोर्ट से मोबाइल पर एसएमएस के जरिये मिली सूचना यही बताती है।
नवल किशोर के 17 साल के बेटे बिजेन्द्र की अक्टूबर 2000 में हत्या हो गई थी। घटना के वक्त वह दिल्ली की आजादपुर मंडी से शकरकंद लाद कर उत्तर प्रदेश में कैराना के पास शामली जा रहे ट्रक पर सवार था। एफआइआर के मुताबिक कुछ बदमाशों ने रास्ते में ट्रक रुकवाने की कोशिश की और नहीं रोकने पर गोली चला दी जो कि बिजेन्दर के गले में लगी और उसकी मौत हो गई। हालांकि नवल किशोर इस घटनाक्रम पर भी सवाल उठाते हैं और उन्होंने बेटे की हत्या के मामले में अदालत में एक लिखित शिकायत भी दी थी जिसे कम्प्लेन केस कहते हैं।
दोनों ही मामले मुजफ्फरनगर की जिला अदालत में लंबित थे। नवल किशोर ने मुजफ्फरनगर की अदालत से न्याय मिलने में आशंका जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की और कोर्ट ने 7 फरवरी 2011 को कैराना मुजफ्फरनगर की अदालत से मुकदमा दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत स्थानांतरित कर दिया। कोर्ट ने मुकदमें का सारा रिकार्ड दो सप्ताह में मुजफ्फरनगर से दिल्ली भेजने का आदेश दिया। नवल किशोर का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर आज तक पूरा अमल नहीं हुआ। मुकदमें का सारा रिकार्ड कड़कड़डूमा कोर्ट नहीं पहुंचा। सिर्फ पूरक आरोपपत्र कड़कड़डूमा कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने उसी के आधार पर फैसला सुना दिया जिसमें सारे अभियुक्त बरी हो गए। उनका कहना है कि कंप्लेन केस का रिकार्ड स्थानांतरित होकर दिल्ली नहीं पहुंचा।
जब केस का रिकार्ड दिल्ली की अदालत नहीं पहुंचा तो नवल किशोर ने सुप्रीम कोर्ट में फिर अर्जी डाली और कोर्ट ने सितंबर 2011 में दिल्ली और मुजफ्फर नगर दोनों अदालतों से रिपोर्ट मांगी। दिल्ली की अदालत ने कहा कि रिकार्ड नहीं मिला और मुजफ्फरनगर ने कहा कि फाइल डाक से भेजी गई है।
कोर्ट ने मामले पर राज्य के वकील से सुझाव मांगते हुए सुनवाई 21 नवंबर तक टाल दी लेकिन इस बीच कड़कड़डूमा अदालत ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी भेजकर बताया कि रिकार्ड मिल गया है जिस पर कोर्ट ने 21 नवंबर की सुनवाई में मामला निपटा दिया। नवल किशोर का कहना है कि जब अगले दिन 22 नवंबर 2011 को उसने कड़कड़डूमा अदालत में अर्जी देकर रिकार्ड देखा तो पाया कि केस का पूरा रिकार्ड नहीं पहुंचा था। उसके बाद से वह बाकी रिकार्ड की फाइलें स्थानांतरित कराने की गुहार लेकर अदालतों क चक्कर काट रहा है।
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